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ब्रह्मोस मिसाइल

[ प्रीलिम्स के लिये – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ]
[मेंस के लिए – सामान्य अध्धयन पेपर - 3 : देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास ,सीमावर्तीक्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन ]

सन्दर्भ

  • हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने ब्रह्मोस एयरोस्पेरस प्राइवेट लिमिटेड के साथ 1700 करोड़ रुपये के एक करार पर हस्ताक्षर किया है।
  • इसके तहत 38 सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों के लिए करार किया गया है । इनमें से 35 कॉम्बेट मिसाइल और 3 अभ्यास के लिए हैं।
  • इन्हें प्रोजेक्ट-15बी के तहत निर्मित दो स्टील्थ गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर पर तैनात किया जायेगा।
  • इन दोहरी भूमिका निभाने वाली मिसाइलों के भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने से बेड़े की मारक और ऑपरेशनल क्षमता बढ़ेगी।

ब्रह्मोस मिसाइल

  • ब्रह्मोस का विकास ब्रह्मोस कोर्पोरेशन के द्वारा किया जा रहा है। यह कम्पनी भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओ का सयुंक्त उपक्रम है।
  • ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी पर रखा गया है। रूस इस परियोजना में प्रक्षेपास्त्र तकनीक उपलब्ध करवा रहा है ,तथा उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता भारत के द्वारा विकसित की गई है।
  • यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट) मिसाइल है। रैमजेट इंजनउड़ान के दौरान वायुमंडल से ऑक्सीजन लेता है , जिससे यह मिसाइल वजन में हल्की और उच्च ईंधन क्षमता वाली होती है।
  • ब्रम्होस की खूबियाँ इसे दुनिया की सबसे तेज़ मारक मिसाइल बनाती हैं। यहाँ तक कि अमेरिका की टॉम हॉक मिसाइल भी इसके आगे कमजोर साबित होती है।
  • इसे जल, थल और वायु से छोड़ा जा सकता है इस क्षमता को ट्रायड कहा जाता है।ट्रायड की क्षमता भारत सेपहले अमेरिका, रूस और सीमित रूप से फ्रांस के पास मौजूद थी।
  • शुरुआत में इस मिसाइल की रेंज 290 किलोमीटर तक ही थी, लेकिन अब इसकी रेंज बढ़ाकर 300-400 किमी तक कर दी गयी है।
  • ब्रम्होस मिसाइल में जमीन के साथ-साथ जहाज-रोधी हमलों के लिए एडवांस रेंज और दोहरी भूमिका निभाने की क्षमता है। यह मिसाइल 2.8 मैक यानी 3000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से मार करने में सक्षम है।
  • यह दागो और भूल जाओ के सिद्धांत पर कार्य करती है , लॉन्च करने के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • यह 10 मीटर की ऊँचाई पर उड़ान भर सकती है और रडार की पकड में नहीं आती।
  • ब्रह्मोस मिसाइल की वहन क्षमता 250-300 किलोग्राम है , यह नियमित विस्फोटक शीर्ष (वारहेड) के साथ-साथ परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम है।
  • ब्रह्मोस के मेनुवरेबल संस्करण का हाल ही में सफल परीक्षण किया गया। जिससे इस मिसाइल की मारक क्षमता में और भी बढोत्तरी हुई है।

मेनुवरेबल तकनीक

  • मेनुवरेबल तकनीक मिसाइल को दागे जाने के बाद अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले मार्ग को बदलने की क्षमता है।
  • टैंक से छोड़े जाने वाले गोलों तथा अन्य मिसाइलों का लक्ष्य पहले से निश्चित होता है और वे वहीं जाकर गिरते हैं।
  • लेज़र गाइडेड बम या मिसाइल लेजर किरणों के आधार पर लक्ष्य को साधते हैं।
  • परंतु यदि कोई लक्ष्य इन सब से दूर हो और लगातार गतिशील हो तो उसे निशाना बनाना कठिन हो सकता है।
  • ब्रह्मोस एक मेनुवरेबल मिसाइल है जो दागे जाने के बाद लक्ष्य तक पहुँचने से पहले यदि उसका लक्ष्य मार्ग बदल ले तो यह मिसाइल भी अपना मार्ग बदलकरउसे निशाना बना सकती है।

मिसाइलों के प्रकार

  • मिसाइल की गति को मापने के लिए मात्रक के रूप में मैक का प्रयोग किया जाता है , 1 मैक का अर्थ होता है ध्वनि की गति के बराबर गति यानि प्रति सेकंड 343 मीटर।
  • मैक हवा में ध्वनि की गति की तुलना में एक विमान की गति का वर्णन करता है।
  • गति के आधार पर मिसाइलों को तीन कैटेगरी में बांटा जा सकता है:

1. सबसोनिक मिसाइल: इनकी गति ध्वनि की गति से कमलगभग 0.9 मैक यानी करीब 1100 किलोमीटर/घंटे होती है।अमेरिका की टॉमहॉक क्रूज मिसाइल, फ्रांस की एक्सोसेट और भारत की निर्भय मिसाइल इसी श्रेणी में आती हैं।
2. सुपरसोनिक मिसाइल: इन मिसाइलों की गति ध्वनि की गति (मैक 1) से तेज लेकिन 3 मैक से ज्यादा नहीं होती है, ज्यादातर सुपरसोनिक मिसाइलों की गति मैक 2 से मैक 3 तक होती है। भारत की ब्रह्मोस मिसाइल इसी श्रेणी में आती है|
3. हाइपरसोनिक मिसाइल: इन मिसाइलों की गति ध्वनि की गति से पांच से 10 गुना (मैक 5 से मैक 10) अधिक होती है। फिलहाल रूस के पास ही ऑपरेशनल हाइपरसोनिक मिसाइलें हैं। उसकी किंझल मिसाइल इसी श्रेणी में आती है।

  • भारत रूस के सहयोग से ब्रह्मोस-II मिसाइल के विकास की दिशा में प्रयासरत है, जोकि एक हाइपरसोनिक मिसाइल है।
  • ब्रह्मोस-II की रेंज 1500 किमी तक होगी और इसकी गति ध्वनि की गति से 7-8 गुना ज्यादा (करीब 9000 किमी/घंटे) होगी। इसका परीक्षण 2024 तक होने की उम्मीद है।

प्रोजेक्ट 15 बी

  • भारत का स्वदेशी विध्वंसक निर्माण कार्यक्रम 1990 के दशक के अंत में दिल्ली श्रेणी ( परियोजना 15) के तीन युद्धपोतों के साथ शुरू हुआ और इसके बाद कोलकाता वर्ग (परियोजना 15 ए) के तीन युद्धपोतों को भी भारतीय नौसेना में शामिल किया गया।
  • यह परियोजना पिछले दशक में शुरू किये गए कोलकाता श्रेणी विध्वंसक (परियोजना 15ए) का उन्नत संस्करण है।
  • इस परियोजना के तहत स्टील्थ गाइडेड मिसाइल विध्वंसक(Stealth Guided Missile Destroyers) का निर्माण किया जा रहा है।
  • परियोजना 15बी के तहत चार युद्धपोतों के निर्माण के लिए अनुबंध पर 2011 में हस्ताक्षर किये गए थे । तथा इन सभी युद्धपोतों को वर्ष 2024 तक भारतीय नौसेना में शामिल किए जाने का लक्ष्य रखा गया था।
  • इन्हें विशाखापट्टनम श्रेणी के जहाज़ों के रूप में जाना जाता है।
  • इस प्रोजेक्ट के तहत देश में स्वदेशी तकनीक की मदद से मझगांव डॉक शिपयार्ड लिमिटेड(एमडीएल) द्वारा विशाखापट्टनम, मुर्गागोवा , इंफाल और सूरत के नाम पर चार युद्धपोतों का निर्माण किया जायेगा।
  • प्रोजेक्ट 15 बी के अंतर्गत निर्मित आई.एन.एस. विशाखापट्टनम का वर्ष 2015 में , आई.एन.एस. मुर्गागोवाका 2016 में, आई.एन.एस. इंफालका 2019 में तथा आई.एन.एस. सूरत का 2022 में जलावतरण किया गया।
  • इसमें हवा, सतह या जल के नीचे मौजूद किसी भी प्रकार के खतरे से नौसेना के बेड़े की रक्षा के लिये गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर्स की भी तैनाती की गई है।

आगे की राह

  • ब्रम्होस की तैनाती से भारत की समुद्री सुरक्षा मजबूत होगी हालांकि हिन्द महासागर तथा दक्षिणी चीन सागर में चीन द्वारा आक्रामक समुद्री गतिविधयों के कारण भारत को अपनी समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में और अधिकप्रयास किये जाने की आवश्यकता है|
  • भारत को सामरिक सुरक्षा के क्षेत्र में उपकरणों के स्वदेशी निर्माण की दिशा में ध्यान देना चाहिये जिससे इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होकर मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें|
  • ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल को बेचने को लेकर भारत और फिलीपींस के मध्य करार हो गया है तथा दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ और देशों के साथ बातचीत की जा रही है| भारत को इस दिशा में और अधिक ध्यान देना चाहिये , जिससे देश से रक्षा उपकरणों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा|
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