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विदेश संबधों के बदलते आयाम

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह)

संदर्भ

कोविड जनित व्यवधानों के एक लंबे दौर के बाद दुनिया प्रगति की ओर अग्रसर है। भारत ने भी कूटनीतिक मोर्चे पर विदेश नीति को प्रभावित करने वाले कई नवीन बदलावों को अनुभव किया है, जिनका विश्लेषण आवश्यक है।

नई चुनौतियाँ 

  • तालिबान का उदय
    • कथित तौर पर भारत ने पहले तालिबान सरकार के साथ परोक्ष संपर्क करने का प्रयास किया, किंतु अतिवाद, अल्पसंख्यकों और महिला अधिकारों पर अपनी शर्तों को स्पष्ट करते हुए बाद में मानवीय सहायता देने पर अपनी प्रतिबद्धता को व्यक्त किया। 
    • विगत वर्ष भारत ने अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक सहायता अपनी निर्धारित प्रतिबद्धता से अधिक की है। जो यह दर्शाता है कि भारत तालिबान की राजनीतिक भूमिका को महत्त्व दे रहा है। 
    • पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के गठन का समर्थन किया है, जिससे प्रतीत होता है कि नई सरकार पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान के प्रभाव एवं नियंत्रण में है। 
    • चीन की विस्तारवादी नीति
      • गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में लगभग दो वर्षों से सीमा गतिरोध जारी है और दो क्षेत्रों में विसैन्यीकरण के बावजूद तनाव में कोई व्यापक कमी नहीं हुई है।
      • चीन ने महामारी के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी शक्ति का विस्तार करने, भारत के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों विशेष कर पूर्वी लद्दाख में नए रनवे का निर्माण करने के साथ-साथ आयुध एवं सैन्य तैनाती को बढ़ाया है। 
      • साथ ही, चीन भूटान एवं अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में नए गांवों का निर्माण कर रहा है।
      • ये मुद्दे चीन के न केवल सामरिक बल्कि राजनीतिक एवं रणनीतिक दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित करते हैं।
      • अमेरिका का रुख
        • भारत के दृष्टिकोण से, वर्तमान अमेरिकी प्रशासन ने चीन पर पूर्ववर्ती नीतियों का ही अनुसरण किया है। 
        • अमेरिका ने चीन की विस्तारवादी नीतियों को नियंत्रित करने के लिये व्यापार शुल्क लगाने एवं शीतकालीन ओलंपिक के बहिष्कार की घोषणा की। साथ ही क्वाड देशों के पहले शिखर सम्मेलन का आयोजन एवं यू.के. और ऑस्ट्रेलिया के साथ औकुस (AUKUS) समझौता किया।
        • हालाँकि, अफगानिस्तान छोड़ने में अमेरिका की जल्दबाजी और औकुस समझौते से फ्रांस के नाराज़ होने के अतिरिक्त अमेरिकी साख पर भी प्रश्नचिह्न लगा है। 
        • रूस के साथ रणनीतिक संतुलन
          • अमेरिका, फ्रांस, इजरायल और अन्य देशों के साथ भारत के रणनीतिक विविधतापूर्ण संबंधों के बावजूद रूस विगत सात दशकों से देश के रक्षा उपकरणों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। S-400 मिसाइल प्रणाली के कमीशन होने के बाद भारत पर अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा बढ़ सकता है। 
          • गौरतलब है कि चीन के साथ गतिरोध ने भारत के लिये रूस के रणनीतिक महत्त्व को उजागर किया है।
          • अमेरिका के निकलने के बाद अफगानिस्तान में रूस की उपस्थिति भारत के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकती है। रूस इस क्षेत्र में प्रमुख हितधारकों में से एक के तौर पर उभरा है और चीन के साथ निकटता उसके कुछ निर्णयों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
          • म्याँमार में अशांति
            • फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद म्याँमार में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। हालाँकि, भारत ने पूर्वोत्तर की सीमा सुरक्षा एवं विद्रोही समूहों द्वारा भारतीय सेना को निशाना बनाने की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए म्याँमार के सैन्य शासन के साथ संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया। 
          • पाकिस्तान का दोहरा चरित्र
            • विदित है कि भारत और पाकिस्तान ने वर्ष 2021 की शुरुआत में नियंत्रण रेखा पर शांति के लिये संघर्ष विराम संधि की किंतु जम्मू में ड्रोन हमलों, नागरिकों पर लक्षित हमलों तथा घुसपैठ के प्रयासों ने पाकिस्तान के छद्म युद्ध के स्वरुप में रणनीतिक परिवर्तन का संकेत दिया है।

          भावी चुनौतियाँ एवं समाधान

          • तालिबान के साथ तालमेल
            • भारत ने रूस, ईरान और मध्य एशियाई देशों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वार्ता की पहल की एवं पाँच मध्य एशियाई देशों को गणतंत्र दिवस समारोह में आमंत्रित किया है जो तालिबान के परिप्रेक्ष्य में एक संतुलनकारी कदम हो सकता है। 
            • पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय सहायता को पहुँच दे कर तालिबान शासन की मदद करने में अमेरिका, चीन, रूस और खाड़ी के देशों के साथ संपर्क स्थापित कर रहा है।
            • चूँकि आई.एस.आई. द्वारा चुने हुए तालिबानी नेताओं और गुटों के माध्यम से पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान की आतंरिक परिस्थितियों को नियंत्रित करता है, इसलिये  अफगानिस्तान केंद्रित क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के साथ भारत का जुड़ाव सीमित महत्त्व का है।
            • भारत को अफ़ग़ानिस्तान में कश्मीर और अन्य मुद्दों को लेकर कट्टरपंथी समूहों की गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
            • चीन को घेरने की नीति
              • चीन के साथ गतिरोध पर भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया का संचालन इस सोच से प्रेरित है कि चीनी विस्तारवाद के विरोध में किसी एक देश को खड़ा होना पड़ेगा, जिसका परिणाम है कि पिछले दो वर्षों से पूर्वी लद्दाख में कठोर सर्दी के बीच भारतीय सैनिकों ने चीन को चुनौती दी है।
              • भारत को चीन का मुकाबला करने के लिये अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी और यू.के. सहित अन्य देशों के समर्थन की आवश्यकता है। वर्ष 2022 के दूसरे क्वाड शिखर सम्मेलन (जापान) को नए अवसर के तौर पर देखा जा सकता है। 
              • चीन में होने वाला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन गतिरोध को दूर करने का एक अवसर हो सकता है क्योंकि सितंबर 2017 में चीन में हुए शिखर सम्मेलन से पहले डोकलाम सीमा गतिरोध को भी सुलझा लिया गया था।
              • पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले की पुस्तक ‘द लॉन्ग गेम’ के अनुसार ‘चीन आर्थिक और सैन्य रूप से अधिक शक्तिशाली बन कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आधिपत्य स्थापित करना चाहता है, जिससे भारत और चीन के हित एक-दूसरे से टकराने लगेंगे और अधिक से अधिक मुद्दों को विवाद की परिधि में ला कर चीन सौदेबाज़ी के माध्यम से उन्हें हल करना चाहता है’।
              • पाकिस्तान में बदलाव की आहट
                • पाकिस्तान के सेना प्रमुख का कार्यकाल नवंबर, 2022 में समाप्त हो रहा है। नए प्रमुख की नियुक्ति से नागरिक-सैन्य संबंधों का परीक्षण होना है। इस दावेदारी में पड़ोसी देशों के साथ स्थिति को जटिल बनाने वाले निर्णय भी लिये जा सकते हैं।
                • साथ ही, पाकिस्तान वर्ष 2023 के आम चुनाव से पहले सार्क शिखर सम्मेलन की मेजबानी करना चाहता है।
                • अन्य पड़ोसी देशों के साथ समीकरण
                  • श्रीलंका में सरकार एवं तमिलों को लुभाने के साथ-साथ नेपाल की राजनीति में भी चीन का दखल बढ़ा है। इस क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
                  • थिंक टैंक पत्रिका ‘कार्नेगी इंडिया’ के अनुसार, ‘इन देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक संबंधों के कारण चीन का प्रभाव अपेक्षाकृत सीमित है। हालाँकि, यह संतुलन धीरे-धीरे चीन की ओर झुक रहा है, क्योंकि चीन विकासात्मक भागीदार के रूप में भूमिका निभा सकता है, साथ ही क्षेत्रीय शक्ति- भारत के साथ संतुलनकारी भूमिका निभा सकता है’।
                  • अन्य चुनौतियों में मालदीव और बांग्लादेश में वर्ष 2023 में होने वाले चुनाव भी शामिल हैं। इन देशों में चुनाव पूर्व भारत विरोधी गतिविधियाँ आमतौर पर बढ़ जाती है।
                  • वैश्विक पहुँच
                    • गणतंत्र दिवस समारोह में आमंत्रित पाँच मध्य एशियाई देशों में से तीन अफ़गानिस्तान से सीमा साझा करते हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन, 2023 भी भारत में प्रस्तावित है।
                    • भारत अप्रैल-मई में होने वाले फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव और नवंबर में होने वाले अमेरिकी मध्यावधि चुनावों पर सूक्ष्म दृष्टि रखेगा।
                    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक अस्थायी सदस्य के रूप में भारत अपने अंतिम वर्ष में स्थायी प्रभाव छोड़ना चाहेगा, जैसा कि यू.एन.एस.सी. की अध्यक्षता में अफगानिस्तान के प्रस्ताव पर देखा गया था।

                    वैक्सीन कूटनीति

                    भारत टीकों के वितरण और आर्थिक सहायता के मामले में एक अग्रणी देश है। भारत को चीन से बराबरी करने के लिये वैक्सीन रणनीति में तेजी लाना होगा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र एवं क्वाड देशों के लिये वैक्सीन पहल के साथ-साथ वैक्सीन उत्पादन में क्षमता निर्माण को भी आगे बढ़ाना होगा।

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