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जलवायु परिवर्तन और लोक चित्रकलायें 

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - गोंड चित्रकला, वरली पेंटिंग, मधुबनी पेंटिंग)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप)

संदर्भ 

  • हाल ही में आयोजित एक प्रदर्शनी इकोज ऑफ द लैंड में कलाकारों द्वारा लोक चित्रकलाओं का प्रयोग कर जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को संबोधित किया गया।
    • इसमें मुख्य रूप से गोंड कला, वरली पेंटिंग और मधुबनी चित्रकला का प्रयोग किया गया। 
  • चित्रकलाओं के माध्यम से, मौसम की चरम घटनाओं - अत्यधिक गर्मी, बारिश, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और पर्यावरण संकट की गंभीरता को रेखांकित किया जा रहा है।
  • यह आयोजन पृथ्वी के साथ हमारे महत्वपूर्ण और नाजुक संबंधों को दर्शाता है।

गोंड चित्रकला

  • गोंड चित्रकला, लोककला का ही एक रूप है, जो गोंड जनजाति की उपशाखा परधान जनजाति के कलाकारों द्वारा चित्रित की जाती है। 
  • इसमें गोंड कथाओं,गीतों एवं कहानियों का चित्रण किया जाता है, जो परम्परागत रूप से परधान समुदायों के द्वारा गोंड देवी-देवताओं को प्रसन्न करने हेतु सदियों से गायी जाती चली आ रही है।
  • गोंड कला मनुष्य के अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ घनिष्ठ संबंध को प्रतिबिंबित करती है, तथा जीवन को कला के केंद्रीय विषय के रूप में शामिल करती है
  • इस चित्रकला में चित्रों का उपयोग घरों में मिट्टी की दीवारों पर, शादी-विवाह , जन्म या अन्य धार्मिक अवसरों पर किया जाता है।
  • इस कलारूप में चित्रांकन हेतु पिसे हुए चावल के घोल , पीली मिट्टी , गेरू और अन्य प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।
    • रंग आमतौर पर लकड़ी का कोयला, रंगीन मिट्टी, पौधे के रस, पत्तियों और यहां तक कि गाय के गोबर जैसी वस्तुओं से प्राकृतिक रूप से प्राप्त किए जाते है।
  • गोंड चित्रों का एक बहुत ही आकर्षक पहलू सफेद, लाल, नीले और पीले जैसे चमकीले रंगों का उपयोग है।
  • ये चित्रकला गोंड लोगों के स्वभाव और रहन-सहन का सहज प्रदर्शन करती है।

वरली पेंटिंग

  • वरली चित्रकला, का प्रयोग महाराष्ट्र की वरली जनजाति द्वारा दैनिक और सामाजिक घटनाओं की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है।
  • इन चित्रों का निर्माण मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा घरों की दीवारों को सजाने के लिए किया जाता है।
  • मिट्टी की दीवारों पर चित्रित, ये चित्र निष्पादन में पूर्व-ऐतिहासिक गुफा चित्रों के बहुत नजदीक है, और शिकार, नृत्य, बुवाई तथा कटाई जैसी गतिविधियों में संलग्न मानव आकृतियों के दृश्यों को चित्रित करते है।
  • इसमें दैनिक जीवन के दृश्यों तथा मनुष्य और जानवरों के चित्रों को एक ढीले लयबद्ध पैटर्न में बनाया जाता है।
  • वरली कला का अधिकांश भाग सर्पिल और खुले छोरों में नृत्य करने वाले मनुष्यों पर केंद्रित है।
  • पालघाट (उर्वरता की देवी) को देवी-देवताओं के साथ चित्रित किया गया है, जबकि वे आत्माएं, जिन्होंने मानव रूप धारण किया है, उन्हें पुरुष देवताओं के बीच चित्रित किया गया है।
  • प्रारंभ में, पेंटिंग सिर्फ दीवारों पर की जाती थीं, लेकिन समय के साथ, कई अन्य वस्तुओं पर भी वरली कला का चित्रण किया जाने लगा है।
  • वरली चित्रों में मूल रूप से केवल दो रंगों का प्रयोग किया जाता था भूरा रंग और चावल का पेस्ट।
    • हालांकि, अब वरली कला के पृष्ठभूमि के रंगों में मेंहदी, इंडिगो, गेरू, इत्यादि का प्रयोग भी किया जाने लगा है।

मधुबनी पेंटिंग 

  • मधुबनी पेंटिंग, नेपाल और बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित है। 
  • यह लोक चित्रकला की एक प्राचीन शैली है, जिसका उल्लेख रामायण जैसे कुछ प्राचीन भारतीय ग्रंथों में भी मिलता है।
  • इन चित्रों को त्यौहार, धार्मिक अनुष्ठान जैसे विशेष अवसरों पर चित्रित किया जाता  है। 
  • ये चित्र अपने रूपांकनों और चमकीले मिट्टी के रंगों के उपयोग के कारण लोकप्रिय है।
  • मधुबनी चित्रों में प्रयुक्त रंग आमतौर पर पौधों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते है।
    • चित्र सामान्यता चावल, हल्दी, पराग, रंगद्रव्य, नील, विभिन्न फूलों, चंदन, और विभिन्न पौधों और पेड़ों की पत्तियों आदि से प्राप्त रंगों का उपयोग करके बनाये जाते है।
  • परंपरागत रूप से, मधुबनी चित्रों को उंगलियों और टहनियों का उपयोग करके बनाया जाता था, और अब इनके निर्माण में माचिस जैसी वस्तुओं का उपयोग भी किया जाने लगा है।
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