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डाटा पहुँच एवं उपयोग नीति मसौदा

(मुख्य परीक्षा, समान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 व 3 : राजव्यवस्था : संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मामले, प्रौद्योगिकी: सूचना प्रौद्योगिकी)

संदर्भ

हाल ही में जारी ‘डाटा पहुँच एवं उपयोग नीति’ मसौदा के विविध आयामों की विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा की जा रही है तथा भविष्य में मसौदे से जुड़े मानदंडों, नियमों और निकायों से संबंधित कुछ चिंताओं और आशंकाओं पर भी विमर्श किया जा रहा है।

भारतीय संदर्भ में डाटा का महत्त्व

  • वर्ष 2020 के आँकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 62.2 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिनके वर्ष 2025 तक 45% बढ़ने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2026 तक 5G उपयोगकर्ताओं की संख्या के 33 करोड़ तक होने का अनुमान है। इस दौरान इंटरनेट उपयोगकर्ताओं द्वारा मासिक डाटा खर्च के तीन गुना (40 जीबी प्रति माह) तक होने का अनुमान है।
  • वित्तीय वर्ष 2020 के आँकड़ों के मुताबिक आईटी क्षेत्र में लगभग 45 लाख लोग संलग्न हैं। वर्ष 2025 तक इसके 6.6 करोड़ तक होने का अनुमान है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता रिपोर्ट, 2021 के मुताबिक भारत विश्व के शीर्षस्थ देशों में शमिल है। (सूची में भारत का स्थान 20वाँ है)।
  • एक अनुमान के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने में अकेले नवाचारी तकनीकी क्षेत्र 1 ट्रिलियन डॉलर का योगदान कर सकता है।

मसौदा नीति का परिचय

  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) ने फरवरी 2022 में ‘ड्राफ्ट इंडिया डाटा एक्सेसिबिलिटी एंड यूज पॉलिसी, 2022’ को सार्वजनिक परामर्श के लिये जारी किया।
  • मसौदा नीति सूचना आधारित निर्णयन तथा सार्वजनिक सेवाओं के नागरिक-केंद्रित वितरण एवं अर्थव्यवस्था-व्यापी डिजिटल नवाचार हेतु सार्वजनिक क्षेत्र के डाटा का उपयोग करने के लिये मज़बूत मंच तैयार करेगी।
  • सरकार का यह ‘GovTech 3.0’ दृष्टिकोण, सार्वजनिक क्षेत्र के डाटा को अनलॉक करने के लिये राष्ट्रीय डाटा साझाकरण और अभिगम्यता नीति (NDSAP), 2012 के ओपन गवर्नमेंट डाटा (ओ.जी.डी.) दृष्टिकोण को उन्नत करता है।
  • यह अभिशासन और आर्थिक विकास के लिये डाटा-आधारित बुद्धिमत्ता का उपयोग करने पर आधारित है।
  • मसौदा नीति गैर-व्यक्तिगत डाटा शासन पर इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की विशेषज्ञों की समिति की वर्ष 2020 की रिपोर्ट द्वारा अनुशंसित ट्रस्टीशिप प्रतिमान में स्थानांतरित करने की बजाय सरकारी एजेंसियों को उनके द्वारा एकत्र और संकलित डाटा सेट के ‘मालिक’ के रूप में मानने के एन.डी.एस.ए.पी. प्रतिमान का पालन करती है।
  • मसौदा नीति में नागरिक-लक्षित सेवा वितरण के लिये सरकार-से-सरकार(G2G) डाटा साझा करने के संबंध में उपबंध है, जो कि इस प्रकार है- ‘स्वीकृत डाटा इन्वेंट्री को सरकार-व्यापी, खोज योग्य डाटाबेस में संघटित किया जाएगा’।
  • साथ ही, यह मसौदा नीति कई ऐतिहासिक चुनौतियों का समाधान करेगी और सार्वजनिक क्षेत्र के पास उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण गैर-व्यक्तिगत डाटा (एन.पी.डी.) तक पहुँच एवं उसके उपयोग को अधिकतम करने का प्रयास करेगी।

ऐतिहासिक चुनौतियाँ

  • ओपन गवर्नमेंट डाटा (ओ.जी.डी.) प्लेटफॉर्म पर धीमी प्रगति,
  • डाटा सेट का विभागीय साइलो में विखंडन, डाटा अनामीकरण उपकरण (Anonymisation tools) की अनुपस्थिति, डाटा स्टीवर्डशिप मॉडल के विकास पर अपर्याप्त ध्यान;
  • डाटा-साझाकरण का समर्थन करने के लिये डाटा गुणवत्ता मानकों, लाइसेंसिंग और मूल्यांकन ढाँचे की कमी।
  • यह मसौदा नीति इन उपर्युक्त ऐसिहासिक चुनौतियों का समाधान भी करती है।

मसौदा नीति संबंधी चिंताएँ

  • मसौदा नीति डाटा-समर्थित सामाजिक परिवर्तन के तरीके को सफल बनाने हेतु मानदंडों, नियमों और तंत्रों के निर्धारण के विषय में मौन है।
  • यह मसौदा गोपनीयता/डाटा के दुरुपयोग के जोखिम को पारदर्शिता-जवाबदेहिता के विचारों के साथ संतुलन बनाने में नैतिक और प्रक्रियात्मक दुविधाओं को उत्पन्न करता है।
  • सार्वजनिक अनुक्षेत्र में संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी की उपलब्धता पर प्रतिबंध और भारत के आर.टी.आई. के बीच समन्वय लाने में एन.डी.एस.ए.पी. का पूर्व से अधूरा कार्य इस मसौदे में भी अनुत्तरित है।
  • सेवा वितरण के दौरान उत्पन्न नागरिक डाटा सेट में व्यक्तिगत सत्यापनकर्ता होते हैं, इसलिये अनामीकरण मानकों के पालन से यह उम्मीद रहती है कि गोपनीयता के जोखिमों के खिलाफ यह पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है। किंतु अनाम नागरिक डाटा सेट के मामले में डाउनस्ट्रीम प्रसंस्करण समूह गोपनीयता के लिये गंभीर चुनौती उत्पन्न कर सकता है। चूँकि भारत में कोई व्यक्तिगत डाटा संरक्षण कानून नहीं है, इसलिये मसौदा नीति के लागू होने से विशेष तौर पर डाटा प्रसंस्करण से जुड़े खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।
  • जिस प्रकार पूर्ववर्ती नीतियाँ सार्वजनिक डाटा सेट के नियमित अद्यतन के लिये दायित्वों की उपेक्षा करती हैं, उसी प्रकार यह मसौदा भी डाटा ट्रस्ट फ्रेमवर्क की उपेक्षा के माध्यम से सरकारी एजेंसियों को डाटा लाइसेंसिंग की शर्तों को निर्धारित करने के लिये एकतरफा विशेषाधिकार देता है।

नवाचारी दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • ट्रस्टीशिप-आधारित दृष्टिकोण को अपनाते हुए प्रस्तावित मसौदा नीति को डाटा गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क और कोई भी संबद्ध लागत गैर-व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये डाटा एक्सेसिबिलिटी में बाधा उत्पन्न न करती हो, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के डाटा की रक्षा भी करती हो।
  • गौरतलब है कि आर्थिक नवाचार के मामले में बड़ी फर्मों, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय बिग टेक का कब्जा है। वर्तमान संदर्भ में मूल्यवान डाटा संसाधन निजी क्षेत्र के पास हैं, जबकि विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक नवाचार राज्य की सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अभिकर्ताओं के व्यापक डाटा-साझाकरण को उत्प्रेरित करने की क्षमता पर निर्भर करता है। अतः नीति निर्माताओं को उचित संज्ञान लेना चाहिये।
  • उदाहरणतया, यूरोपीय संघ ने स्वास्थ्य, ऊर्जा और कृषि जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में स्वैच्छिक डाटा-साझाकरण को प्रोत्साहित करने के लिये सामान्य, अंतर-संचालन योग्य डाटा तंत्र के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • सामान्य डाटा तंत्र व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा और अद्यतन उपभोक्ता संरक्षण व प्रतिस्पर्धा कानूनों के पूर्ण अनुपालन में सुरक्षित और विश्वास-आधारित पहुँच और उपयोग के लिये शासन ढाँचा प्रदान करते हैं। डाटा नवाचार को लोकतांत्रिक बनाने के लिये स्वैच्छिक डाटा-साझाकरण के लिये सही परिस्थितियाँ बनाना आवश्यक है।

डाटा स्टीवर्डशिप मॉडल

  • गैर-व्यक्तिगत डाटा अभिशासन (2020) रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति द्वारा उच्च-मूल्य वाले डाटा सेट के लिये प्रस्तावित डाटा स्टीवर्डशिप मॉडल शिक्षाप्रद है।
  • इस मॉडल में एक सरकारी/गैर-लाभकारी संगठन किसी विशेष क्षेत्र में उच्च-मूल्य वाले डाटा सेट (केवल गैर-व्यक्तिगत डाटा) के निर्माण के लिये एक स्वतंत्र संस्थागत तंत्र, जैसे- गैर-व्यक्तिगत डाटा प्राधिकरण (एन.पी.डी.ए.) से अनुरोध कर सकता है।
  • विशिष्ट सार्वजनिक हित जिसके लिये डाटा की माँग की जा रही हो उसके उद्देश्य को स्पष्ट करना और साथ ही एक उपयुक्त सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया के आधार पर सामुदायिक क्रय प्रक्रिया भी संचालित की जा सकती है।
  • साथ ही, एक बार इस तरह के अनुरोध को एन.पी.डी.ए. द्वारा अनुमोदित करने के बाद डाटा ट्रस्टी को डाटा सेट के सभी प्रमुख संरक्षकों से डाटा-साझाकरण का अनुरोध करने का अधिकार होता है, जो कि उच्च-मूल्य वाले सार्वजनिक और निजी डाटा सेट श्रेणी से संबंधित होता है।
  • निजी क्षेत्र के संरक्षकों का यह अनिवार्य कर्तव्य होता है कि वे विशिष्ट अप्रसंस्कृत डाटा क्षेत्रों हेतु ऐसे अनुरोधों का पालन करें।
  • वे अनुमानित डाटा में केवल व्यापार गुप्त सुरक्षा का दावा कर सकते हैं। एक संरक्षक डाटा द्वारा डाटा ट्रस्टी के अनुरोध को अस्वीकार करने के मामले में, विवाद को हल करने करने का अंतिम अधिकार एन.पी.डी.ए. के पास है।
  • हालाँकि, इस तरह की अनिवार्य डाटा-साझाकरण व्यवस्था के लिये विस्तृत जाँच और संतुलन अभी विकसित करना बाकी है। वहीं उच्च मूल्य डाटा सामाजिक ज्ञान साझा संपत्ति के रूप में एक समुच्चय है, जिसे सार्वजनिक और निजी नवाचार के लिये डाटा उपयोग को संतुलित करने हेतु निजी डाटा संग्राहकों के एकाधिकार को हतोत्साहित किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • वस्तुतः डाटा के लिये हमें एक नए सामाजिक अनुबंध की आवश्यकता है; जिसके द्वारा डाटा साझा संपत्ति के एक अनुपयुक्त साझा संपत्ति के रूप में शासित हों जो सभी नागरिकों से संबंधित हों।
  • सरकार जनहित के लिये डाटा के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु एक संरक्षक या ट्रस्टी का कार्य करे।
  • डाटा प्रशासन के लिये जवाबदेह संस्थागत तंत्र के माध्यम से डाटा मूल्य का लोकतंत्रीकरण सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
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