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भारत में इलेक्ट्रॉनिक वाहन का भविष्य

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण)

संदर्भ

भारत सरकार अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत है। इसी क्रम में, सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों (EV- ई.वी.) के विकास, प्रसार और उपयोग को लेकर प्रतिबद्ध है।    

भारत में ई.वी. की सम्भावनाएँ

  • भारत दुनिया का पाँचवां सबसे बड़ा कार बाज़ार है। निकट भविष्य में भारत शीर्ष तीन बाज़ारों में शामिल हो सकता है क्योंकि वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ ग्राहकों को मोबिलिटी समाधान (आवागमन सुविधा) की आवश्यकता होगी।
  • देश को परिवहन क्रांति की आवश्यकता है। महँगे आयातित ईंधन पर निर्भर कारों की बढ़ती संख्या और बुनियादी ढाँचे की समस्याओं के कारण शहरों में बढ़ती अव्यस्था के साथ-साथ तीव्र वायु प्रदूषण वर्तमान समय के अनुकूल नहीं है। परिवहन क्रांति में चलने की बेहतर व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन, रेलवे, सड़कें और बेहतर कारों जैसे कई घटक शामिल होंगे।
  • ऐसा अनुमान है कि वर्तमान में बिकने वाली प्रत्येक सौ कारों में से दो विद्युत आधारित होती हैं। वर्ष 2020 में ई.वी. की बिक्री 1 मिलियन तक पहुँच गई है। वैश्विक वाहन स्टॉक में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 1% और वैश्विक कारों की बिक्री में इसकी हिस्सेदारी 2.6% है।

परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करना

  • परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर संक्रमण एक आशाजनक वैश्विक रणनीति है। भारत उन चुनिंदा ­देशों में शामिल है जो वैश्विक ‘ई.वी.30@30’ (EV30@30) अभियान का समर्थन करता है। इस अभियान का लक्ष्य वर्ष 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में कम से कम 30% की हिस्सेदारी इलेक्ट्रिक वाहनों की करनी है।
  • प्रधानमंत्री ने भी अक्षय ऊर्जा से भारत की 50% ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने, वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन कम करने और वर्ष 2070 तक नेट-जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने जैसे विचारों का समर्थन किया है।

ई.वी. के विकास से लाभ

  • पेरिस समझौते के तहत स्थापित वैश्विक जलवायु एजेंडे के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों पर अधिक जोर दिया जा है। कार्बन उत्सर्जन को कम करके वैश्विक तापन को नियंत्रित करने के उद्देश्य से इस एजेंडे को स्थापित किया गया था। ई.वी. का विकास समग्र ऊर्जा सुरक्षा स्थिति में सुधार लाने में भी योगदान कर सकता है क्योंकि भारत कुल कच्चे तेल की आवश्यकता का 80% से अधिक आयात करता है
  • स्थानीय स्तर पर ई.वी. विनिर्माण उद्योग से रोजगार सृजन में भी गति आ सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, विभिन्न ग्रिड समर्थन सेवाओं के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों से ग्रिड के मजबूत होने और सुरक्षित व स्थिर ग्रिड संचालन को बनाए रखते हुए उच्च नवीकरणीय ऊर्जा निवेश को अनुकूल बनाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

सरकार के प्रयास

  • भारत सरकार के उपायों में उपभोक्ता पक्ष के लिये ‘फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स’ (FAME II) योजना से लेकर आपूर्तिकर्ता पक्ष के लिये ‘उन्नत रसायन सेल’ (Advanced Chemistry Cell) के उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शामिल हैं।
  • साथ ही, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं के लिये हाल ही में ‘मोटर वाहन पुर्जों’ के उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शुरू की गई है।
  • इन योजनाओं से लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देगा। साथ ही, यह देश में पूर्णरूप से घरेलू आपूर्ति श्रृंखला के विकास और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों व बैटरी की माँग में वृद्धि करेगा।
  • इससे न केवल देश के विदेशी मुद्रा के संरक्षण में मदद मिलेगी बल्कि भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने और पेरिस जलवायु समझौते के बेहतर अनुपालन में भी मदद मिलेगी।

बैटरी: एक मुख्य घटक

  • बैटरी लागत में निरंतर कमी और इनके बढ़ती प्रदर्शन क्षमता वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की माँग में वृद्धि का कारण रही है। अनुमान है कि 2020-30 तक भारत में बैटरियों की संचयी माँग लगभग 900-1100 GWh होगी।
  • हालाँकि, भारत में बैटरियों के लिये विनिर्माण आधार की अनुपस्थिति चिंतनीय है और बैटरियों की बढ़ती माँग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। भारत ने वर्ष 2021 में $1 बिलियन से अधिक मूल्य की लिथियम-आयन सेलों (Cells) का आयात किया है।
  • ई-मोबिलिटी और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहलों के मद्देनज़र सतत विकास के लिये बैटरी भंडारण एक अच्छा विकल्प है।
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