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जीएम सरसों 

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - जीएम सरसों, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र:3 - विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

चर्चा में क्यों 

  • हाल ही में आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने जीएम मस्टर्ड (जीएम सरसों) के बीज तैयार करने और इसकी बुआई से जुड़े परीक्षण करने की अनुमति प्रदान की है।

जीएम सरसों 

  • इसे धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (Dhara Mustard Hybrid-11) के नाम से जाना जाता है।
  • इसका विकास, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
  • इसके लिए सरसों की भारतीय किस्म वरुणा की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा – 2 से कराई गयी। 
  • डीएमएच -11 को ट्रांसजेनिक तकनीक के माध्यम से बनाया गया है, जिसमें मुख्य रूप से बार्नेस और बारस्टार जीन शामिल हैं। 
    • बार्नेस जीन, बाँझपन प्रदान करता है, जिससे यह स्व-परागण नहीं करती है 
    • जबकि बारस्टार जीन डीएमएच - 11 की उपजाऊ बीज पैदा करने की क्षमता को पुनर्स्थापित करता है।
  • डीएमएच -11 एक कीट और रोग रोधी किस्म है, जिससे इसकी खेती करने पर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में कमी सकती है।

पक्ष में तर्क 

  • भारत को अपनी खाद्य तेल की 70% घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पाम, सोयाबीन और सनफ्लावर समेत विभिन्न किस्म के तेलों का आयात करना पड़ता है।
  • भारत में सरसों की उत्पादकता लगभग एक टन प्रति हेक्टेयर है, जो कनाडा, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तुलना में एक तिहाई है।
  • डीएमएच -11 एक पारंपरिक सरसों की किस्म से लगभग 30% अधिक उपज प्रदान करती है।
  • जीएम सरसों की खेती से उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे खाद्य तेल के लिए भारी आयात बिल को कम किया जा सकेगा।

विपक्ष में तर्क 

  • जीएम सरसों से जैव सुरक्षा, पर्यावरण, मानव और पशु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़  सकता है।
  • डीएमएच -11 में बाहरी जीन है, जो पौधे को दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बनाता है।
    • इस तरह यह किसानों को कृषि रसायनों के चुनिंदा ब्रांडों का ही इस्तेमाल करने के लिए मजबूर करेगा।
  • इससे फसलों की स्थानीय किस्मों को खतरा हो सकता है।

जीएम फसलें 

  • जीएम फसलों के जीन में आनुवंशिक अभियांत्रिकी की मदद से कृत्रिम रूप से संसोधन करके ऐसे गुणों को शामिल किया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से उस फसल में नहीं पाये जाते है।
    • ऐसे गुणों में शामिल हैं - उपज में वृद्धि, रोग तथा खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, सूखे से प्रति प्रतिरोधक क्षमता, बेहतर पोषण मूल्य।

जीएम फसलों के लाभ

  • जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के बीजों में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग कर वांक्षित बदलाव किये जा सकते है। 
  • अत: ये फसलें सूखा-रोधी होती है, जिससे प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी इनका उत्पादन किया जा सकता है। 
  • इनमें कीटनाशक तथा फर्टिलाइजर डालने की भी आवश्यकता भी परंपरागत फसलों की तुलना में कम पड़ती है। 
  • इनकी उत्पादन क्षमता भी परंपरागत फसलों की तुलना में कई गुना अधिक होती हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

जीएम फसलों के नुकसान

  • इन फसलों का सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष है, कि इनके बीज फसलों से विकसित नहीं किए जा सकते, तथा बीजों का दोबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है। 
  • इनके बीजों को कंपनीयों से ही खरीदना पड़ता है, कंपनियां इन बीजों पर अपना एकाधिकार रखती हैं, तथा महंगे दामों पर बेचती हैं। 
  • इनकी वजह से फसलों की स्थानीय किस्मों के लिए खतरा पैदा हो जाता है, तथा जैव-विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)

  • यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है।
  • यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के उपयोग से जुड़ी गतिविधियों का मूल्यांकन करती है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उनसे प्राप्त उत्पादों के व्यावसायिक प्रयोग से पहले जीईएसी की मंजूरी अनिवार्य होती है।
  • यह भारत में खतरनाक सूक्ष्मजीवों या आनुवंशिक रूप से संसोधित जीवों के उपयोग, निर्माण, भंडारण, आयात और निर्यात को नियंत्रित करती है।
  • इस समिति के पास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,1986  के तहत दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार भी है।

भारत में जीएम फसलों को विनियमित करने वाले अधिनियम और नियम

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 
  • जैविक विविधता अधिनियम, 2002 
  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 
  • औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम (8वां संशोधन), 1988 

प्रश्न- बोलगार्ड I और बोलगार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है?

(a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्धन

(b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास

(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन

(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

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