New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

भारत- यूरोपीय संघ व्यापार और तकनीकी परिषद

(मुख्य परीक्षा ; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध ; क्षेत्रीय और वैश्विक समूह, भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान- उनकी संरचना, अधिदेश)

संदर्भ

भारतीय प्रधानमंत्री और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने यूरोपीय संघ और भारत के बीच व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद् (TTC) की स्थापना पर सहमति व्यक्त की है।

संयुक्त वक्तव्य के अन्य प्रमुख विषय 

  • भारत-यूरोपीय संघ रोडमैप 2025 को लागू करने में हुई प्रगति की समीक्षा।
  • भारत-यूरोपीय संघ कनेक्टिविटी साझेदारी और यूरोपीय संघ के नए स्वरूप के मध्य एक मज़बूत तालमेल पर ध्यान केंद्रित करना तथा वैश्विक गेटवे रणनीति एवं इसके कार्यान्वयन में तेज़ी लाना।
  • शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्रतिबद्धता से जुड़े तकनीकी सहयोग संबंधी विषय।

व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद् की स्थापना के निहितार्थ

  • यूरोपीय संघ (ई.यू.) और अमेरिका की तर्ज़ पर टी.टी.सी. की स्थापना भारत-ई.यू. संबंधों के इतिहास को एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक आयाम दे सकती है।
  • इस परिषद् का उद्देश्य दोनों पक्षों के मध्य उभरती प्रौद्योगिकियों के रणनीतिक पहलुओं और विश्वसनीय भागीदारी के निर्माण एवं आर्थिक संबंधों में अभिसरण की रूपरेखा सुनिश्चित करना है।
  • राजनीतिक विश्वास और रणनीतिक समन्वय तंत्र यूरोपीय संघ और भारत के बीच व्यापार, विश्वसनीय प्रौद्योगिकी और सुरक्षा गठजोड़ संबंधी चुनौतियों से निपटने एवं आपसी सहयोग को गहरा करने की अनुमति देगा।
  • यह यूरोपीय संघ और भारत में सभी लोगों के लाभ के लिये रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करेगा।
  • व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद् स्थापित करने का निर्णय अपने किसी भी भागीदार के साथ भारत के लिये यह पहला अवसर है और यूरोपीय संघ के लिये दूसरा। इससे पूर्व ई.यू. ने अमेरिका के साथ एक टी.टी.सी. स्थापित किया है।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक वातावरण संबंधों में गहनता और रणनीतिक जुड़ाव की आवश्यकता को प्रेरित करते हैं। इन संबंधों को राजनीतिक रूप से संचालित करने के लिये परिषद् राजनीतिक गति और संरचना प्रदान करेगा।
  • यह निर्णय तकनीकी कार्य का समन्वय तथा कार्यान्वयन सुनिश्चित करने हेतु राजनीतिक स्तर पर रिपोर्ट करने और यूरोपीय व भारतीय अर्थव्यवस्थाओं की सतत प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुवर्ती कार्यवाही करेगा।

व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद् की पृष्ठभूमि

  • वस्तुतः इसकी स्थापना का विचार पहली बार ई.यू. द्वारा ट्रम्प प्रशासित यू.एस. के साथ संबंधों में निष्क्रियता को कम करने और नई तकनीकों के लिये मानकों को स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 2020 में चर्चा में आया।
  • अमेरिकी चुनाव के पश्चात् ई.यू. ने एक अधिक व्यवस्थित टी.टी.सी. के माध्यम से ई.यू.-अमेरिका की साझेदारी को पुनः मज़बूत करने के लिये पहल किया। 
  • अंततः इसकी स्थापना जून 2021 में हुई। हाल ही में, ई.यू. ने भारत के साथ इसी तरह की व्यवस्था को प्रारंभ किया है। 

यूरोपीय संघ  

वर्तमान सदस्य संख्या : 27 देश

मुख्यालय : ब्रुसेल्स, बेल्जियम

वर्तमान प्रमुख : उर्सुला वॉन डेर लेयेन

वर्तमान सदस्य: ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस, चेक गणराज्य, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन और स्वीडन। यूनाइटेड किंगडम, जो यूरोपीय संघ का संस्थापक सदस्य था, ने वर्ष 2020 में संगठन छोड़ दिया।

स्थापना (मास्ट्रिच संधि द्वारा) : 1 नवंबर, 1993

इस संधि को अधिकार, आप्रवास, शरण, और न्यायिक मामलों के क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाकर एकल मुद्रा (यूरो), एकीकृत विदेश और सुरक्षा नीति, और सामान्य नागरिकता के माध्यम से यूरोप में राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाव देने हेतु डिज़ाइन किया गया था। 

प्रमुख बिंदु

  • मूल यूरोपीय संघ पश्चिमी यूरोप तक ही सीमित था तथा इसने 21वीं सदी के आरंभ में मध्य और पूर्वी यूरोप में एक मज़बूत विस्तार किया। 
  • नीस की संधि पर वर्ष 2001 में हस्ताक्षर किया गया तथा 1 फरवरी, 2003 को लागू किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्वी यूरोप के देशों को नए सदस्य के रूप में शामिल करना था
  • ई.यू. को शांति और लोकतंत्र को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2012 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।

भारत-ई.यू. टी.टी.सी. की आवश्यकता

  • द्रुत गति से बदलते हुए भू-राजनीतिक वातावरण में टी.टी.सी. ‘राजनीतिक गति’ प्रदान करेगा। 
  • चूँकि ई.यू. में एक बड़ी नौकरशाही व्यवस्था है, जहाँ छोटे मुद्दे बड़े स्तर पर प्रगति को बाधित करते हैं। जैसे- भारत-ई.यू. के मध्य पोर्टो शिखर सम्मेलन में व्यापार वार्ता को पुनः आरंभ करने हेतु सहमति बनने के नौ माह उपरांत भी इसे लागू करने की प्रक्रिया धीमी रही।
  • वहीं चीन की आर्थिक आक्रामकता और रूस की सैन्य कार्यवाहियाँ को ई.यू. को क्वाड दृष्टिकोण के साथ तालमेल रखते हुए उसकी नीतियों को इंडो-पैसिफिक के करीब राजनीतिक रूप से संरेखित करने हेतु मजबूर कर रही है।
  • अतः ई.यू. ने आर्थिक मतभेदों को हल करने हेतु राजनीतिक दिशानिर्देशन में निरंतरता की आवश्यकता को महसूस किया, जो प्रायः दोनों पक्षों के मध्य किसी महत्त्वाकांक्षी व्यापार व्यवस्था को संचालित करने में बाधा बनती थी।
  • अमेरिका के विपरीत, जहाँ विवाद और मतभेद टी.टी.सी. चर्चाओं पर हावी हैं, भारत और ई.यू. भी एक अधिक सकारात्मक एजेंडा तैयार कर सकते हैं।
  • एफ.टी.ए. के लिये होने वाली आगामी बैठक जिसमें वाणिज्य मंत्री, विदेश मंत्री और आई.टी. मंत्रियों के शामिल होने की संभावना है, की प्रगति टी.टी.सी. के लिये परीक्षण का पहला बड़ा असर होगा।

टी.टी.सी. के भू-राजनीतिक निहितार्थ

  • संयोगवश भारत के साथ टी.टी.सी., ई.यू. और जापान के बीच सहयोग से भी आगे बढ़ गया है। 
  • ई.यू. द्वारा टी.टी.सी. जैसी संस्था का उदय यह दर्शाता है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने एक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठन को व्यापक राजनीतिक इकाई के रूप में परिवर्तित कर दिया है।
  • ई.यू. भविष्य में आर्थिक साझेदारी के लिये आगे बढ़ने के साथ भू-राजनीति और सुरक्षा विषयों पर भी ध्यान देगा। इसी के मद्देनज़र भारत ई.यू. के लिये विश्वास, साझा लोकतांत्रिक पहचान और हितों के मामले में महत्त्व रखता है। 
  • भारत के दृष्टिकोण से आर्थिक पक्ष पर यूरोपीय मानकों को अपनाने की घोषणा करना कठिन राजनीतिक कदम होगा। 
  • भारत भविष्य में प्रौद्योगिकी मानकों पर चर्चा करने और उन्हें प्रभावित करने के लिये अधिक महत्त्व रखेगा। इनमें से कुछ विषय, जैसे- शीत युद्ध के दौर में परमाणु प्रौद्योगिकी आने वाले समय में राजनीतिक विश्वास द्वारा निर्देशित होंगे, अतः भारत को बेहतर अनुकूलित और तुलनात्मक बेंचमार्क अपनाकर अपनी प्रोफ़ाइल को बढ़ाना पड़ेगा। 

निष्कर्ष

भारत-ई.यू. टी.टी.सी. की स्थापना अनिश्चित वैश्विक रणनीतिक माहौल में भारत के बढ़ते भू-राजनीतिक मूल्य की मान्यता है, परंतु भारत के लिये चुनौती इस मूल्य को आर्थिक दृष्टि से भुनाने की होगी।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR