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 नई राष्ट्रीय जल नीति: आवश्यकता एवं प्रावधान 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न )
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2; सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) 

संदर्भ

विगत वर्ष जलशक्ति मंत्रालय द्वारा नई राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा तैयार करने के लिये एक समिति का गठन किया गया था। हाल ही में, समिति को इस मसौदे पर विभिन्न हितधारकों द्वारा अनेक सुझाव प्राप्त हुए हैं।

नई राष्ट्रीय जल नीति की आवश्यकता

  • भारत की पहली जल नीति वर्ष 1987 में प्रारंभ की गयी थी। इसमें वर्ष 2012 में अंतिम रूप से संशोधन किया गया था। तब से वर्तमान परिस्थितियों में व्यापक परिवर्तन हुआ है, ऐसे में एक नई जल नीति की आवश्यकता थी।
  • पुरानी जल नीति जल की मांग व आपूर्ति से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में सक्षम नहीं थी। 
  • भारत में लगभग 80-90 प्रतिशत जल की खपत सिंचाई कार्यों में होती है, जिसमें से अधिकांश जल का उपयोग चावल, गेहूँ और गन्ने की फसलों में होता है। अतः जल की मांग के इस पैटर्न में आमूल-चूल बदलाव हेतु नई नीति की आवश्यकता थी।

नई राष्ट्रीय जल नीति मसौदे के मुख्य प्रावधान

  • प्रस्तावित नीति लगातार बढ़ती जल आपूर्ति की सीमाओं की पहचान करती है और मांग प्रबंधन की ओर बदलाव का प्रस्ताव करती है। 
  • भारत में सर्वाधिक जल का प्रयोग कृषि कार्यों में होता है। इस नीति में फसल- विविधीकरण के माध्यम से भारत में जल संकट की समस्या से निपटने पर बल दिया गया है। 
  • इसमें सार्वजनिक खरीद कार्यों में विविधता लाने का सुझाव दिया गया है, जो किसानों को अपने फसल पैटर्न में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहित करेगा, जिससे जल की बचत होगी।
  • प्रस्तावित नीति में विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल प्रबंधन तथा शोधित जल के पुनर्प्रयोग को एकीकृत शहरी जल आपूर्ति और अपशिष्ट जल प्रबंधन के मूल मंत्र के रूप में प्रस्तावित किया गया है। 
  • नई नीति आपूर्ति पक्ष पर बल देते हुए बड़े बाँधों में संगृहीत जल को पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition -SCADA) तंत्र तथा सूक्ष्म सिंचाई के संयोजन से दबावयुक्त बंद परिवहन पाइपलाइन का उपयोग कर बहुत कम लागत पर सिंचित क्षेत्र का विस्तार करने का सुझाव देती है।
  • नई नीति "प्रकृति-आधारित समाधान" जैसे कि जलग्रहण क्षेत्रों के कायाकल्प के माध्यम से पानी की आपूर्ति पर विशेष बल देती है।
  • नई जल नीति भूजल के सतत् और न्यायसंगत प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।
  •  विभिन्न हितधारकों को जलभृत की सीमाओं, जल भंडारण क्षमता और प्रवाह के बारे में जानकारी प्रदान करने का प्रावधान नीति में किया गया है ताकि भूजल के प्रभावी प्रबंधन के लिये प्रोटोकॉल विकसित किया जा सके।
  • एन.डब्ल्यू.पी. नदी संरक्षण और पुनरोद्धार को प्राथमिक महत्त्व देती है। नीति नदी के प्रवाह को बहाल करने हेतु जलग्रहण क्षेत्रों के पुनःवनीकरण, भूजल निष्कर्षण का विनियमन, नदी-तल पंपिंग और रेत और बोल्डर खनन के विनियमन का भी सुझाव देती है।
  • यह नीति नदियों के अधिकार अधिनियम का मसौदा तैयार करने के लिये एक प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करती है, जिसमें उनके प्रवाह के साथ ही समुद्र में विलीन होने तक का अधिकार शामिल है।
  • नई जल नीति वर्तमान में भारत में जल की गुणवत्ता के अनसुलझे मुद्दे को सबसे गंभीर मानती है। यह प्रस्ताव करती है कि केंद्र और प्रत्येक राज्यों के जल मंत्रालय में एक जल गुणवत्ता विभाग का प्रावधान किया जाए।
  • नीति सीवेज उपचार के लिये अत्याधुनिक, कम लागत, कम ऊर्जा व पर्यावरण के प्रति संवेदनशील प्रौद्योगिकियों को अपनाने की वकालत करती है।
  • नीति का मानना है कि विपरीत परासरण (Reverse Osmosis) के व्यापक उपयोग से जल बर्बादी के साथ ही जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यदि किसी क्षेत्र के भूमिगत जल में ‘कुल घुलित ठोस’ (Total Dissolved Solid- TDS) की मात्रा 500mg/L से कम है तो ऐसे क्षेत्रों में आर.ओ. इकाइयों को हतोत्साहित किये जाने का सुझाव दिया गया है।
  • यह नीति उभरते हुए जल संदूषकों पर एक टास्क फोर्स का सुझाव देता है ताकि वे उन खतरों को बेहतर ढंग से समझ कर उनसे निपट सकें जिनसे जल-संदूषक उत्पन्न हो सकते हैं।
  • नई राष्ट्रीय जल नीति एक एकीकृत बहु-विषयक, बहु-हितधारक राष्ट्रीय जल आयोग (NWC) के निर्माण का भी सुझाव देती है। यह आयोग राज्यों के अनुसरण के लिये एक उदाहरण बन सकता है।

निष्कर्ष

भारत में जल संकट को हल करने तथा विभिन्न क्षेत्रों में जल वितरण के लिये संपूर्ण जल तंत्र को समझने, बहु-विषयक टीमों को तैनात करने और एक अंतर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नई जल नीति सभी विषयों व हितधारकों को शामिल करते हुए एक आशावादी दृष्टिकोण प्रदान करती है। इसके माध्यम से भारत वर्ष 2030 के लिये निर्धारित सतत् विकास लक्ष्य- 6 (पेयजल एवं स्वच्छता) को हासिल करने में सफल हो सकेगा।

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