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सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक 

(प्रारंभिक परीक्षा के लिये – सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, बैंकों का निजीकरण एवं विलीनीकरण)
( मुख्य परीक्षा के लिये:सामान्य अध्धयन प्रश्नपत्र 3 - भारतीय अर्थव्यवस्था )

सन्दर्भ 

  • SBI की पूर्व प्रमुख अरुधंति भट्टाचार्य ने सुझाव दिया है, कि भारत में सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या कम होनी चाहिये तथा इन्हें ज्यादा मजबूत होना चाहिये।
  •  उन्होंने कहा कि छोटे बैंकों का या तो निजीकरण कर दिया चाहिये या उनका विलय किसी दूसरे बैंक में कर देना चाहिये।

बैंकों का निजीकरण 

  • जब सरकार किसी सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक में अपनी हिस्सेदारी ऐसे बेंच दे कि उस बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से कम हो जाये, तो इसे बैंक का निजीकरण कहा जाता है।
  • बैंकिंग क्षेत्र से जुडी कई समितियों ने सरकार को सार्वजानिक बैंकों में अपनी हिस्सेदारी बेचने का सुझाव दिया है।
  • नरसिम्हन समिति ने बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी को 33 प्रतिशत तक सीमित करने की बात की थी। 
  • पी.जे. नायक समिति ने भी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत से कम करने का सुझाव दिया था।

बैंकों का विलय

  • जब दो या दो से अधिक बैंकों को मिलाकर एक बैंक बना दिया जाता है, तो इसे बैंकों का विलय कहा जाता है।

सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक 

  • ऐसे बैंक जिनमे सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ज्यादा होती है, उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कहते हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए सभी वित्तीय दिशानिर्देश सरकार द्वारा तैयार किये जाते है। 
  • ऐसे बैंकों में ग्राहकों की संख्या अधिक होती है। क्योंकि इनके सरकारी स्वामित्व के कारण लोगों को लगता है, कि इन बैंकों में उनके रुपये ज्यादा सुरक्षित हैं। 
  • यह बैंक शेयर बाजार (stock exchanges) में सूचीबद्ध होते है।
  • भारत में अभी 12 सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लाभ 

  • ये जमा धन पर प्राइवेट सेक्टर के बैंकों के अपेक्षाकृत अधिक ब्याज प्रदान करते है। 
  • कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराते हैं। 
  • ग्रामीण एवं दूर-दराज के क्षेत्रों में भी बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराते हैं। 
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के कर्मचारियों को विभिन्न सुविधएं जैसे कर्मचारी पेंशन योजना इत्यादि मिलती हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ग्राहकों के लाभ के लिए योजनाएं शुरू करके लगातार जनहित में काम करते हैं। 
  • ये बैंक अपनी सेवाओं के लिए निजी बैंकों की तुलना में कम शुल्क लेते है।
  • इन बैंकों ने हरित क्रांति, एवं अन्य कृषि तथा पशुपालन क्षेत्र की क्रांतियो के समर्थन के माध्यम से देश को आत्मनिर्भर बनाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। 
  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों ने देश के अवसंरचनात्मक विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की चुनौतियाँ 

  • सरकारी अधिकारीयों में व्याप्त लालफीताशाही के कारण उचित समय पर फैसले न ले पाना। 
  • उपलब्ध करायी जाने वाली सेवा का निम्न स्तर।
  • अधिकांश सरकारी बैंकों में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। 
  • सरकार आम तौर पर किसानों और अन्य पिछड़े क्षेत्रों के ऋण माफ करती है। यह अक्सर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर एक उच्च अतिदेय राशि का परिणाम होता है।
  • कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पारंपरिक बैंकिंग विधियों का पालन करते हैं, जिससे वे युवा, तकनीक-प्रेमी पीढ़ी के लिए कम आकर्षक हो जाते हैं।
  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारियों का वेतन उनके प्रदर्शन से सम्बंधित नहीं होता है, इसीलिए वो निजी बैंक के कर्मचारियों की तुलना में कम कार्यकुशल होते है। 
  • इन बैंकों के कर्मचारी बार-बार हड़ताल पर चले जाते है।
  • नयी तकनीकी अपनाने के मामले में तथा ग्राहकों का संतोष बढ़ाने के मामले में इन बैंकों का रवैया उदासीन रहता है। 
  • चूँकि ये सरकारी बैंक हैं, इसीलिए इनके बोर्ड में राजनैतिक तत्व ज्यादा प्रभावी रहते है, जिन्हें बैंकिंग प्रबंधन का अनुभव तथा कौशल लगभग ना के बराबर होता है। 
  • सरकारी बैंकों के अधिकारी जांच एजेंसियों और मीडिया ट्रायल के कारण डर में रहते है, कि कहीं उनके सही निर्णयों को भी शक की निगाह से ना देखा जाये। इसीलिए वो जोखिमपूर्ण निर्णय लेकर लाभ कमाने की जगह पर सुरक्षा और रूढ़ीवादी व्यवहार को प्राथमिकता देते हैं।

आगे की राह

  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों में सुधार के लिये सरकार को इन बैंकों से जुड़े अधिकारीयों की जवाबदेही तय करनी चाहिये। 
  • सार्वजानिक बैंक के कर्मचारियों की क्षमता निर्माण और प्रदर्शन सुधारने पर सरकार को ध्यान देना चाहिये।
  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के शासन और प्रबंधन में सुधार करने के लिये पी.जे. नायक समिति द्वारा सुझाये गए उपायों को लागू करना चाहिये। 
  • सरकार द्वारा अपनी योजनाओं के लिये सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों को अनिवार्य रूप से उधार देने के लिये बाध्य करना भी बैंकों की वित्तीय स्थिति के लिये हानिकारक है। 
  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के लिये गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) एक बड़ी समस्या है, सरकार को इसके निष्पादन के लिये आवश्यक कदम उठाने चाहिये। 
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