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हिंद- प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ की भूमिका

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न )
(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

अमेरिका- चीन के मध्य बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय महत्त्व हासिल किया है। क्वाड समूह, ऑकस का उदय तथा अन्य समूह यह प्रश्न उत्पन्न करते हैं कि इस मुद्दे पर यूरोप की स्थिति क्या है।

प्रमुख बिंदु

  • एशिया-यूरोप संबंध अति प्राचीन, मज़बूत तथा बहुस्तरीय है तथा इसमें एशिया तथा एशियाई देशों को क्रमशः क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखा तथा उनका मूल्यांकन किया जाता है।
  • वर्ष 2018 से फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड तथा यूनाइटेड किंगडम ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये विशिष्ट नीतियों की घोषणा की है।
  • यूरोपीय संघ (EU) चीन और अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के उदय, इसकी सीमा के साथ चीन की आक्रामकता से उत्पन्न तनाव, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के माध्यम से आर्थिक समेकन और ट्रांस- पैसिफ़िक पार्टनरशिप जैसे व्यापक और प्रगतिशील समझौते का मुकाबला करने की प्रक्रिया में है। 
  • इस संदर्भ में, यूरोपीय संघ की परिषद् द्वारा अप्रैल में अपने प्रारंभिक नीति निष्कर्षों की घोषणा तथा इसके बाद 16 सितंबर को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिये यूरोपीय संघ की रणनीति का अनावरण उल्लेखनीय है।

यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये नीति

  • हाल ही ब्रूसेल्स (यूरोपीय संघ का मुख्यालय ) से जारी नीति दस्तावेज़ के अनुसार, यूरोपीय संघ तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र प्राकृतिक साझेदारी वाले क्षेत्र हैं।
  • यूरोपीय संघ की पहले से ही हिंद महासागर के तटवर्ती देशों, आसियान समूह और प्रशांत द्वीपीय राज्यों में एक महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है लेकिन वर्तमान रणनीति का उद्देश्य इस व्यापक परिदृश्य में यूरोपीय संघ के जुड़ाव को बढ़ाना है।
  • इसमें भविष्य की रणनीति "नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" के सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित की जाएगी। साथ ही, व्यापार और निवेश, सतत् विकास लक्ष्यों और बहुपक्षीय सहयोग के लिये समान अवसर प्रदान करने, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए "वास्तविक समावेशी नीति-निर्माण" का समर्थन करने तथा मानवाधिकार व लोकतंत्र की रक्षा पर भी बल दिया जाएगा।
  • नीति दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि सतत् और समावेशी समृद्धि, हरित ऊर्जा संक्रमण, महासागरों से संबंधित शासन व्यवस्था, डिजिटल शासन और साझेदारी, कनेक्टिविटी, रक्षा व सुरक्षा तथा मानव सुरक्षा में सहयोग को मज़बूत किया जाएगा।

चीन तथा भारत के प्रति दृष्टिकोण

  • यूरोपीय संघ के कई देश चीन को एक बड़े आर्थिक अवसर के रूप में देखते हैं, तो वहीं कई अन्य देश चीन के चुनौतीपूर्ण रवैये से पूरी तरह सचेत हैं, उनका मानना है कि न तो एशिया में चीन का प्रभुत्व है, न ही नवीन शीत युद्ध से उत्पन्न द्वि-ध्रुवीयता यूरोपीय हितों को पूरा करेगी।
  • यद्यपि भारत-यूरोप के मध्य व्यापारिक संबंध अति प्राचीन हैं, तथापि भारत के प्रति यूरोपीय संघ की वर्तमान नीति भारत के लिये सकारात्मक संकेत है। इस क्षेत्र में भारत की महत्त्वपूर्ण स्थिति भारत-यूरोपीय संघ की घनिष्ठ साझेदारी हेतु एक अवसर प्रदान करती है।

यूरोपीय संघ के समक्ष चुनौतियाँ 

  • अमेरिका और चीन की तुलना में यूरोपीय संघ की रक्षा और सुरक्षा क्षमताएँ काफी सीमित हैं।
  • यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने (ब्रेक्ज़िट) के कारण संघ की आर्थिक क्षमता प्रभावित हुई है क्योंकि ब्रिटेन इस समूह का एक बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश था।
  • कई यूरोपीय देश रूस के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं, ऐसे में रूस का चीन के प्रति लगातार झुकाव इन देशों के लिये सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।

आगे की राह 

  • फ्रांस के पास हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी तथा संलग्न क्षेत्रों के विभिन्न देशों के साथ सकारात्मक संबंध हैं, ऐसे में आर्थिक संबंधों के असंतुलन को दूर करने हेतु यूरोपीय संघ द्वारा फ्रांस को पर्याप्त स्थान तथा समर्थन देने की आवश्यकता होगी।
  • यूरोपीय संघ को ग्रेट-ब्रिटेन के साथ भी रणनीतिक समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है, क्योंकि ब्रिटेन अपनी 'ग्लोबल ब्रिटेन' रणनीति के हिस्से के रूप में एशिया में अपनी भूमिका का विस्तार करने की तैयारी कर रहा है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विभिन्न देशों, जैसे- ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, न्यूज़ीलैंड के साथ आर्थिक भागीदारी समझौते की आवश्यकता होगी। साथ ही, इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु यूरोपीय संघ को अपने वित्तीय संसाधनों और नई तकनीकों को भागीदारों के साथ साझा करने के लिये तत्परता बढ़ानी चाहिये।
  • पश्चिमी देशों के छोटे गठबंधन समूहों द्वारा चीन की चुनौतियों से निपटने हेतु नौसेना और तकनीकी सुविधाओं को मज़बूत करने के प्रयास स्वागतयोग्य नहीं हैं। इसकी बजाय यूरोपीय संघ को क्वाड समूह के साथ सहयोग करने पर विचार-विमर्श करना चाहिये। 

निष्कर्ष

यूरोपीय संघ को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु भारत के साथ अपने संबंधों को और मज़बूती प्रदान करनी होगी। चीन के साथ एक मुखर नीति तथा भारत के साथ सहयोग कर यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थिति बना सकता है।

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