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भोपाल गैस मामले में उपचारात्मक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

प्रारंभिक परीक्षा - उपचारात्मक याचिका
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य

संदर्भ

  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अतिरिक्त धनराशि के रूप में 7,844 करोड़ रुपये की मांग करने वाली एक उपचारात्मक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

उपचारात्मक याचिका का आधार

  • केंद्र सरकार ने नवंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में उपचारात्मक याचिका दायर की।सरकार के अनुसार, 4 मई, 1989 को हुए 47 करोड़ डॉलर के समझौते का आधार यह था कि गैस रिसाव की घटना में लगभग 3,000 लोगों की मौत हुई थी, जबकि वास्तविक आंकड़ा 5,295 मौतों का है।

भोपाल गैस त्रासदी

  • यूनियन कार्बाइड (इंडिया) लिमिटेड, यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन, एक अमेरिकी निगम की सहायक कंपनी थी।
  • यूनियन कार्बाइड (इंडिया) लिमिटेड का कीटनाशक निर्माण कारखाना भोपाल में स्थित था।
  • 2 दिसंबर 1984 को इस प्लांट से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसायनेट (MIC) गैस का रिसाव शुरू हो गया।
  • प्लांट के आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों ने अपनी आंखों में जलन और सांस लेने में कठिनाई के साथ-साथ कई लोगों के होश खोने की शिकायत दर्ज की गयी तथा पहले कुछ दिनों में लगभग 3,000 लोग मारे गए।
  • इसने हजारों लोगों की जान लेने के अलावा, कई लोगों के लिए बीमारी और अन्य दीर्घकालिक समस्याओं को जन्म दिया।
  • संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घटना में कम से कम 30 टन जहरीली गैस ने 600,000 से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया है।
  • आपदा के बाद, भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावा प्रक्रिया) अधिनियम 1985 में पारित किया गया, जिसमें दावों को निपटाने के लिए भारत सरकार को अधिकार प्रदान किये गए थे।
  • इसमें कहा कि केंद्र सरकार के पास दावों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के स्थान पर प्रतिनिधित्व करने और कार्य करने का विशेष अधिकार होगा।
  • फरवरी 1989 में, भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड ने एक आउट-ऑफ-कोर्ट समझौता किया जिसके अंतर्गत यूनियन कार्बाइड द्वारा सरकार को 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा दिया गया।

उपचारात्मक याचिका

  • Curative Petitionशब्द की उत्पत्ति Cure शब्द से हुयी है, जिसका आशय है उपचार।
  • उपचारात्मक याचिका तब दाखिल की जाती है, जब किसी व्यक्ति की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिका खारिज हो गयी हो।
  • उपचारात्मक याचिका मेंवकीलों द्वारा बहस नहीं होती, लेकिन याचिकाकर्ता अपने पक्ष को लिखित तौर पर पेश कर सकता है।
  • उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की पीठ किसी भी स्तर पर किसी वरिष्ठ अधिवक्ता कोन्याय मित्र (Amicus Curiae) के रूप में मामले पर सलाह के लिये आमंत्रित कर सकती है।
  • सामान्यतः उपचारात्मक याचिका की सुनवाई जजों के चेंबर में ही हो जाती है परंतु याचिकाकर्त्ता के आग्रह पर इसकी सुनवाई ओपन कोर्ट में भी की जा सकती है।
  • आमतौर पर राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद कोई भी मामला खत्म हो जाता है।
  • लेकिन1993 के बॉम्बे सीरियल ब्लास्ट मामले में दोषी याकूब अब्दुल रज़्ज़ाक मेमन के मामले में ये अपवाद हुआ और राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई करने की मांग स्वीकार कर ली थी।
  • सुप्रीम कोर्ट को भारत केसंविधान के अनुच्छेद-142 के तहत ‘पूर्ण न्याय करने का अधिकार’है, इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका के बाद उपचारात्मक याचिका दाखिल करने का अधिकार दिया है।
  • संविधान केअनुच्छेद 137 में यह प्रावधान है कि संसद‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के, या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति प्राप्त है।

उपचारात्मक याचिका की अवधारणा

  • उपचारात्मक याचिका की अवधारणा साल 2002 मेंरूपा अशोक हुरा बनाम अशोक हुरा और अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सामने आयी,जब बहस के दौरान ये पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी क्या किसी दोषी को राहत मिल सकती है।
  • नियम के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है, लेकिन पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिये जाने के बाद क्या किया जा सकता है।
  • तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने दिए गए निर्णय पर फिर से विचार करने के लिए उपचारात्मक याचिका की धारणा सामने आयी।

उपचारात्मक याचिका दाखिल करने के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ

  • उपचारात्मक याचिका में याचिकाकर्ता को यह बताना ज़रूरी होता है कि वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रहा है।
  • उपचारात्मक याचिका में याचिकाकर्ता उन्ही मुद्दों को आधार बना बना सकता है, जिन पर पूर्व में दायर पुनर्विचार याचिका में विस्तृत विमर्श ना हुआ हो।
  • सर्वोच्च न्यायालय में उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई तभी होती है, जब याचिकाकर्ता यह प्रमाणित कर सके कि उसके मामले में न्यायालय के निर्णय सेप्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है तथा अदालत द्वारा निर्णय देते समय उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया है।

उपचारात्मक याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया

  • पुनर्विचार याचिका में पारित निर्णय या आदेश की तारीख से 30 दिनों के अंदर उपचारात्मक याचिका दायर होनी चाहिए।
  • उपचारात्मक याचिका का उच्चतम न्यायालय के किसीवरिष्ठ वकील द्वारा प्रमाणित होना अनिवार्य है।
  • जिसके बाद इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट केतीन वरिष्टतम जजों के पास भेजा जाता है जिनमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होते है।
  • उच्चतम न्यायलय की यह पीठबहुमत से निर्णय लेती है की इस याचिका पर पुनः सुनवाई कि जानी चाहिये या नही।
  • यदि पीठ द्वारा इस पर पुनः सुनवाई का निर्णय लिया जाता है तो याचिका को सुनवाई के लिये पुनः उसी पीठ के पास भेज दिया जाता है, जिसने पिछली बार इस मामले में निर्णय दिया था।
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