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टाइप 1 मधुमेह : निदान, उपचार एवं प्रबंधन

(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ)

संदर्भ

हाल ही में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (IMCR) ने टाइप 1 डायबिटीज के निदान, उपचार और प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। टाइप 1 मधुमेह के लिये आई.एम.सी.आर. ने पहली बार विशेष रूप से दिशानिर्देश जारी किये हैं। विदित है कि टाइप 2 मधुमेह के लिये पहले से ही दिशानिर्देश मौजूद है।

टाइप 1 मधुमेह

  • टाइप 1 मधुमेह को ‘चाइल्डहुड डायबिटीज़’ भी कहते हैं। ऐसी स्थिति में अग्न्याशय से इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन पूर्णतया रुक जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि यह हार्मोन यकृत, वसा और शरीर की अन्य कोशिकाओं में अवशोषण को बढ़ाकर या घटाकर रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने के लिये जिम्मेदार है। 
  • विदित है कि टाइप 2 मधुमेह में शरीर का इंसुलिन उत्पादन या तो कम हो जाता है या कोशिकाएँ इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधी बन जाती हैं। इसे विभिन्न औषधियों का उपयोग करके प्रबंधित किया जा सकता है।
  • टाइप 1 मधुमेह से मुख्यत: बच्चे और किशोर प्रभावित होते हैं। यह टाइप 2 की तुलना में बहुत अधिक गंभीर होता है क्योंकि पीड़ित के शरीर में इंसुलिन का निर्माण नहीं होता है और यदि वह इंसुलिन लेना बंद कर दे तो उसकी मृत्यु कुछ ही हफ़्तों में हो सकती है। 
  • इससे प्रभावित बच्चों में प्राय: बार-बार पेशाब आने और अत्यधिक प्यास लगने के गंभीर लक्षण प्रकट होते हैं और उनमें से लगभग एक-तिहाई को ‘डायबिटिक कीटोएसिडोसिस’ हो जाता है।

डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (Diabetic Ketoacidosis)

यह एक गंभीर स्थिति है, जिसमें शरीर में कीटोन्स की सांद्रता उच्च हो जाती है। कीटोन्स अणु का निर्माण तब होता है, जब शरीर ऊर्जा के लिये ग्लूकोज का अवशोषण करने में सक्षम नहीं होता है और इसके बजाए वसा को तोड़ना शुरू कर देता है।

दिशानिर्देश

सामान्य निर्देश 

  • यह दिशानिर्देश मुख्यतः आहार व व्यायाम, इंसुलिन की निगरानी और रेटिनोपैथी, गुर्दे की बीमारी एवं तंत्रिका रोग जैसी जटिलताओं के रोकथाम तथा उपचार पर विवरण प्रदान करता है। 
  • दिशानिर्देश के बिंदु सभी चिकित्सकों के लिये निदान और लोगों की देखभाल में सुधार के लिये एक तैयार-संदर्भ पुस्तक के रूप में कार्य करेंगे। यह दिशानिर्देश संबंधित उपकरणों की कीमत, स्तर और उपलब्धता आदि को भी निर्देशित करता है।

आहार संबंधी निर्देश 

  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के अनुसार टाइप 1 मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति के आहार में 50-55% कार्बोहाइड्रेट, 25-35% वसा और 15-20% प्रोटीन होना चाहिये। 
  • कार्बोहाइड्रेट पर अत्यधिक प्रतिबंध से बचने का भी सुझाव दिया गया है क्योंकि यह बच्चों के साथ-साथ किशोरों के विकास में बाधा डाल सकता है। मस्तिष्क के लिये पर्याप्त ग्लूकोज सुनिश्चित करने के लिये वयस्कों को प्रतिदिन कम से कम 130 ग्राम कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना आवश्यक है। 

व्यायाम एवं निगरानी 

  • टाइप 1 मधुमेह वाले व्यक्तियों में मोटापे को रोकने में शारीरिक गतिविधियाँ और व्यायाम मददगार हो सकता है। साथ ही, यह हृदय रोगों के विकास के जोखिम को भी कम करता है।
  • हालाँकि, व्यायाम की तीव्रता बढ़ने से हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा भी बढ़ जाता है और इस तरह से बचना चाहिये। अन्य व्यायामों की तुलना में भारोत्तोलन गतिविधियों या व्यायाम से रक्त शर्करा के स्तर में अधिक गिरावट आती है।

इंसुलिन थेरेपी 

  • यद्यपि टाइप 1 मधुमेह वाले लोगों के लिये इंसुलिन का उपयोग आवश्यक हो जाता है, किंतु इस थेरेपी के कुछ दुष्प्रभावों भी हैं, जो इस प्रकार हैं-
    • हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia)
    • भार में वृद्धि 
    • लिपोहाइपरट्रॉफी और लिपोआट्रोफी
    • इंसुलिन स्थल संक्रमण
  • इंजेक्शन वाली जगह पर संक्रमण और दर्द से बचने के लिये स्वच्छ और सही आकार की सुई का इस्तेमाल करना चाहिये।

      रक्त शर्करा की निगरानी

      • टाइप 1 मधुमेह में रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करना आवश्यक है क्योंकि यह रोगियों में ग्लाइसेमिक नियंत्रण की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।
      • वयस्कों को दिन में 4-6 बार रक्त शर्करा की स्व-निगरानी करनी चाहिये, जबकि युवा दिन में 2-3 बार अपने रक्त शर्करा स्तर की निगरानी कर सकते हैं।

      ग्लूकोमीटर

      • इस दिशानिर्देश में आधुनिक ग्लूकोमीटर (Glucometer) को भी स्वीकार किया गया है। 
      • ग्लूकोमीटर से पूर्व मूत्र में ग्लूकोज स्तर की निगरानी (रक्त ग्लूकोज नहीं) को आदर्श माना जाता था।

      टाइप 1 मधुमेह के कारण

      • वर्तमान में टाइप 1 मधुमेह का सटीक कारण अज्ञात है। हालाँकि, इसे एक स्व: प्रतिरक्षा स्थिति माना जाता है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन का स्राव करने वाली अग्न्याशय की आइलेट्स कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। 
      • इसके लिये आनुवंशिक कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं। मां को टाइप 1 मधुमेह होने पर बच्चे में इसका खतरा 3% होता है, जबकि पिता को होने पर इसका खतरा 5% होता है। सहोदर (भाई-बहन) में होने पर इसका खतरा 8% होता है।
      • सामान्य जनसंख्या की तुलना में टाइप 1 मधुमेह के रोगियों में DR3-DQ2 और DR4-DQ8 नामक जीन की व्यापकता होती है।
      • दुनिया में टाइप 1 मधुमेह से पीड़ित सर्वाधिक बच्चों और किशोरों की संख्या भारत में सर्वाधिक है। 

      अन्य प्रमुख बिंदु

      • टाइप 2 मधुमेह की तुलना में टाइप 1 मधुमेह दुर्लभ है। देश में मधुमेह के सभी चिकित्सालयी मामलों में से केवल 2% टाइप 1 से प्रभावित हैं किंतु वर्तमान में इससे प्रभावित लोगों की संख्या में वृद्धि दर्ज की जा रही है।
      • ऐसा संभव है कि भारत में इस विकार के प्रसार में वृद्धि हो रही हो। साथ ही, यह बेहतर जागरूकता का भी परिणाम हो सकता है, जिसके कारण टाइप 1 मधुमेह का अधिक निदान हो रहा है।
      • भारत को दुनिया की मधुमेह राजधानी माना जाता है। कोविड-19 महामारी ने इस बीमारी से पीड़ित लोगों को अत्यधिक प्रभावित किया है।
      • देश के सभी मधुमेह मामलों में टाइप 2 मधुमेह के मामले 90% से अधिक है। 


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