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विक्रम-एस : भारत का पहला निजी रॉकेट

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अधययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास, अंतरिक्ष)

संदर्भ 

18 नवंबर को भारत के पहले निजी लांच व्हीकल ‘विक्रम-एस’ का प्रक्षेपण किया गया। इसका प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित इसरो (ISRO) के लांचपोर्ट सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। विक्रम-एस भारत का पहला निजी रॉकेट है। पहले इसका प्रक्षेपण 15 नवंबर को होना था किंतु ख़राब मौसम के कारण इसे टाल दिया गया था। 

विक्रम-एस रॉकेट 

  • यह एक एकल चरण उप-कक्षीय (Single-stage Sub-orbital) प्रक्षेपण यान है। यह प्रक्षेपण यान लगभग 8 मीटर लंबा और 546 किग्रा. वजनी है। 
    • उप-कक्षीय उड़ान वाहन वे होते हैं जो कक्षीय वेग (Orbital Velocity) से धीमी गति से यात्रा करते हैं। इसका अर्थ है कि बाह्य अंतरिक्ष तक पहुंचने के लिये इसकी गति पर्याप्त तेज़ है किंतु पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में रहने के लिये इसकी गति पर्याप्त नहीं है। 
    • विदित हो कि जेफ बेजोस और रिचर्ड ब्रैनसन ने अंतरिक्ष में उप-कक्षीय उड़ानें भरी हैं।
  • इस रॉकेट का विकास हैदराबाद स्थित निजी कंपनी ‘स्काईरूट एयरवेज’ ने किया है। इस लांच व्हीकल का प्रक्षेपण मिशन ‘प्रारंभ’ (The Beginning) के तहत किया गया। 
  • इस रॉकेट ने पूर्व निर्धारित 89.5 किमी. की ऊंचाई और 121.2 किमी. की रेंज हासिल की।
  • उल्लेखनीय है कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक श्री विक्रम साराभाई के सम्मान में स्काईरूट के लॉन्च यान का नाम 'विक्रम' रखा गया है।

प्रक्षेपित उपग्रह 

  • विक्रम-एस रॉकेट अपने साथ दो भारतीय और एक विदेशी उपग्रह सहित कुल तीन ग्राहक उपग्रह ले गया हैइसमें चेन्नई स्थित स्टार्ट-अप ‘स्पेसकिड्ज़ इंडिया’ द्वारा निर्मित ‘फनसेट’ (FunSat) नामक 2.5 किग्रा. का एक उपग्रह शामिल है।
    • फनसेट के कुछ हिस्सों को भारत, अमेरिका, सिंगापुर और इंडोनेशिया के स्कूली छात्रों ने विकसित किया है।
  • इसके अतिरिक्त दो उपग्रह आंध्र प्रदेश स्थित एन-स्पेसटेक (N-SpaceTech) और अर्मेनिया के बाज़ूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के हैं।

कलाम-80 और विक्रम-1

N-SpaceTech

  • इस प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त इंजन का नामकरण पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के सम्मान में ‘कलाम-80’ किया गया है। उड़ान के दौरान कंपनी ने ‘कलाम-80' के प्रदर्शन पर कड़ी नजर रखी। यह आगामी मिशनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 
  • इस उड़ान में पाँच मिनट से भी कम समय लगा। विक्रम-एस अगले वर्ष लांच होने वाले विक्रम I के प्रक्षेपण से पहले सभी प्रणालियों और प्रक्रियाओं का लगभग 80% परीक्षण है। 
  • विक्रम I एक बहुत बड़ा यान होगा जो कक्षीय उड़ानें भरेगा। इस श्रृंखला में विक्रम II और विक्रम III भी शामिल हैं।

अन्य विशेषताएँ 

  • यह ‘विक्रम’ श्रृंखला के अंतरिक्ष लॉन्च यानों में प्रयुक्त तकनीकों के परीक्षण और सत्यापन में मदद करेगा। यह मिशन कंपनी को अंतरिक्ष में अपने सिस्टम का परीक्षण करने में मदद करेगा।
  • विक्रम श्रृंखला के रॉकेटों उन कुछ प्रक्षेपण यानों में से हैं जिनकी मूल संरचना कार्बन सम्मिश्रण का उपयोग करके निर्मित है। इसमें 3D- प्रिंटेड घटकों का भी प्रयोग किया गया है। 

स्काईरूट एयरवेज 

  • इसकी स्थापना वर्ष 2018 में हैदराबाद में हुई। यह अंतरिक्ष में वाणिज्यिक उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों को विकसित करता है।
  • स्काईरूट ने एडवांस्ड कम्पोजिट और 3डी-प्रिंटिंग तकनीकों का उपयोग करके भारत के पहले निजी तौर पर विकसित क्रायोजेनिक, हाइपरगोलिक-लिक्विड और ठोस ईंधन-आधारित रॉकेट इंजन का सफलतापूर्वक निर्माण एवं परीक्षण किया है।

prarambh

  • वर्तमान में यह कंपनी तीन विक्रम रॉकेट डिजाइन कर रही है, जो 290 किग्रा. और 560 किग्रा. पेलोड या उपग्रह को सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षाओं (Sun-synchronous Polar Orbits) में ले जाने के लिये विभिन्न ठोस एवं क्रायोजेनिक ईंधन का उपयोग करेगा।
    • इसकी तुलना में भारत का वर्कहॉर्स पी.एस.एल.वी. (PSLV) 1,750 किग्रा. वजनी उपग्रहों को इस कक्षा में ले जाने में सक्षम है, जबकि नव-विकसित लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) 300 किग्रा. तक छोटे वाणिज्यिक उपग्रहों को सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित कर सकता है।

नए युग की शुरुआत

  • इस मिशन के लांच के साथ ही ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ अंतरिक्ष में रॉकेट लॉन्च करने वाली भारत की पहली निजी अंतरिक्ष कंपनी बन गयी।
  • विदित है कि भारत ने वर्ष 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिये खोल दिया था। 
  • स्काईरूट अपना रॉकेट लॉन्च करने वाली पहली निजी कंपनी है किंतु इस क्षेत्र की अन्य कंपनियों में ‘अग्निकुल कॉसमॉस’ प्रमुख है। 
    • हाल ही में, अग्निकुल कॉसमॉस के सेमी-क्रायोजेनिक अग्निलेट इंजन का परीक्षण इसरो के थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS), तिरुवनंतपुरम में वर्टिकल परीक्षण सुविधा में 15 सेकंड के लिये किया गया। 
  • विगत दिनों निजी उपग्रह मिशनों के लिये इसरो के सबसे भारी प्रक्षेपण यान मार्क III ने 36 वनवेब उपग्रहों को लॉन्च किया था।

निजी कंपनियों द्वारा रक्षा और विनिर्माण को बढ़ावा 

  • उल्लेखनीय है कि इसरो केंद्रीय वित्त पोषित है संस्थान है। इसके वार्षिक बजट का अधिकांश उपयोग रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में किया जाता है।
  • भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार काफी छोटा है। इसको बढ़ाने के लिये निजी कंपनियों का बाजार में प्रवेश करना आवश्यक है। इसरो इन सभी कंपनियों के साथ ज्ञान और प्रौद्योगिकी साझा करेगा। 
  • इसका प्रमुख उद्देश्य रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में उद्योग को प्रोत्साहन प्रदान करना है। अमेरिका, यूरोप, रूस आदि देशों में बोइंग, स्पेसएक्स, एयर बस, वर्जिन गैलेक्टिक आदि जैसी बड़ी कंपनियां अंतरिक्ष उद्योग को साझा करती हैं। यद्यपि भारत में ऐसा कोई पारितंत्र विकसित नहीं है।
  • भारत में इस क्षेत्र में प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। भेल (BHEL) एक ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के निर्माण के लिये विभिन्न कंपनियों के एक संघ का गठन करेगा।
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