शॉर्ट न्यूज़: 04 जून, 2022
दुनिया के सबसे बड़े पौधेकी ख़ोज
पेंटेड लेपर्ड गेको
तरल दर्पण टेलीस्कोप
दुनिया के सबसे बड़े पौधेकी ख़ोज
संदर्भ
हाल ही में, रिबन नामक दुनिया के सबसे बड़ा पौधे/खरपतवारको ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर खोजा गया है।यह एक समुद्री घास है जिसकी लंबाई 180 किमी. है।
रिबन वीड
- शोधकर्ताओं ने रिबन खरपतवारको शार्क की खाड़ी में खोजा है। इसका वैज्ञानिक नाम पॉसिडोनिया ऑस्ट्रेलिस (Posidoniaaustralis) है। यह पौधा 4,500 वर्ष पुराना है, जो 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत है।
- यह खरपतवार प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बनाए रख सकता है, क्योंकि यह एक पॉलीप्लोइड (Polyploid) है अर्थात् यह माता-पिता दोनों से आधा-आधा जीनोम लेने के बजाय 100% जीनोम ग्रहण करते हैं। इसलिये इस खरपतवार में समान किस्म के अन्य पौधों की तुलना में गुणसूत्रों की संख्या दोगुनी होती है।
- विदित है कि विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पौधासंयुक्त राज्य अमेरिका के यूटा (Utah) में एक क्वेकिंग एस्पेन ट्री का क्लोनल कॉलोनी है, जो 43.6 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत है। जबकि भारत का सबसे बड़ा पेड़हावड़ा के बॉटनिकल गार्डन में विशालकाय बरगद है जो 1.41 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है।
समुद्री घास के लाभ
- समुद्री घास पर्यावरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभातेहैं। समुद्री घास की प्रजाति कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बनाये रख सकती है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में सहायक है।
- समुद्री घास विभिन्न प्रकार के छोटे जीवों का आश्रय स्थल होने के अतिरिक्त तलछट को छानकर जल को प्रदूषित होने से रोकते हैं।
- यह वातावरण से कार्बन को अवशोषित करने के साथ ही तटीय क्षरण को भी रोकते हैं।
- भारत के तटीय क्षेत्रोंमुख्यतया मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य में भी समुद्री घास की प्रजातियाँ पाई जाती है।
पेंटेड लेपर्ड गेको
संदर्भ
हाल ही में, आंध्रप्रदेश के तटीय क्षेत्र में वर्ष 2017 में खोजी गई छिपकली (गेको) की पहचान एक नई प्रजाति के रूप में की गई है।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रजाति का वैज्ञानिक नाम यूबलफेरिस पिक्टस (Eublepharispictus) है, जिसे सामान्यतः पेंटेड लेपर्ड गेको के नाम से भी जाना जाता है।
- इस प्रजाति को पहले ईस्टर्न इंडियन लेपर्ड गेको के रूप में पहचाना गया था, जिसका वैज्ञानिक नाम यूबलफेरिस हार्डविकी (Eublepharishardwickii)है।
- शोधकर्ताओं के अनुसार गेको जीनस यूबलफेरिस की अब 7 ज्ञात प्रजातियाँ हैं।
- पेंटेड लेपर्ड गेको मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और ओडिशा के जंगलों में पाई जाती है, जबकि ईस्टर्न इंडियन लेपर्ड गेको पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में कई स्थानों पर पाई जाती है।
- विदित है किईस्टर्न इंडियन लेपर्ड गेको प्रजाति प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) की कम चिंताजनक (Least Concern) श्रेणी में शामिल है।
तरल दर्पण टेलीस्कोप
चर्चा में क्यों
हाल ही में, उत्तराखंड में देश का पहला अंतर्राष्ट्रीय तरल दर्पण (लिक्विड मिरर) टेलीस्कोप (ILMT) स्थापित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- इसे आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (ARIES) के देवस्थल वेधशाला परिसर में 2,450 मीटर की ऊँचाई पर स्थापित किया गया है। यह भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित एक स्वायत्त संस्थान है।
- यह देश का पहला और एशिया का सबसे बड़ा लिक्विड मिरर टेलीस्कोप है।गौरतलब है कि यह पहला लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप है, जिसे खगोलीय अवलोकन के लिये डिजाइन किया गया है।इससे पूर्व ये टेलीस्कोप उपग्रहों को ट्रैक करने या सैन्य उद्देश्यों के लिये स्थापित किये गए थे।
- इस टेलीस्कोप के विकास में भारत, बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड और उज्बेकिस्तान के खगोलविदों ने सहयोग किया है।
- वर्ष 2010 में स्थापित 1.3 मीटर देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप एवं वर्ष 2016 में स्थापित 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप के बाद आई.एल.एम.टी. देवस्थल से संचालित होने वाला तीसरा टेलीस्कोप होगा।विदित है कि देवस्थल को खगोलीय अवलोकन के लिये सबसे अच्छे स्थलों में से एक माना जाता है।
आई.एल.एम.टी. की प्रमुख विशेषताएँ
- यह टेलीस्कोप सुपरनोवा, क्षुद्रग्रहों,गुरुत्वाकर्षण लेंस, अंतरिक्ष मलबेएवं अन्य सभी खगोलीय पिंडों का निरीक्षण करेगा।
- इस टेलीस्कोप में प्रकाश को एकत्रित और केंद्रित करने के लिये तरल पारे की एक पतली फिल्म से बना 4 मीटर व्यास का घूर्णन दर्पण लगाया गया है।
- टेलीस्कोप द्वारा बनाई गई पहली छवि में कई तारे और एक आकाशगंगा एन.जी.सी. 4274 शामिल है, जो 45 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है।
- इस टेलीस्कोप में बिग डाटा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, एल्गोरिदम का उपयोग करने वाले एप्लिकेशन और एल्गोरिदम लागू किये जाएंगे।