शॉर्ट न्यूज़: 08 फ़रवरी, 2022
देश का पहला जियोलॉजिकल पार्क
एक संप्रभु खासी क्षेत्र की बढ़ती मांग
आदिबद्री बाँध और सरस्वती नदी का पुनर्जीवन
देश का पहला जियोलॉजिकल पार्क
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, ‘भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ (जी.एस.आई.) ने मध्यप्रदेश के जबलपुर ज़िले में देश के पहले ‘जियोलॉजिकल पार्क’ की स्थापना को स्वीकृति प्रदान की। इस पार्क का निर्माण ‘मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग’ द्वारा किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण यह स्थान प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिये यूनेस्को की भू-विरासत की अस्थायी सूची में पहले से ही शामिल है।
- नर्मदा घाटी क्षेत्र में विशेष रूप से जबलपुर के भेड़ाघाट-लम्हेटा घाट क्षेत्र में कई डायनासोर के जीवाश्म पाए गए थे।
- वर्ष 1828 में, भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी विलियम स्लीमैन द्वारा इस क्षेत्र से डायनासोर के पहले जीवाश्म को एकत्र किया गया था।
- जी.एस.आई. ने जबलपुर के नर्मदा नदी के तट पर स्थित लम्हेटा गांव में पाँच एकड़ भूमि में भूगर्भीय चट्टानों के निर्माण की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिये वित्त का आवंटन किया है।
- केंद्र व राज्य के संयुक्त प्रयास से भेड़ाघाट में एक विज्ञान केंद्र भी बनेगा। इसमें भोजन, जल और मृदा जैसे विभिन्न विषयों के वैज्ञानिक सिद्धांतों सहित आधुनिक विज्ञान को बढ़ावा दिया जाएगा।
जियोलॉजिकल पार्क
- यह एक एकीकृत क्षेत्र होता है, जो भूवैज्ञानिक विरासत के संरक्षण और उपयोग को सतत तरीके से आगे बढ़ाता है। इससे वहाँ रहने वाले लोगों का आर्थिक कल्याण भी होता है।
- इसका उपयोग समाज के समक्ष आने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता प्रसारित करने के लिये भी किया जाता है।
एक संप्रभु खासी क्षेत्र की बढ़ती मांग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग में हुए विस्फ़ोट की ज़िम्मेदारी प्रतिबंधित एच.एन.एल.सी उग्रवादी समूह ने ली है।
एच.एन.एल.सी उग्रवादी समूह
- हाइनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल (एच.एन.एल.सी) कई दशकों से मेघालय में एक संप्रभु खासी क्षेत्र की मांग कर रहा है। इसका गठन 1990 के दशक में किया गया था।
- यह समुदाय खासी और जयंतिया समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। संगठन के प्रारंभिक वर्षों में इसमें गारो समुदाय भी शामिल था, किंतु बाद में आंतरिक मतभेद के कारण गारो समुदाय ने अलग होकर अचिक नेशनल वालंटियर्स काउंसिल (ए.एन.वी.सी) बना ली।
- इसका प्रमुख उद्देश्य मेघालय को विशेष रूप से खासी जनजाति के लिये एक प्रांत के रूप में बदलना और इसे गारो जनजाति के ‘वर्चस्व’ से मुक्त करना है।
- एक अन्य उद्देश्य, इस क्षेत्र में ‘बाहरी लोगों’ की उपस्थिति के विरुद्ध लड़ना है, क्योंकि एच.एन.एल.सी. का मानना है कि खासी समुदाय के युवाओं को राज्य में पर्याप्त रोज़गार नहीं मिल पा रहा है।
- इस समुदाय के शीर्ष नेतृत्व बांग्लादेश से निर्देशित होते हैं।
आदिबद्री बाँध और सरस्वती नदी का पुनर्जीवन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने यमुनानगर ज़िले के आदिबद्री नामक स्थान पर बाँध के निर्माण हेतु एक समझौता किया है। विदित है कि आदिबद्री को सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माना जाता है।
आदिबद्री बाँध : उद्देश्य व लाभ
- आदिबद्री बाँध के निर्माण से सरस्वती नदी के जीर्णोद्धार से धार्मिक मान्यताएँ भी पुनर्जीवित होंगी।
- इसके साथ ही यह क्षेत्र तीर्थ स्थल के रूप में भी विकसित होगा तथा इस परियोजना के माध्यम से भू-जल स्तर में वृद्धि होगी।
- इस बाँध से सरस्वती नदी में जल का निरंतर प्रवाह बना रहेगा।
- इस बाँध के निर्माण से अत्यधिक वर्षा से उत्पन्न बाढ़ की स्थिति से भी निपटा जा सकेगा।
- इस बाँध के निर्माण में हिमाचल प्रदेश की लगभग 32 हेक्टेयर भूमि का उपयोग होगा।
- यह बाँध प्रत्येक वर्ष लगभग 225 हेक्टेयर-मीटर जल का भंडारण करेगा,जिसमें से हिमाचल प्रदेश को लगभग 62 हेक्टेयर-मीटर जल मिलेगा और सरस्वती नदी में प्रवाहित शेष जल का प्रयोग हरियाणा द्वारा किया जाएगा।
- इस बाँध को सोम नदी (यमुना की सहायक नदी) से भी जल मिलेगा।
- यह बाँध दोनों राज्यों के लिये सिंचाई और पीने योग्य जल की आपूर्ति भी करेगा।
- इस क्षेत्र में आदिबद्री, लोहागढ़, कपाल मोचन, माता मंत्र देवी समेत कई धार्मिक और पर्यटन स्थल आते हैं। हिमाचल प्रदेश के सहयोग से कई परियोजनाओं पर काम किया जाएगा, जिसमें हथिनीकुंड बैराज पर एक बाँध का निर्माण भी शामिल है।
- इस बाँध में पहाड़ों से हथिनीकुंड बैराज में बहने वाले जल को संगृहीत किया जाएगा, ताकि फसलों को बाढ़ जैसी स्थितियों से बचाया जा सके।
- विदित है कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और हरियाणा सरस्वती विरासत विकास बोर्ड पौराणिक सरस्वती नदी पर शोध कर रहे हैं।