शॉर्ट न्यूज़: 08 जून, 2022
पुनीत सागर अभियान
ई-संजीवनी का आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन में एकीकरण
खोनमोह के जीवाश्म
पुनीत सागर अभियान
चर्चा में क्यों
हाल ही में, राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) ने 30 मई से लेकर 5 जून, 2022 तक ‘पुनीत सागर अभियान’ का नवीनतम चरण शुरू किया।
प्रमुख बिंदु
- इस अभियान के नवीनतम चरण में 10 राज्यों और 4 केंद्र-शासित प्रदेशों से एन.सी.सी. के लगभग 74,000 कैडेट भाग लेंगे।
- इस अभियान के दौरान एकत्र किये गए अपशिष्ट को सरकारी/निजी एजेंसियों के सहयोग से पर्यावरण अनुकूल तरीके से निपटाया जाएगा।
अभियान के बारे में
इस अभियान को दिसंबर 2021 में प्रारंभ किया गया था। इसका उद्देश्य एन.सी.सी. द्वारा नदियों, झीलों, समुद्र तटों एवं अन्य जल निकायों में मौजूद प्लास्टिक व अन्य अपशिष्टों को साफ करना है। साथ ही, समुद्र तटों एवं नदी के किनारों को साफ रखने के महत्त्व के बारे में स्थानीय आबादी को जागरूक करना है। इस अभियान के अंतर्गत स्थानीय लोगों को 'स्वच्छ भारत अभियान' के बारे में जागरूक बनाना भी शामिल है।
ई-संजीवनी का आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन में एकीकरण
चर्चा में क्यों
हाल ही में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) की प्रमुख योजना- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के साथ ई-संजीवनी को एकीकृत किये जाने की घोषणा की गई है।
प्रमुख बिंदु
- ई-संजीवनी के उपयोगकर्ता अपना 14-अंक का अद्वितीय आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट (ABHA) बना सकते हैं और अपने मौजूदा स्वास्थ्य रिकॉर्ड को इससे जोड़ सकते हैं।
- इस एकीकरण का उद्देश्य टेलीमेडिसिन सेवा ई-संजीवनी के मौजूदा उपयोगकर्ताओं को आसानी से ए.बी.एच.ए. बनाने, डॉक्टरी सलाह लेने, लैब रिपोर्ट आदि की सुविधा प्रदान करना है।
- उपयोगकर्ता ई-संजीवनी पर डॉक्टरों के साथ अपने हेल्थ रिकॉर्ड को साझा करने में भी सक्षम होंगे जो बेहतर नैदानिक निर्णय लेने (clinical decision making) और देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
- ई-संजीवनी के एकीकरण के माध्यम से 22 करोड़ ए.बी.एच.ए. धारक ई-संजीवनी के माध्यम से बनाए गए अपने स्वास्थ्य रिकॉर्ड को हेल्थ लॉकर में लिंक और स्टोर कर सकते हैं।
ई-संजीवनी
- यह भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक मुफ्त टेलीमेडिसिन सेवा है। ई-संजीवनी सेवा दो रूपों में उपलब्ध है।
- पहला, ‘ई-संजीवनी आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र’ (ए.बी.-एच.डब्ल्यू.सी.) एक डॉक्टर-टू-डॉक्टर टेलीमेडिसिन सेवा है, जिसके माध्यम से एच.डब्ल्यू.सी. में जाने वाले लाभार्थी डॉक्टरों/विशेषज्ञों/अस्पताल/मेडिकल कॉलेज आदि से जुड़ सकते हैं। यह सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों और पृथक समुदायों (Isolated Communities) को सामान्य एवं विशिष्ट स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- दूसरा, ‘ई-संजीवनी ओ.पी.डी.’ जो देश भर के मरीजों को सीधे डॉक्टरों से जोड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि दोनों वेरिएंट - ई-संजीवनी ए.बी.-एच.डब्ल्यू.सी. और ई-संजीवनी ओ.पी.डी. को ए.बी.डी.एम. प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत किया गया है।
खोनमोह के जीवाश्म
चर्चा में क्यों
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्खनन गतिविधियों के कारण जम्मू एवं कश्मीर के खोनमोह में पाए जाने वाले जीवाश्म नष्ट हो रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में इस क्षेत्र के जीवाश्मों को सीमेंट कारखानों के कारण नुकसान हो रहा है। इस क्षेत्र में कुल नौ सीमेंट कारखाने स्थापित हैं।
- इस क्षेत्र के जीवाश्मों के संरक्षण हेतु पर्यावरण नीति समूह (Environment Planning Group: EPG) द्वारा जीवाश्म पार्क की स्थापना का प्रयास किया जा रहा है।
- विदित है कि वर्ष 2018 में अमेरिका में पेन डिक्सी फॉसिल पार्क और ई.पी.जी. के मध्य जीवाश्म पार्क की स्थापना हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया थे। इस समझौते के अनुसार पार्क में एक संग्रहालय होगा जहाँ जीवाश्मों का प्रदर्शन किया जायेगा।
खोनमोह
- यह केंद्रशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में श्रीनगर ज़िले में ज़बरवान पहाड़ी के ढाल पर स्थित है। ज़बरवान पहाड़ी पीर पंजाल एवं महान हिमालयी शृंखला के मध्य एक उप-पर्वत शृंखला है।
- हिमालयी भूविज्ञान केंद्र के अनुसार, ज़ीवान-खोनमोह बेल्ट (Zeewan-Khonmoh Belt) के जीवाश्म तब बने थे जब कश्मीर टेथिस सागर के नीचे डूबा हुआ था।
- मूँगे, छोटे अकशेरुकी, पौधे और सरीसृपों जैसे स्तनपायी, जिसे थेरेपिड्स के रूप में जाना जाता है, गुर्युल घाटी में पर्मियन-ट्राइसिक युग (Permian-Triassic Age) के दौरान प्रमुख रूप से उपलब्ध थे।
- इस क्षेत्र में लाखों वर्ष पुराने समुद्री जीवन के जीवाश्म पाए गए हैं। ऐसा अनुमान है कि खोनमोह की गुर्युल घाटी में 252 मिलियन वर्ष पूर्व सबसे बड़ी सामूहिक विलुप्ति की घटना हुई थी, जिसे ‘ग्रेट डाइंग’ के रूप में भी जाना जाता है। इस घटना ने 70 से 90% तक वनस्पति और जीवों को विलुप्त कर दिया था।
- इस क्षेत्र के ट्राइसिक युग के जीवश्मों को पहली बार 1800 के दशक के अंत में भारतीय सिविल सेवक सर वाल्टर लॉरेंस द्वारा खोजा गया था।