शॉर्ट न्यूज़: 17 अगस्त, 2022
ई.डी. प्रमुख के कार्यकाल में वृद्धि
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021
ई.डी. प्रमुख के कार्यकाल में वृद्धि
चर्चा में क्यों
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) प्रमुख के कार्यकाल में वृद्धि को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार ने मौजूदा ई.डी. प्रमुख के कार्यकाल में 1 वर्ष की वृद्धि की है। यह निर्णय विगत वर्ष केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में संशोधन के आधार पर लिया गया है। सरकार का तर्क है कि यह निर्णय सीमा पार अपराधों से संबंधित कुछ लंबित जांचों के लिये महत्वपूर्ण थी।
- वर्तमान में ई.डी. के निदेशक श्री संजय कुमार मिश्र (IRS) हैं और यह एजेंसी वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत कार्य करती है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अधिनियम, 2021
- इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम, 2003 में संशोधन किया गया है। इसकी धारा 25 ई.डी. निदेशक की नियुक्ति और कार्यकाल से संबंधित है।
- प्रवर्तन निदेशक की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय सतर्कता आयुक्त करते हैं और इसमें गृह मंत्रालय, कार्मिक तथा राजस्व विभाग के सचिव शामिल होते हैं।
- प्रवर्तन निदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष का होता है। संशोधित अधिनियम के अनुसार प्रारंभिक नियुक्ति से पांच वर्ष पूरे होने तक निदेशक का कार्यकाल समिति की सिफारिश पर जनहित में एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
याचिकाकर्ता के तर्क
- संशोधित अधिनियम प्रवर्तन निदेशक के कार्यकाल की स्थिरता को समाप्त करता है।
- नियुक्त समिति पूर्णतया कार्यकारी सदस्यों से बनी है तथा मुख्य न्यायाधीश जैसे किसी बाह्य प्राधिकरण को भी इसमें शामिल नहीं किया गया है।
- सी.बी.आई. (CBI) निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन-सदस्यीय समिति की अनुशंसा पर केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का कोई अन्य न्यायाधीश) भी शामिल होते हैं।
- मौजूदा प्रवर्तन निदेशक ने विगत पाँच वर्ष के आधार पर अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्यौरा प्रस्तुत नहीं किया है, जो उन्हें इस पद के लिये अयोग्य करता है।
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021
चर्चा में क्यों
हाल ही में, संसंद की एक संयुक्त समिति ने जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 पर अपनी अनुशंसा रिपोर्ट संसद को सौंपी है।
प्रमुख बिंदु
- विगत वर्ष संसद में पेश करने के बाद इस विधेयक को जैवविविधता से संबंधित विभिन्न चिंताओं के कारण संसद की संयुक्त समिति को सौप दिया गया था।
- जैव विविधता अभिसमय, 1992 की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भारत में जैव विविधता अधिनियम, 2002 को अधिनियमित किया गया था। इसके तीन मुख्य कार्य थे-
- जैव विविधता का संरक्षण
- जैव विविधता का सतत उपयोग
- जैव विविधता से होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करना।
- यह संशोधन विधेयक भारतीय चिकित्सा प्रणाली, बीज, उद्योग और अनुसंधान क्षेत्र आदि के प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त की गई अनेक चिंताओं के कारण पेश किया गया था।
प्रस्तावित संशोधन
- प्रस्तावित संशोधनों में भारतीय कंपनियों को विदेशी शेयर रखने, कृषि स्रोतों से कच्चा माल प्राप्त करने और समुदायों को लाभ देने के लिये संहिताबद्ध ज्ञान की अनिवार्यता से छूट प्रदान करने का प्रावधान है।
- संहिताबद्ध ज्ञान की अनिवार्यता के बिना आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) उद्योग को समुदाय के साथ लाभ साझा करने से छूट मिल जाएगी।
- संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 तथा पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी व पारंपरिक ज्ञान डिजिटल भंडार में परिभाषित एवं सूचीबद्ध किया गया है।
- नए कानून के अंतर्गत अब भारतीय संस्थाओं को केवल राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण में पंजीकरण करना अनिवार्य होगा और पेटेंट का आवेदन करने के लिये अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- साथ ही, जैव विविधता तक पहुंचने के लिये कानूनों का उल्लंघन करने वालों को अपराध मुक्त करने का प्रावधान है। इसमें हकीमों (यूनानी चिकित्सक), वैद्यों (आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सक), पंजीकृत चिकित्सकों आदि को उल्लंघन की सीमाओं से मुक्त कर दिया गया है।
- हालाँकि, विशेषज्ञों ने इन संशोधनों को जैव विविधता अभिसमय की भावना के विपरीत और उद्योग क्षेत्र के अनुकूल बताया है।