शॉर्ट न्यूज़: 20 दिसंबर, 2021
एम-सैंड
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर नियंत्रण
सहाय योजना
चीनी सब्सिडी विवाद
एम-सैंड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने ‘एम-सैंड’ निर्माताओं के संबंध में तमिलनाडु सरकार से हलफनामा माँगा है।
क्या होता है एम-सैंड?
- ‘एम-सैंड’ (Manufactured Sand: M-Sand) से तात्पर्य विनिर्मित रेत से है। ये रेत चट्टानों और खदान के पत्थरों को चूर्ण करके बनाया जाता है, जो नदी रेत (बालू) का सर्वाधिक प्रचलित विकल्प है।
- इसके निर्माण में कोयला, चूना-पत्थर, सीमेंट, जल व कुछ मात्रा में नदी रेत आदि का उपयोग किया जाता है। नदी रेत की तुलना में एम-सैंड कंक्रीट के साथ बेहतर पकड़ बनाता है।
- एम-सैंड से बने कंक्रीट में नदी रेत की तुलना में पारगम्यता काफी कम होती है। एम-सैंड की जल अवशोषण क्षमता नदी रेत से अधिक होती है।
- प्राकृतिक रेत की वैश्विक कमी, निर्माण में फाइन एग्रीगेट्स का बढ़ता प्रयोग और प्राकृतिक रेत में गाद व मिट्टी की उपस्थिति के कारण एम-सैंड की माँग में वृद्धि हुई है।
एम-सैंड के लाभ
- नदी की रेत की तुलना में अधिक लागत प्रभावी।
- नए यूरोपीय मानकों के अनुरूप।
- पर्यावरण के अनुकूल।
- निम्न प्रदूषक स्तर और बेहतर कार्यशील गुणवत्ता।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर नियंत्रण
चर्चा में क्यों?
आर.बी.आई. ने बैंकों की तरह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के लिये ‘त्वरित समाधान कार्रवाई’ (Prompt Corrective Action: PCA) फ्रेमवर्क प्रस्तुत किया है।
प्रमुख बिंदु
- यह फ्रेमवर्क 1 अक्टूबर, 2022 से सभी मध्य, उच्च एवं उच्चतम स्तरों पर ज़मा स्वीकार करने और स्वीकार न करने वाली एन.बी.एफ़.सी. पर लागू होगा।
- इसका उद्देश्य वित्तीय बाज़ार में एन.बी.एफ़.सी. के कार्यप्रणाली पर नज़र रखने के साथ उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करना है।
शामिल संस्थान
- इसके अंतर्गत निवेश करने और ऋण देने वाली कंपनियों, आधारभूत संरचना ऋण निधि, आधारभूत संरचना वित्त फर्म और सूक्ष्म वित्तीय कंपनियों को भी शामिल किया जाएगा।
- सरकारी स्वामित्व वाली एन.बी.एफ़.सी., प्राथमिक डीलरों और हाउसिंग फाइनेंस फर्मों को इससे बाहर रखा जाएगा।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी
- ये कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत होती है। इनमें ऐसी संस्थाओं को शामिल नहीं किया जाता है, जिसका मुख्य कारोबार कृषि, उद्योग व व्यापार गतिविधियों से संबंधित हैं।
- इनका मुख्य कार्य उधार देना, विभिन्न प्रकार के शेयर, स्टॉक, बांड्स, डिबेंचर्स, प्रतिभूतियों, बीमा व चिट संबंधी कारोबार में निवेश करना तथा किसी योजना के अंतर्गत जमाराशियाँ स्वीकार करना है।
सहाय योजना
चर्चा में क्यों?
युवा वर्ग को ध्यान में रखते हुए खेलकूद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से झारखंड सरकार ने ‘सहाय योजना’ प्रारंभ की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इसका पूरा नाम ‘सहाय’ (Sports Action Towards Harnessing Aspiration Of Youth: SAHAY) है।
- इसे दिसंबर 2021 में पश्चिमी सिंहभूमि जिले के चाईबासा से लॉन्च किया गया। प्रारंभिक चरण में इसे कुछ ही ज़िलों में शुरू किया जाएगा जिसके आकलन के बाद इसे अन्य ज़िलों में भी लागू किया जा सकता है।
उद्देश्य
- वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में खेलों के माध्यम से संघर्ष कम करना और सामान्य जीवन शैली को प्रेरित करना।
- प्रतियोगिताओं के आयोजन के माध्यम से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर युवा खिलाड़ी तैयार करना।
- 14 से 19 वर्ष के युवाओं को प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर प्रदान करना।
- ग्राम पंचायत और नगर निकाय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ महिला व पुरुष एथलीटों का चयन किया जाएगा।
चीनी सब्सिडी विवाद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, विश्व व्यापार संगठन (डब्लू.टी.ओ.) के विवाद समाधान पैनल ने चीनी सब्सिडी (सहायिकी) के मामले में अपना निर्णय दिया।
क्या है मामला?
- वर्ष 2019 में तीन प्रमुख चीनी निर्यातक देशों (ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया और ग्वाटेमाला) ने विश्व व्यापार संगठन में भारत द्वारा गन्ना किसानों को डब्लू.टी.ओ. की निर्धारित सीमा से अधिक घरेलू समर्थन देने संबंधी नीतियों को चुनौती दी थी।
- इस मामले में डब्लू.टी.ओ. ने भारत के विरुद्ध निर्णय देते हुए वैश्विक नियमों के अनुपालन का निर्देश दिया है। ध्यातव्य है कि ब्राज़ील के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है।
- ‘एनगोज़ी ओकोंजो-इवियाला’ डब्लू.टी.ओ. की महानिदेशक बनने वाली विश्व व अफ्रीका की पहली महिला हैं।
निषिद्ध निर्यात सब्सिडी
भारत ने चीनी मिलों को ‘निषिद्ध निर्यात सब्सिडी’ भी प्रदान की है। डब्लू.टी.ओ. बहुपक्षीय समझौते के अंतर्गत सदस्य देशों को उनके क्षेत्रों में स्थित संस्थाओं को निर्यात क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी पर कुछ सीमाएँ निर्धारित करता है। इसका उल्लंघन करके दी जाने वाली सब्सिडी को ‘निषिद्ध निर्यात सब्सिडी’ कहते है।