शॉर्ट न्यूज़: 25 जनवरी, 2022
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के कार्यकाल में वृद्धि
भारत-डेनमार्क हरित ईधन समझौता
प्राकृतिक आपदाओं से बारहसिंघा की संख्या में कमी
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के कार्यकाल में वृद्धि
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एन.सी.एस.के.) के कार्यकाल में तीन वर्षों की वृद्धि का निर्णय लिया है।
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
यह एक गैर-सांविधिक संस्था है। इसकी स्थापना राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार वर्ष 1993 से 1997 तक की अवधि के लिये की गई थी, जिसे समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है।
कार्य
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का कार्य सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशिष्ट कार्यक्रमों के संबंध में सरकार को सिफारिशें देना, सफाई कर्मचारियों के लिये मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों का अध्ययन एवं मूल्यांकन करना और विशेष शिकायतों की जाँच करना है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार के निषेध तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अनुसार इस आयोग को अन्य कार्य भी सौंपा गया है। आयोग के कार्यकाल में वृद्धि से मुख्यत: देश के सफाई कर्मचारी और हाथ से मैला उठाने (Identified Manual Scavengers) वाले समूह लाभान्वित होंगे।
भारत-डेनमार्क हरित ईधन समझौता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत और डेनमार्क हरित हाइड्रोजन सहित हरित ईंधनों पर संयुक्त अनुसंधान एवं विकास कार्य प्रारंभ करने पर सहमत हुए।
मुख्य बिंदु
- दोनों देशों ने हरित समाधानों, जैसे- हरित अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश की रणनीति पर विशेष ध्यान दिया है। उल्लेखनीय है कि हरित सामरिक भागीदारी कार्य योजना वर्ष 2020-2025 तक पूरी की जानी है।
- यह समझौता संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने और पेरिस समझौते के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करके वैश्विक जलवायु संकट को कम करने में योगदान देगा।
- दोनों देशो ने जलवायु व हरित परिवर्तन, ऊर्जा, जल, अपशिष्ट, खाद्यान्न सहित मिशन संचालित अनुसंधान, नवाचार और तकनीकी विकास पर द्विपक्षीय सहभागिता के विकास पर जोर दिया।
प्राकृतिक आपदाओं से बारहसिंघा की संख्या में कमी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान तथा बाघ अभयारण्य में हुई एक गणना के अनुसार पूर्वी क्षेत्र में पाए जाने वाले बारहसिंघा (Swamp Deer) की संख्या में कमी आई है।
प्रमुख बिंदु
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में बारहसिंघा की संख्या में कमी का प्रमुख कारण वर्ष 2019 तथा 2020 में असम में आई बाढ़ है।
- ये अब तक केवल काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की स्थानिक (Endemic) प्रजाति थी किंतु वर्तमान में इन्हें असम के औरंग राष्ट्रीय उद्यान और लाओखोवा-बुराचापोरी वन्यजीव अभयारण्यों में भी देखा गया है।
बारहसिंघा हिरण
- बारहसिंघा को दलदली हिरण भी कहते हैं। यह बाघ अभयारण्य के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिये एक आवश्यक प्रजाति है।
- यह प्रजाति आई.यू.सी.एन. (IUCN) की ‘लाल सूची’ में ‘सुभेद्य’ (Vulnerable) श्रेणी में वर्गीकृत है और साइट्स (CITES) की अनुसूची-I में शामिल है। इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 के परशिष्ट-1 में शामिल किया गया है।