गेहूँ के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भौगोलिक संकेतक प्राप्त भालिया किस्म के गेहूँ की पहली खेप गुजरात से केन्या तथा श्रीलंका को निर्यात की गई है। भालिया गेहूँ को जुलाई 2011 में जी.आई. प्रमाणन प्राप्त हुआ था। इस प्रमाणीकरण का पंजीकृत प्रोपराइटर ‘आणंद कृषि विश्वविद्यालय’ गुजरात है।
भालिया गेहूँ में प्रोटीन एवं ग्लूटेन की मात्रा अधिक होती है तथा यह स्वाद में मीठा होता है। यह फसल अधिकतर गुजरात के भाल क्षेत्र में उगाई जाती है, जिसमें अहमदाबाद, आणंद, खेड़ा, भावनगर, सुरेंद्रनगर तथा भरूच ज़िले शामिल हैं।
भालिया गेहूँ की अनूठी विशेषता यह है कि इसे मिट्टी में संरक्षित नमी की मदद से वर्षा आधारित ज़मीन में सिंचाई के बिना उगाया जाता है। गुजरात की लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में इसकी खेती की जाती है। स्थानीय भाषा में इसे 'दौदखानी' के नाम से जाना जाता है।
इस पहल के माध्यम से भारत से गेहूँ के निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। विदित है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत से 4034 करोड़ रुपए मूल्य के गेहूँ का निर्यात किया गया है, जो वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में 808 फीसदी अधिक है। भारत ने वर्ष 2020-21 के दौरान 7 नए देशों को पर्याप्त मात्रा में अनाज का निर्यात किया, जिनमें यमन, इंडोनेशिया, भूटान, फिलीपींस, ईरान, कंबोडिया तथा म्यांमार शामिल हैं।