‘ब्लैक बॉक्स’ नारंगी रंग के धातु के दो बेलनाकार बॉक्स होते हैं, जिनको दुर्घटना आदि की जाँच में सहायता हेतु विमानों में अंतिम छोर (पूँछ) की ओर लगाया जाता है, जहाँ आमतौर पर दुर्घटना का प्रभाव सबसे कम होता है। ब्लैक बॉक्स रिकॉर्डर से युक्त होते हैं। 1950 के दशक की शुरुआत में बढ़ती वायु दुर्घटनाओं के मद्देनज़र इसकी परिकल्पना की गई थी।
- आरम्भ में, सूचनाओं को धातु की एक पट्टी पर रिकॉर्ड किया जाता था, जिसे बाद में चुम्बकीय ड्राइव और वर्तमान में सॉलिड-स्टेट मेमोरी चिपों में अपग्रेड किया गया, इसमें डाटा बिना पावर के भी सुरक्षित रहता है।
- अधिकांश विमानों में दो ब्लैक बॉक्स- 'कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर' (CVR) और 'फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर' (FDR) लगाने की आवश्यकता होती है। रेडियो प्रसारण और अन्य ध्वनियों (पायलटों के बीच बातचीत और इंजन के शोर आदि) को रिकॉर्ड करने के लिये सी.वी.आर. का प्रयोग किया जाता है। एफ.डी.आर. 80 से अधिक प्रकार की जानकारी, जैसे- ऊँचाई, हवा की गति, फ्लाइट हेडिंग, उर्ध्वाधर त्वरण, पिच, रोल, ऑटोपायलट स्टेटस आदि को रिकॉर्ड करता है।
- रिकॉर्डिंग उपकरणों को स्टील या टाइटेनियम जैसे मज़बूत पदार्थों से बने एक यूनिट में रखा जाता है, जो इसको अत्यधिक गर्मी, ठंड या नमी जैसे कारकों से बचाता है। ब्लैक बॉक्स एक प्रकाश स्तम्भ (Beacon) से लैस होता है, जो जल के सम्पर्क में आने पर 30 दिनों तक अल्ट्रासाउंड संकेत भेजता है, जिससे ब्लैक बॉक्स को जल निकायों में खोजने में सहायता मिलती है।
- हाल ही में, कोझीकोड में टेबलटॉप रनवे पर एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसके ब्लैक बॉक्स का विश्लेषण किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि टेबलटॉप रनवे सामान्यत: किसी पहाड़ी की चोटी को काटकर बनाए जाते हैं। भारत के प्रमुख टेबलटॉप रनवे कुल्लू, शिमला, कोझीकोड, मंगलुरु और लेंग्पुई में स्थित हैं।