खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग द्वारा मरुस्थलीकरण को कम करने तथा आजीविका एवं बहु-विषयक ग्रामीण उद्योग सहायता प्रदान करने के लिये एक अद्वितीय वैज्ञानिक अभ्यास शुरू किया गया है। ‘सूखे भू-क्षेत्र पर बाँस मरु-उद्यान’ परियोजना (Bamboo Oasis on Lands in Drought-BOLD) देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है, जिसकी शुरुआत राजस्थान के उदयपुर ज़िले के निकलमांडावा गाँव में की गई है।
इसके तहत असम से लाई गई बाँस की विशेष प्रजातियों बंबुसा टुल्डा और बंबुसा पॉलीमोर्फा के 5000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा रिक्त शुष्क भूमि में लगाया गया है। इस प्रकार के.वी.आई.सी. ने एक दिन में एक ही स्थान पर सर्वाधिक संख्या में बाँस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
बोल्ड परियोजना के तहत शुष्क व अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बाँस-आधारित हरित पट्टी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य भूमि क्षरण को कम करना तथा मरुस्थलीकरण को रोकना है। यह परियोजना खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित खादी बाँस महोत्सव का हिस्सा है।
खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा इसी वर्ष गुजरात के अहमदाबाद ज़िले तथा लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू की जाएगी। इससे भूमि क्षरण की दर को कम करने के साथ-साथ सतत विकास तथा खाद्य सुरक्षा में मदद मिलेगी।
बाँस में तेज़ी से वृद्धि के कारण इसे प्रत्येक तीन वर्ष की अवधि में काटा जा सकता है। इसे जल संरक्षण तथा भूमि की सतह से वाष्पीकरण को कम करने के लिये भी जाना जाता है, जो शुष्क एवं सूखाग्रस्त क्षेत्रों की बहुत महत्त्वपूर्ण विशेषता है।