चैफ प्रौद्योगिकी का प्रयोग मिसाइलों को उनके लक्ष्य से भ्रमित करने के लिये किया जाता है। इस प्रकार, यह तकनीक नौसैनिक पोतों को शत्रु के रडार तथा रेडियो फ्रीक्वेंसी आधारित मिसाइल डिडेक्टर्स से सुरक्षा प्रदान करती है। डी.आर.डी.ओ. ने मिसाइल हमलों से बचाव के लिये आधुनिक चैफ प्रौद्योगिकी का विकास किया है।
आत्मरक्षा के लिये प्रयोग की जाने वाली चैफ एक इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी है। चैफ़ रॉकेट वस्तुत: निष्क्रिय होते हैं, इनको आसानी से नष्ट भी किया जा सकता है। चैफ कई छोटे एल्यूमीनियम या जस्ता लेपित तंतुओं से निर्मित होता है। किसी भी मिसाइल से खतरा महसूस होने पर उसको भ्रमित करने के लिये चैफ़ को विमानों से हवा में छोड़ दिया जाता है।
डी.आर.डी.ओ. की जोधपुर स्थित रक्षा प्रयोगशाला इकाई ने तीन प्रकार की चैफ़ तकनीक का विकास किया है। ये इस प्रकार हैं- लंबी दूरी वाले चैफ रॉकेट (LRCR), मध्यम दूरी वाले चैफ रॉकेट (MRCR) और कम दूरी वाले चैफ रॉकेट (SRCR)। भारतीय नौसेना ने अरब सागर में इन तीनों प्रकार के रॉकेट्स का सफल प्रायोगिक परीक्षण किया है।
स्वदेशी रूप से विकसित यह प्रौद्योगिकी इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें रडार-निर्देशित मिसाइलों को उनके लक्ष्य और मार्ग से विचलित करने के लिये प्रलोभन के तौर पर बहुत कम मात्रा में चैफ रॉकेट को हवा में छोड़ने की आवश्यकता होती है।
विदित है कि मिसाइलों को भ्रमित करने के लिये विमानों में फ्लेयर्स का भी प्रयोग किया जाता है, जो ताप और ऊष्मा के आधार पर मिसाइलों को लक्ष्य से भटकाने में उपयुक्त है। इसमें दहन के लिये अधिकांशत: मैग्नीशियम छर्रों को किसी विमान द्वारा छोड़ा जाता है। जब ये फ्लेयर्स जलते हैं तो अत्यधिक मात्रा में अवरक्त प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं।