देहरादून के देवबन क्षेत्र में भारत के पहले क्रिप्टोगैमिक गार्डन का उद्घाटन किया गया है। उत्तराखंड क्रिप्टोगैम समूह जैसे लाइकेन, शैवाल, ब्रायोफाइट्स, तथा टेरिडोफाइट्स से संबंधित जैव-विविधता की दृष्टि से समृद्ध राज्य है।
इस उद्यान का चयन निम्न प्रदूषण स्तर, आर्द्र जलवायविक परिस्थितियों तथा इन प्रजातियों के विकास के लिये अनुकूल दशाओं के कारण किया गया है। इसमें लाइकेन, फर्न तथा कवक जैसी क्रिप्टोगैमिक समूह की लगभग 50 प्रजातियाँ पाई जाएंगी। 2,700 मी. की ऊँचाई पर 3 एकड़ क्षेत्र में फैले देवबन में देवदार तथा ओक जैसे प्राचीन राजसी वृक्षों के घने वन हैं, जो क्रिप्टोगैमिक प्रजातियों के लिये प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराते हैं।
क्रिप्टोगैम से तात्पर्य ‘अप्रत्यक्ष प्रजनन’ से है। इसमें पौधे में किसी प्रजनन संरचना, बीज या फूल का उत्पादन नहीं होता है। इस प्रकार ये पौधे पुष्परहित एवं बीजरहित पौधों का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्रिप्टोगैम ऐसे पौधे हैं, जो बीजाणुओं की मदद से प्रजनन करते हैं। क्रिप्टोगैम को जीवित रहने के लिये नम परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। ये जलीय व स्थलीय दोनों स्थानों पर पाए जाते हैं।
क्रिप्टोगैम पौधों की प्रजातियों के सबसे प्राचीन समूहों में से एक है, जो जुरासिक युग से मौजूद हैं। इस उद्यान के विकास का उद्देश्य क्रिप्टोगैम प्रजातियों को बढ़ावा देने के साथ इनके महत्त्व के संबंध में जागरूकता का प्रसार करना है। ये प्रजातियाँ पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र तथा पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिये अनिवार्य हैं।
पादप जगत को क्रिप्टोगैम तथा फ़ैनरोगैम जैसे दो उप-समूहों में विभाजित किया जा सकता है। क्रिप्टोगैम में ‘बीजरहित पौधे’ तथा ‘पादप समान जीव’ को शामिल किया गया है, जबकि फ़ैनरोगैम में ‘बीजयुक्त पौधे’ शामिल हैं। फ़ैनरोगैम को दो उपवर्गों, जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म में विभाजित किया जाता है।