‘डाईक्लोरो-डाइफिनाइल-ट्राइक्लोरोएथेन’ को सामान्यतया डी.डी.टी. कहा जाता है, जो एक रंगहीन, स्वादहीन और लगभग गंधहीन क्रिस्टलीय रासायनिक यौगिक है। इसे 1940 के दशक में आधुनिक संश्लेषित कीटनाशक के रूप में विकसित किया गया था।
- डी.डी.टी. एक 'स्थाई जैविक प्रदूषक' (Persistent Organic Pollutant) है, जिसे मृदा एवं अवसादों द्वारा आसानी से सोखा जा सकता है। डी.डी.टी. के जैव संचयन (Bioaccumulation) के कारण उत्तरी अमेरिका और यूरोप के कई शिकारी प्रजाति के पक्षियों के अण्डों के आवरण में पतलापन और उनकी जनसंख्या में गिरावट देखी गई है।
- स्थाई जैविक प्रदूषक को यू.एन.ई.पी. द्वारा ऐसे रासायनिक पदार्थ के रूप में परिभाषित किया गया है जो पर्यावरण में लम्बे समय तक बने रहते हैं और खाद्य संजाल (Food web) के माध्यम से शरीर में जैव संचयन करते हैं, जिसका मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- डी.डी.टी. के कृषि में उपयोग पर वैश्विक प्रतिबंध को औपचारिक स्वरूप स्थाई जैविक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम अभिसमय के तहत प्रदान किया गया था। हालाँकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों से निपटने हेतु डी.डी.टी. को एक प्रभावी रसायन मानते हुए इसके प्रयोग का सुझाव दिया है।
- उल्लेखनीय है कि रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम एच.आई.एल. इंडिया लिमिटेड ने हाल ही में मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के लिये दक्षिण अफ्रीका को 20.60 मीट्रिक टन डी.डी.टी. की आपूर्ति की है। एच.आई.एल. (इंडिया) विश्व में डी.डी.टी. बनाने वाली एकमात्र कम्पनी है।