बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले में स्थित विश्व प्रसिद्ध ‘केसरिया बुद्ध स्तूप’ नेपाल में गंडक नदी जलग्रहण क्षेत्र में बाढ़ के कारण जलमग्न हो गया है। विदित है कि बिहार के पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण ज़िले कई स्थानों पर नेपाल के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं।
यह स्तूप बिहार की राजधानी पटना से लगभग 110 किमी. दूर स्थित है। लगभग 104 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्तूप लगभग 400 फीट की परिधि में फैला हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित इस स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कराया गया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप माना जाता है।
वर्ष 1814 में कर्नल मैकेंज़ी द्वारा इसकी खोज की गई थी। इसके पश्चात् वर्ष 1861-62 में जनरल कनिंघम द्वारा इसकी खुदाई की गई तथा वर्ष 1998 में पुरातत्त्व अन्वेषण विभाग द्वारा इस स्थल के उत्खनन के बाद इसे विश्व का सबसे ऊँचा बौद्ध स्तूप होने का गौरव प्राप्त हुआ।
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर की ओर प्रस्थान करते समय इसी स्थान पर लिच्छविओं को अपना भिक्षा पात्र प्रदान किया था। चीनी यात्री फाह्यान तथा ह्वेनसांग ने अपने वृतांत में इस स्तूप, बुद्ध एवं लिच्छवियों की कथा का उल्लेख किया है। इस स्थान पर एक अशोक स्तंभ के अवशेष मिलने के कारण मूल केसरिया स्तूप को सम्राट अशोक (लगभग 250 ईसा पूर्व) के समय का माना जाता है। स्थानीय लोगों द्वारा स्तूप को ‘देवालय’ कहा जाता है। ए.एस.आई. ने इसे राष्ट्रीय महत्त्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया है।