अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह में बढ़ते पर्यटन और बंदरगाहों के विकास के कारण संरक्षणवादियों ने लेदरबैक समुद्री कछुए के आवास से संबंधित चिंताएँ व्यक्त की हैं। भारत में ये कछुए केवल अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह में ही पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, हिंद महासागर में ये श्रीलंका और इंडोनेशिया क्षेत्र में पाए जाते हैं।
लेदरबैक कछुआ, समुद्री कछुओं की कुल 7 प्रजातियों में सर्वाधिक विशाल है। इसका वैज्ञानिक नाम डरमोचेल्स कोरिअसीआ (Dermochelys Coriacea) है। इसका ऊपरी खोल चमड़े का बना होता है। ये आर्कटिक तथा अंटार्कटिक को छोड़कर बाकी सभी महासागरों में पाए जाते हैं।
भारत में समुद्री कछुओं को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षण प्राप्त है। आई.यू.सी.एन. की रेड लिस्ट में इन्हें गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। लेदरबैक समुद्री कछुआ जेलीफिश को नियंत्रण में रखता है जिस कारण समुद्र में ताज़े जल की मछलियों की संख्या बनी रहती है, परंतु समुद्री क्षेत्र में बढ़ते प्लास्टिक कचरे के कारण तेज़ी से इनकी मृत्यु हो रही है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ‘राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्ययोजना’ जारी की गई है, इसके लिये अंडमान और निकोबार को प्रमुख स्थल के रूप में चुना गया है। इस कार्ययोजना का उद्देश्य समुद्री कछुओं और उनके आवास स्थलों को संरक्षण प्रदान करना है।