‘तरल ऑक्सीजन’ वायु से शुद्ध ऑक्सीजन को अलग करके बनाई जाती है, जो आणविक ऑक्सीजन का तरल रूप है। इसके लिये वायु को तेज़ी से ठंडा करते है, जिससे वह सर्वप्रथम जीनॉन फिर क्रिप्टॉन एवं ऑक्सीजन लिक्विड (तरल) में परिवर्तित हो जाती है। वायु से गैसों को पृथक करने की इस तकनीक को ‘क्रायोजेनिक टेक्निक फॉर सेपरेशन ऑफ एयर’ कहते हैं।
ऑक्सीजन को लिक्विड में बदलने के लिये इसे -183 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर ठंडा करना पड़ता है। यह संपूर्ण प्रक्रिया अत्यधिक दाब में पूरी की जाती है ताकि गैसों का क्वथनांक (Boiling Point) बढ़ जाए। इस प्रक्रिया से तैयार लिक्विड ऑक्सीजन 99.5% तक शुद्ध होती है और इसमें नमी, धूल या अन्य गैसों जैसी अशुद्धि नहीं होती है।
लिक्विड फॉर्म में बदलने के बाद इसकी आपूर्ति क्रायोजेनिक टैंकरों से की जाती है, जो अत्यधिक ठंडे होते हैं, इनमें लिक्विड ऑक्सीजन गैस में नहीं बदल पाती है। इससे कम स्थान में अत्यधिक ऑक्सीजन का परिवहन किया जा सकता है।
इस शुद्ध ऑक्सीजन का प्रयोग मेडिकल ऑक्सीजन (गैस के रूप में) और उद्योगों (मुख्यत: इस्पात व पेट्रोलियम) में किया जाता है। मेडिकल ऑक्सीजन कानूनी रूप से एक आवश्यक दवा है जो देश की अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल है। इसे स्वास्थ्य देखभाल के तीन स्तरों- प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक के लिये आवश्यक माना गया है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूची में भी शामिल है।