‘मेडिको-लीगल केस’ को चोट या बीमारी से संबंधित विधिक मामले के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसके अंतर्गत वाहन दुर्घटनाओं, दहन, संदिग्ध हत्या/हत्या, यौन उत्पीड़न तथा आपराधिक गर्भपात आदि कारणों से लगने वाली चोट या संबंधित रोगों को शामिल किया गया है।
पीड़ित व्यक्ति के चिकित्सालय पहुँचने पर सर्वप्रथम उसे चिकित्सीय सहायता प्रदान की जाती है, किंतु चोट या बीमारी के कारण के संबंध में दायित्व तय करने के लिये विधि प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जाँच आवश्यक होती है।
ऐसे मामले में जाँच तथा रिपोर्टिंग चिकित्सालयों में कार्यरत सभी चिकित्सकों का विधिक दायित्व है। इसके अंतर्गत आने वाले मामलों की सूचना निकटतम पुलिस स्टेशन को देनी होती है। पुलिस जाँच के तहत लाए जाने पर यह एक कानूनी मामला हो जाता है, जिसके लिये चिकित्सीय विशेषज्ञता आवश्यक है।
परमानंद कटारा बनाम भारत संघ वाद में शीर्ष अदालत द्वारा दिये गए निर्णय के अनुसार प्रत्येक चिकित्सक किसी भी प्रकार घायल या क्षतिग्रस्त होने पर पीड़ित को चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने के लिये बाध्य है। वे कानून को अपना काम करने देने का हवाला देकर इससे मुक्त नहीं हो सकते है।
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 के अनुसार इस मामले में चिकित्सक का विधिक कर्तव्य है कि प्राथमिक चिकित्सा देने के तुरंत बाद वह निकटतम पुलिस स्टेशन को इसकी सूचना दे, ताकि पुलिस त्वरित कार्यवाही शुरू करके अधिक से अधिक साक्ष्य एकत्र कर सके।