‘मंगोलियन कंजुर’ बौद्ध धर्म से सम्बंधित पांडुलिपियाँ (Manuscripts) हैं, जिन्हें मंगोलिया में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धर्म ग्रंथ माना जाता है। 1970 के दशक में प्रोफेसर लोकेश चंद्र ने 108 खंडों में (भारत में) इनका प्रकाशन किया था। ‘कंजुर’ शब्द का आशय है- ‘संक्षिप्त आदेश’ (Concise Orders)।
- हाल ही में, केंद्रीय पर्यटन व संस्कृति मंत्रालय ने ‘राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन’ के तहत ‘मंगोलियन कंजुर’ के पुनर्मुद्रण (Reprinting) का कार्य आरम्भ किया है, जिसे वर्ष 2022 तक पूरा किया जाना है।
- ‘मंगोलियन कंजुर’ की भाषा ‘क्लासिकल मंगोलियन’ है। इन्हें तिब्बती भाषा से अनूदित किया गया है। ये पुस्तकें मंगोलिया के प्रत्येक बौद्ध मठ व मंदिरों में उपस्थित होती है। वहाँ इन्हें अत्यंत पवित्र माना जाता है और रोज़ाना इनकी पूजा की जाती है।
- उल्लेखनीय है कि संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2003 में ‘राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन’ लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य दुर्लभ व अप्रकाशित पांडुलिपियों में निहित ज्ञान को उजागर करना तथा इसे शोधार्थियों, अध्येताओं व जन सामान्य के लिये सुलभ कराना था।
- रूस व चीन से घिरा ‘मंगोलिया’ कज़ाख्स्तान के पश्चात् विश्व का दूसरा सबसे बड़ा भू-आबद्ध (Landlocked) देश है, जिसके साथ भारत ने अपने औपचारिक राजनयिक सम्बंध वर्ष 1955 में स्थापित किये थे।