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मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal antibody)

  • ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रेरित करने वाले रोगाणु के एंटीजन को लक्षित करने के लिये कृत्रिम रूप से निर्मित एंटीबॉडी हैं। इन्हें लक्षित रोगाणु के प्रोटीन से निर्मित किया जाता है। इनका उपयोग चिकित्सकों द्वारा प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिये टीके के रूप में किया जाता है।
  • इनके निर्माण के लिये श्वेत रक्त कोशिकाओं को विशिष्ट एंटीजन के संपर्क में लाया जाता है। एंटीबॉडी का अधिक मात्रा में उत्पादन करने के लिये एकल श्वेत रक्त कोशिका का एक क्लोन बनाया जाता है, जिससे एंटीबॉडी की समरूप प्रतियाँ बनाई जा सकती हैं।
  • कोविड-19 से निपटने के लिये SARS-CoV-2 नामक वायरस के ‘स्पाइक प्रोटीन’ का उपयोग किया जा रहा है। यह ‘स्पाइक प्रोटीन’ मेज़बान कोशिका में वायरस को प्रविष्ट कराने में सहायक होता है।
  • एंटीबॉडी रक्त में पाए जाने वाले वाई-आकार (Y-shape) के सूक्ष्म प्रोटीन होते हैं, जो रोगाणु की पहचान कर उन्हें जकड़ लेते हैं तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को रोगाणुओं पर हमला कर नष्ट करने का संकेत देते हैं। रोग के उपचार में एंटीबॉडी का उपयोग सर्वप्रथम 1900 के दशक शुरू हुआ, जब नोबेल पुरस्कार प्राप्तकर्ता जर्मन प्रतिरक्षा विज्ञानी ‘पॉल एर्लिच’ द्वारा ‘जाबरक्युग्ल’ (Zauberkugel) एंटीबॉडी का विचार प्रस्तावित किया गया।
  • मनुष्य में नैदानिक उपयोग हेतु स्वीकृत विश्व की पहली मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ‘म्युरोमोनाब-सीडी3’ (Muromonab-CD3) है। इसका उपयोग ‘अंग प्रत्यारोपण’ किये हुए रोगियों में तीव्र अस्वीकृति (Acute Rejection) को कम करने के लिये किया जाता है।
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