नागोबा जात्रा या केसलापुर जात्रा एक आदिवासी त्यौहार है जो राज्य के आदिलाबाद (तेलंगाना) के इंद्रेवेल्ली मंडल के केसलापुर गाँव में आयोजित किया जाता है।
- यह त्यौहार ‘राज गोंड’ जनजाति की मेसराम/मेश्राम कुल की बोइगट्टा शाखा का एक बड़ा धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन है। इसमें नागोबा नामक सर्प देवता की महापूजा होती है और इसमें गोंड जनजाति के नर्तक गुसाड़ी नृत्य (Gusadi Dance) का प्रदर्शन करते हैं। यह मेश्राम कुल के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय त्यौहार है। नागोबा जात्रा में शामिल होने के लिए हर साल तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तथा छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रांतों से बड़ी संख्या में इस कुल के लोग आते हैं।
- इस त्यौहार के दौरान श्री शेक मंदिर में नागोबा देवता की महापूजा आयोजित की जाती है। पुष्य मासाम (पौष माह – हिंदू चंद्र पंचांग का दसवाँ महीना) में आदिवासी पुजारियों द्वारा केसलापुर गाँव से 70 किमी. दूर गोदावरी नदी से लाए गए जल से नागोबा की मूर्ति पर जलाभिषेक करने के बाद 10 दिवसीय त्यौहार शुरू होता है।
- इस दौरान भेटिंग (Bheting) नामक एक समारोह भी होता है, जिसमें नई दुल्हनों का कुल देवता से परिचय कराया जाता है। इस त्यौहार के दौरान पुरुष सफेद धोती-कुर्ता और पगड़ी तथा महिलाएँ पारम्परिक रंगीन नौ-वारी साड़ी (महाराष्ट्र में प्रचलित नौ गज की साड़ी) पहनती हैं।
- गोंड जनजाति मुख्यतः मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के आलावा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों में निवास करती है , गोंड अनुसूचित जनजाति श्रेणी में सूचीबद्ध हैं। इनकी जातीय भाषा गोंडी है जो द्रविड़ कुल की एक भाषा है।
- गोंड जनजाति को चार वर्गों में विभाजित किया गया है, ‘राज गोंड’, ‘मड़िया गोंड’,’धुर्वे गोंड’ और ‘खतुलवार गोंड’।
- त्यौहार के समय में ये मुख्यतः चावल खाते हैं। भोजन के मामले में कोदो और कुटकी इनके प्रिय अनाज हैं। इन्हें पहले राज गोंड के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में यह नाम गोंड राजाओं के राजनीतिक ग्रहण के कारण अप्रचलित हो गया। गोंड शब्द को तेलुगू शब्द कोंडा से लिया गया है, जिसका अर्थ है पहाड़ी।