नगरी दुबराज छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी में उगाई जाने वाली चावल की एक प्रजाति है। इसकी महक के कारण इसे ‘छत्तीसगढ़ का बासमती’ भी कहा जाता है।
यह चावल की एक स्वदेशी किस्म है। छोटे दाने, पौधे की कम ऊँचाई, 140 दिन की परिपक्वता अवधि आदि इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं। इसमें एक एकड़ से अधिकतम छह क्विंटल उपज मिलती है।
नगरी दुबराज का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है जहाँ इसकी उत्पत्ति सिहावा के श्रृंगी ऋषि आश्रम क्षेत्र से मानी गयी है।
जीराफूल चावल (2019) के बाद नगरी दुबराज भौगोलिक संकेतक प्राप्त करने वाली छत्तीसगढ़ की चावल की दूसरी प्रजाति है।