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नवरोज़ (Navroz)

हाल ही में, भारत में पारसी नव वर्ष अर्थात नवरोज़ मनाया गया। फारसी भाषा में नवरोज़ का अर्थ 'नया दिन' होता है। भारत में नवरोज़ त्योहार आमतौर पर अगस्त माह में मनाया जाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर अन्य पारसी समुदायों द्वारा यह मार्च माह के आस-पास मनाया जाता है क्योंकि भारत में पारसी समुदाय के लोग शहंशाही कैलेंडर (Shahenshahi Calendar) को मानते हैं, जबकि अन्य सभी देशों में पारसी लोग ईरानी कैलेंडर (हिजरी शमसी कैलेंडर) को मानते हैं।

  • लीप वर्ष को न मानने के कारण, शहंशाही कैलेंडर में नवरोज़ त्योहार ईरानी कैलेंडर की अपेक्षा लगभग 200 दिन बाद आता है। फ़ारसी राजा जमशेद का शहंशाही कैलेंडर के निर्माण में योगदान होने के वजह से नवरोज़ को जमशेद-ए-नवरोज़ के नाम से भी जाना जाता है।
  • ध्यातव्य है कि राजस्व संग्रहण व कर वसूलने के लिये 1079 ई. में फारसी राजा जलालुद्दीन मालेकशाह ने नवरोज़ (नव वर्ष) त्योहार की शुरुआत की थी। ईरानी कैलेंडर में यह पहले महीने (फरवर्दिन) के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।
  • नवरोज़ को यूनेस्को के अंतर्गत अमूर्त सांस्कृतिक विरासत भारत की मानवता (UNESCO Intangible Cultural Heritage of Humanity of India) की सूची में भी शामिल किया गया है।
  • विश्व में पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, काकेशस, काला सागर बेसिन और बाल्कन में यह त्योहार मनाया जाता है तथा भारत में यह मुख्यतः महाराष्ट्र एवं गुजरात में मनाया जाता है क्योंकि इन क्षेत्रों में पारसी समुदाय की आबादी ज़्यादा है।
  • नवरोज़ त्यौहार 'इक्वीनॉक्स से आरम्भ होता है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'समान'। खगोलशास्त्र के अनुसार, यह वह समय होता है, जिसमें दिन और रात लगभग बराबर होते हैं तथा सूर्य भूमध्यरेखा पर लम्बवत चमकता है।
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