सूर्य की परिक्रमा करने वाले धूमकेतु जैसे-जैसे सूर्य के करीब आते हैं, उनकी बर्फीली/पहाड़ी सतह गर्म हो जाती है और सतह से धूल एवं चट्टानों के बहुत से अवयव (उल्कापिंड) मलबे के रूप में उनसे अलग हो जाते हैं तथा अक्सर सौर मंडलों में प्रवेश कर जाते हैं और विभिन्न स्तरों से घर्षण होने के कारण अत्यधिक गर्मी होने की वजह से इनसे चिंगारियाँ निकलती हैं, जो उल्का वर्षा कहलाती हैं।
- अधिकतर उल्काओं का आकार बहुत ही छोटा (रेत के कण से भी छोटा) होता है, इसलिये वे ग्रहों के सतह तक पहुँचने से बहुत पहले ही नष्ट हो जाती हैं। अधिक घनी उल्का वर्षा को उल्का बौछार (meteor outburst) या उल्का तूफान (meteor storm) कहते हैं और इनमें एक घंटे में 1000 से अधिक उल्काएँ गिर सकती हैं।
- पृथ्वी के समीप से गुज़रने वाले धूमकेतुओं द्वारा अक्सर पृथ्वी पर भी उल्का वर्षा होती है। जैसे स्विफ़्ट-टटल धूमकेतु द्वारा उल्का वर्षा हर वर्ष मध्य-जुलाई से मध्य-अगस्त के बीच दिखती है; यह आकाश में ययाति तारामंडल के क्षेत्र में दिखती है, जिसे अंग्रेज़ी में "पर्सियस काँस्टेलेशन" कहते हैं जिस कारणवश इस वर्षा को 'पर्सीड्स' (Perseids) कहा जाता है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2020 में 17 से 26 अगस्त के मध्य पर्सीड्स उल्का वर्षा (Perseids Meteor Shower) के दिखने की सम्भावना है। यद्यपि प्रदूषण और मानसूनी बादलों के कारण इसे भारत में देखने में मुश्किल होगी। पर्सीड्स उल्का वर्षा को सर्वप्रथम 2000 वर्ष पूर्व देखा गया था।
- स्विफ्ट-टटल धूमकेतु (Comet Swift-Tuttle) की ख़ोज वर्ष 1862 में लुईस स्विफ्ट( Lewis Swift) और होरेस टटल (Horace Tuttle) द्वारा की गई थी। इसे सूर्य की परिक्रमा में लगभग 133 वर्ष लगते हैं।