कुपोषण को दूर करने के लिये 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' या 'पोषण अभियान' के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष सितम्बर माह को पोषण माह के रूप में मनाया जाता है।
इस वर्ष पोषण माह में पोषक तत्त्वों से भरपूर पौधे लगाने के लिये पोषण वाटिकाएँ स्थापित करने पर ज़ोर दिया जाएगा। साथ ही, बच्चों के जन्म लेने के शुरुआती 1000 दिनों में अच्छे पोषण के लिये महिलाओं में स्तनपान के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करने और युवा महिलाओं एवं बच्चों में रक्ताल्पता (एनीमिया) दूर करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसमें सोशल मीडिया, ऑनलाइन गतिविधियों, पॉडकास्ट और ई-संवाद का उपयोग किया जाएगा।
इस मिशन की शुरुआत वर्ष 2018 में 3 वर्ष की अवधि के लिये की गई थी, जिसके लिये 9046 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है।
भारत सरकार द्वारा 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों तथा गर्भवती एवं धात्री महिलाओं में कुपोषण के स्तर में चरणबद्ध तरीके से प्रतिवर्ष 2% की कमी लाते हुए 3 वर्षों में 6% की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है।
भारत में पोषण की स्थिति अत्यधिक गम्भीर है, विश्व में केवल नाइजीरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों की स्थिति भारत से भी ख़राब है। बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और झारखण्ड जैसे राज्यों में 40% से अधिक बच्चे कुपोषित हैं तथा महिलाओं में लगभग आधी आबादी एनीमिया की शिकार है। झारखण्ड में तो 65% से अधिक महिलाएँ रक्ताल्पता की शिकार हैं।