हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूर्वोत्तर भारत में पाया जाने वाला एक पालतू अमेरिकी कछुआ समूचे क्षेत्र के जल निकायों को नष्ट कर रहा है। ध्यातव्य है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र देश में पाए जाने वाले ताज़े जल के कछुओं (Turtles and tortoises) की 29 में से 21 संवेदनशील स्थानिक प्रजातियों का निवास स्थल है।
'हेल्प अर्थ' नामक एन.जी.ओ. के सरीसृप विज्ञानियों के दल ने असम के गुवाहाटी स्थित दीपोर बील वन्यजीव अभयारण्य तथा उग्रतारा मंदिर के जलाशय में इस कछुए की उपस्थित का पता लगाया था। इसकी पारितंत्रीय प्रतिकूलता की वजह से इसे पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र तथा अन्य नदी पारितंत्रों से दूर रखने का प्रयास किया जा रहा है।
इस कछुए को 'रेड-इअर्ड स्लाइडर' इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसके सिर में कानों के स्थान पर लाल रंग की पट्टी बनी होती है और यह किसी भी सतह से जल में बहुत तेज़ी से सरकता है। इसका वैज्ञानिक नाम 'ट्रेकेमिस स्क्रिप्टा एलिगन्स' (Trachemys scripta elegans) है।
यह कछुआ अमेरिका तथा मैक्सिको की स्थानिक प्रजाति और एक बहुत ही लोकप्रिय पालतू जीव है। एक दूसरा पहलू यह है कि यह बहुत जल्दी बड़ा होता है और जिस भी स्थान पर रहता है, वहाँ अन्य स्थानिक प्रजातियों के भोजन के लिये कुछ भी नहीं छोड़ता।