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सिलिकोसिस (Silicosis)

  • ‘सिलिकोसिस’ मानव फेफड़ों को प्रभावित करने वाली एक बीमारी है। जब धूल में उपस्थित ‘सिलिका/क्वार्ट्ज के कण’ श्वसन के माध्यम से फेफड़ों तक पहुँचते हैं और वहाँ निरंतर जमा होते रहते हैं, तब यह बीमारी जन्म लेती है।
  • सीने में दर्द, साँस लेने में तकलीफ, बुखार, वजन घटना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। फेफड़ों में जमा होने वाले सिलिका कणों की मात्रा के आधार पर यह बीमारी 3-प्रकार की होती है–

i. क्रोनिक सिलिकोसिस (Chronic Silicosis)– सिलिकोसिस बीमारी का यह सबसे सामान्य प्रकार है। इसके अंतर्गत फेफड़ों पर जमा होने वाली सिलिका की सांद्रता अत्यंत कम होती है। इसके लक्षण 10 या उससे अधिक वर्षों में दृष्टिगत होते हैं।

ii. एक्सेलरेटेड सिलिकोसिस (Accelerated Silicosis)– जब क्रोनिक सिलिकोसिस के बाद भी फेफड़ों पर सिलिका के कण जमा होते रहते हैं, तो 5-10 वर्षों में इसके लक्षण उभरते हैं।

iii. एक्यूट सिलिकोसिस (Acute Silicosis)– यह इस बीमारी की सबसे गम्भीर अवस्था है। इसके अंतर्गत मनुष्य तेज़ी से मृत्यु की ओर अग्रसर होने लगता है।

  • श्वसन सम्बंधी इस बीमारी को पहचानना बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि–

i. यह ट्यूबर क्लोसिस (TB) के समरूप प्रतीत होती है।

ii. इसके लक्षण कई वर्षों के पश्चात् प्रकट होते हैं।

  • ध्यातव्य है कि यह एक लाइलाज (Incurable) बीमारी है, किंतु समय पर इसकी पहचान होने पर एक्स-रे, सी.टी.स्कैन, बलगम जाँच आदि विधियों द्वारा इसका उपचार (Treatment) सम्भव है। मुख्यतः यह बीमारी खनन क्षेत्र, सीमेंट उद्योग, काँच उद्योग आदि में कार्यरत लोगों या इन उद्योगों के समीप बसे लोगों को प्रभावित करती है।
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