‘कोडाईकनाल सौर वेधशाला’ ने डिजिटाइज्ड डाटा द्वारा सौर परिभ्रमण का अध्ययन किया है। इससे सूर्य के आतंरिक भाग में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के अध्ययन में मदद मिलेगी, जो सूर्य की सतह पर दिखने वाले ‘सौर धब्बों’ (Sunspots) के लिये उत्तरदायी है। इसके चलते पृथ्वी पर लघु हिमयुग (सौर धब्बों का अभाव) जैसी चरम परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
सूर्य की गति उसके ध्रुवों की अपेक्षाकृत भूमध्यरेखा पर अधिक होती है, समय के साथ उसकी परिभ्रमण गति में होने वाला परिवर्तन चुंबकीय क्षेत्र को अधिक जटिल बना देता है, जिसके कारण ‘सौर धब्बे/कलंक’ उत्पन्न होते हैं। चुम्बकीय जटिलता के कारण उत्पन्न सौर धब्बे सूर्य की आतंरिक ऊष्मा को सतह पर जाने से रोकते हैं, जिससे ऊष्मा आकस्मिक रूप से प्रस्फुटित होती है। इससे ‘सौर फ्लेयर’ निर्मित होता है।
‘सौर कलंक’ सूर्य की सतह पर गहरे काले धब्बे होते हैं, जो सतह के अन्य भागों की अपेक्षा अधिक गर्म होते हैं। इससे सूर्य के आतंरिक चुंबकत्व का अध्ययन कर सौर परिभ्रमण का आकलन किया जा सकता है।
‘सौर फ्लेयर’ के कारण अत्यधिक सौर विकिरण उत्सर्जन से पृथ्वी पर रेडियो संचार, ध्रुवीय प्रकाश तथा जी.पी.एस. कनेक्टिविटी प्रभावित होती है।