हाल ही में, कोविड -19 महामारी के दौरान, यक्षगान रंगमंच से जुड़ी पारम्परिक कला ‘ताल-मद्दले (Talamaddale)’ की सोशल मीडिया पर लाइव प्रस्तुति की गई।
- यह कर्नाटक के करावली तथा केरल के मलनाड क्षेत्र में प्रचलित प्रदर्शन एवं संवाद कला का एक प्राचीन रूप है। इसके अंतर्गत, संवाद अथवा वाद-विवाद प्रस्तुति का आयोजन किया जाता है।
- इसमें प्रस्तुति के कथानक तथा विषय को लोकप्रिय पौराणिक कथाओं से लिया जाता है। प्रस्तुति के दौरान कलाकार हास-परिहास, व्यंग्य तथा दर्शन इत्यादि का प्रयोग करते हैं। सामान्यतः इसमें एक अर्थधारी (वक्ता), एक भागवथ (गायक व निर्देशक) तथा एक मद्दले वादक शामिल होते हैं।
- यक्षगान के विपरीत, पारम्परिक ताल-मद्दले में शामिल कलाकार कोई विशेष वेश-भूषा धारण नहीं करते हैं, बल्कि सम्पूर्ण प्रदर्शन के दौरान मंच पर एक स्थान पर बैठकर कथानक के आधार पर अपनी वाक् कला का प्रदर्शन करते हैं।
- यद्यपि यक्षगान प्रदर्शन तथा ताल-मद्दले दोनों में संगीत एवं कथानक की समानता होती है; परंतु ताल-मद्दले में केवल संवादों का प्रयोग किया जाता है, जबकि यक्षगान में कलाकार विशिष्ट वेश-भूषा धारण करके नृत्य-अभिनय का प्रदर्शन करते हैं।