‘तंजावुर कलई’ एक लोकप्रिय हस्तकला है, जो लम्बे समय से तमिलनाडु के 'मंदिर शहर' के रूप में प्रसिद्ध तंजावुर में अस्तित्व में है। इसके अंतर्गत चांदी, कांस्य और तांबे जैसी धातुओं की गोलाकार प्लेट के केंद्र में देवी-देवताओं की आकृतियाँ उभरे हुए रूप में बनाई जातीं हैं।
आधुनिक समय में, व्यावसायिक रूप से इस शिल्प को तंजावुर कलई थाटु या तंजावुर आर्ट प्लेट के रूप में जाना जाता है। इस कला को अपनी लम्बी विरासत के प्रमाण के रूप में वर्ष 2007 में भौगोलिक संकेतक (GI Tag) प्रदान किया गया था।
इसके लिये न सिर्फ धातुकर्मी, जौहरी और पैटर्न डिज़ाइनर के कौशल की आवश्यकता होती है, बल्कि इसमें भिन्न-भिन्न उपकरण भी प्रयुक्त होते हैं। इसे कुटीर उद्योग के अंतर्गत रखा गया है क्योंकि यह कारीगरों द्वारा घर पर ही बनाया जाता है।
तमिलनाडु में कलात्मकता के शिखर के रूप में प्रतिष्ठित होने के बाद, तंजावुर आर्ट प्लेट को अक्सर राज्य सरकार के गणमान्य लोगों को भेंट किया जाता रहा है।
तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित ऐतिहासिक शहर तंजावुर या तंजौर कावेरी के उपजाऊ डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण ‘दक्षिण में चावल का कटोरा’ के नाम से विख्यात है। 850 ई. में चोल वंश ने मुथरयार प्रमुखों को पराजित करके तंजावुर को राजधानी बनाया तथा 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर शासन किया। इनके बाद मराठाओं ने यहाँ शासन किया।