तोलप्पावक्कूत्तु केरल की एक आनुष्ठानिक छाया कठपुतली कला है। तोलप्पावक्कूत्तु का शाब्दिक अर्थ है ‘चर्म कठपुतली खेल’। इसमें चमड़े की कठपुतलियों का प्रदर्शन भद्रकाली के धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। भद्रकाली को केरल में देवताओं की माता के रूप में पूजा जाता है।
इस कला का मूल विषय कंब रामायण पर आधारित है, जिसका वाचन सामान्यतः मलयालम और तमिल कुल की बोलियों में किया जाता है। इस प्रदर्शन में भगवान श्री राम के जन्म से लेकर अयोध्या में उनके राज्याभिषेक तक की घटनाओं का चित्रण किया जाता है।
छाया कठपुतली का प्रस्तुतीकरण ‘कूत्तुमठम’ में किया जाता है, जो मंदिर परिसर में निर्मित एक बड़ी नाट्यशाला होती है। कठपुतलियाँ भैंस और हिरण के स्वरूप में होती हैं, इनमें भैंस बुरे चरित्र को और हिरण भले चरित्र को निरूपित करते हैं। पहले कठपुतलियाँ हिरन के चमड़ों से बनाई जाती थीं, किंतु अब बकरी के चमड़ों से बनाई जाने लगी हैं। कठपुतलियों को सब्ज़ियों से प्राप्त रंगों से रंगा जाता है क्योंकि ये रंग अधिक टिकाऊ होते हैं।
आर्य और द्रविड़ संस्कृतियों के एकीकरण का उत्कृष्ट उदाहरण यह कला नौवीं शताब्दी के आस-पास प्रचलन में थी। वर्तमान में यह कला पालक्कड ज़िले के पुलवार परिवारों तक ही सीमित रह गई है। ध्यातव्य है कि इस छाया कठपुतली नृत्य को पहली बार रोबोट द्वारा संचालित किया जा रहा है ।