थोलू बोम्मालटा आंध्रप्रदेश की पारंपरिक छाया कठपुतली कला है। कला के इस रूप की उत्पत्ति 200 ईसा पूर्व में सातवाहन काल के दौरान हुई थी।
चमड़े से निर्मित इन कठपुतलियों को भूमिकाओं की प्रकृति के अनुसार स्थानीय निर्मित प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है।
वर्ष 2008 में आंध्रप्रदेश के गाँव निम्मलकुंता को इस कठपुतली कला के लिये भौगोलिक संकेतक प्रदान किया गया था।
सदियों से छाया कठपुतली का उपयोग रामायण एवं महाभारत की कहानियों के माध्यम से सामाजिक और नैतिक मूल्यों के संबंध में जागरूकता प्रसार के लिये किया जाता रहा है।