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विकास में नारी शक्ति का योगदान

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण) 

संदर्भ 

वर्तमान में देश में महिलाएँ कल्याण के कई मापदंडों पर पिछड़ रही हैं। वर्ष 2047 तक विकसित भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार करने के लिए महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता है।  

भारत में श्रम बल भागीदारी की स्थिति  

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और विश्व बैंक के अनुसार, भारत की कुल रोजगार दर कार्यशील आयु की आबादी का लगभग 50% ही है। 
    • यह चीन (लगभग 70%) और बांग्लादेश (लगभग 55%) की तुलना में बहुत कम है। 
  • उच्च जी.डी.पी. विकास दर हासिल करने के लिए अधिक कार्यशील आयु वाली आबादी को उत्पादक कार्यबल में शामिल करना महत्त्वपूर्ण है। 

महिला श्रम बल भागीदारी 

  • भारत में श्रम बल भागीदारी (Labour Force Participation : LFP) दर में अत्यधिक कमी का मुख्य कारण महिलाओं की कम एल.एफ.पी. (वर्तमान में लगभग   25%) है। 
  • वर्तमान में भारत के एफ.एल.पी. में कम-कुशल एवं कम-शिक्षित महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। 
    • हालाँकि, इससे भारत की विनिर्माण क्षमता का विस्तार हो रहा है, जो विगत दशक में सकल घरेलू उत्पाद के 17% से घटकर लगभग 13% हो गई थी। 
  • विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार महिलाओं की एल.एफ.पी. को श्रम शक्ति के 50% तक बढ़ाने से भारत वर्ष 2030 तक 8% जी.डी.पी. विकास दर और पाँच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल कर सकता है।

महिला श्रम बल भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारक 

उत्पादन संबद्ध निवेश योजना 

  • उत्पादन संबद्ध निवेश (PLI) योजना का लक्ष्य महिला श्रम बल भागीदारी में वृद्धि के उद्देश्य को प्राप्त करना है। 
  • हालाँकि, वर्तमान में यह निम्न श्रम-गहन क्षेत्रों पर अधिक केंद्रित है। 
  • रेडीमेड परिधान, जूते एवं अन्य हल्के विनिर्माण जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है जहाँ महिला श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा कार्यरत है। 
    • इन क्षेत्रों को पी.एल.आई. योजना के दायरे में लाने से भारत को श्रम नियमों और भूमि अधिग्रहण से जुड़ी बाधाओं के कारण इन क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में होने वाली लागत संबंधी कमियों को दूर किया जा सकेगा।  

औपचारिक क्षेत्र 

  • एक विकसित देश का प्रमुख मानदंड औपचारिक क्षेत्र है।
  • भारत में निम्न-उत्पादकता से उच्च-उत्पादकता गतिविधि की ओर धीमी गति से संक्रमण और अच्छे रोज़गार की अत्यधिक आवश्यकता के बारे में चिंताएँ हैं।
  • एक अन्य अंतर्निहित चुनौती जनता और विशेष रूप से महिलाओं को उच्च-गुणवत्ता युक्त, प्रासंगिक व किफायती कौशल प्रदान करना है।
  • भारत के लगभग 25% नियोजित लोग वेतनभोगी (ज्यादातर औपचारिक क्षेत्र) कार्यों में संलग्न हैं। 
    • चीन एवं बांग्लादेश में यह अनुपात क्रमशः 55% व 40% है। 
  • कृषि क्षेत्र के बाहर होने वाले संरचनात्मक परिवर्तन और श्रम बाजार के अनौपचारिक चरित्र ने विगत कुछ दशकों में महिलाओं को असंगत रूप से प्रभावित किया है।  
    • इससे ग्रामीण महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में गिरावट के साथ ही  अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के अनुपात (लगभग 90%) में वृद्धि हुई है। 

कौशल विकास 

  • भारत में कौशल पारितंत्र में सुधार के लिए कई नीतिगत पहल की जा रही हैं किंतु वर्तमान में उनमें लैंगिक असंतुलन को दूर करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 
  • भौतिक पहुँच में सुधार, वित्तीय सहायता को आसान बनाना एवं कौशल प्रशिक्षण के बाद नियोक्ता मांग में सुधार करना, ऐसे कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जिनमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है। 
  • औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (Industrial Training Institute : ITI) देश भर में कौशल कार्यक्रमों का सबसे किफायती एवं सघन नेटवर्क हैं।
    • हालाँकि, आई.टी.आई. में प्रवेश लेने वालों में से केवल 7% महिलाएँ हैं। 
    • विशेष रूप से महिलाओं को पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक कौशल प्रदान करने वाले प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाने की अत्यधिक संभावनाएँ विद्यमान है। 
    •  महिलाओं की कौशल तक पहुँच में व्यावसायिक केंद्रों की दूरी और ऋण संबंधी बाधाएँ भी मौजूद हैं।

महिला कौशल विकास के लिए अपनाई जा सकने वाली रणनीतियाँ 

  • महिला प्रशिक्षुओं के लिए क्रेडिट पहुँच एवं छात्रवृत्ति कार्यक्रम
  • सरकारी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा किस्तों में शुल्क भुगतान एवं सब्सिडी वाले ऋण की पेशकश 
  • संभावित नियोक्ता द्वारा प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन एवं शून्य-ब्याज ऋण
  • कैरियर परामर्श, प्रशिक्षण संस्थानों में स्थापित जॉब प्लेसमेंट सेल व महिला प्रशिक्षुओं के लिए रोल मॉडल और सलाहकारों को सक्रिय करने के लिए पूर्व छात्रों के नेटवर्क का उपयोग करना 

महिला अनुकूल शहरीकरण 

  • भारत में तीव्र शहरीकरण के साथ ही ऐसे शहरों की आवश्यकता है जो महिलाओं की गतिशीलता का समायोजन करें। 
  • पुरुषों की तुलना में युवा विवाहित महिलाओं द्वारा अपने श्रम को गैर-कृषि क्षेत्र में हस्तांतरित करने की संभावना कम है। 
    • यहाँ तक कि प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने पर महिलाओं द्वारा पुरुषों की तुलना में गांवों से पलायन करने की भी संभावना कम है। 
  • शहरी इलाकों में रहने वाली महिलाओं की भौतिक गतिशीलता कम है जबकि शिक्षा एवं काम के अवसरों तक पहुंच के लिए यह महत्वपूर्ण है।
  • लैंगिक दृष्टि से शहरी बुनियादी ढांचे, परिवहन एवं सार्वजनिक सुरक्षा की योजना बनाने के लिए तत्काल नीतिगत फोकस की आवश्यकता है।
  • तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव और जनसंख्या की उम्र बढ़ने के साथ एक उच्च गुणवत्ता वाली, सब्सिडी युक्त शहरी देखभाल संरचना महिलाओं को देखभाल कार्य से मुक्त करने के साथ ही इस क्षेत्र में उनके लिए नए रोज़गार भी सृजित करेगी।
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