संदर्भ
उत्तराखंड के नैनीताल क्षेत्र की वनाग्नि की हालिया घटना ने भारत में वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
वनाग्नि के कारण
- कृषि में बदलाव और अनियंत्रित भूमि-उपयोग पैटर्न के कारण अधिकांश आग मानव निर्मित होती हैं।
- उत्तराखंड वन विभाग ने वनाग्नि के चार कारण बताए हैं :
- स्थानीय लोगों द्वारा जानबूझकर आग लगाना
- लापरवाही
- खेती से संबंधित गतिविधियाँ
- प्राकृतिक कारण
- एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोग अच्छी गुणवत्ता वाली घास उगाने, पेड़ों की अवैध कटाई को छुपाने, अवैध शिकार आदि के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार सूखी पत्तियों के साथ बिजली के तारों के घर्षण से भी जंगल में आग लगती है।
- गौरतलब है कि जंगल में आग लगाना भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध है।
भारत में वनाग्नि की स्थिति
- भारत में वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ नवंबर से जून माह के बीच घटित होती है।
- तापमान, वर्षा, वनस्पति और नमी जैसे कारक इन आग के पैमाने और आवृत्ति में योगदान करते हैं।
- विशेषज्ञों के अनुसार वनाग्नि के फैलने के तीन मुख्य कारक हैं :
- सूखी पत्तियाँ वनाग्नि के लिए ईंधन का कार्य करती हैं।
- भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey Of India : FSI) के अनुसार भारत के लगभग 36% जंगलों में प्राय: आग लगने का खतरा रहता है।
- सर्दियों की समाप्ति के बाद और प्रचलित गर्मी के मौसम के बीच शुष्क बायोमास की पर्याप्त उपलब्धता के कारण मार्च, अप्रैल और मई में आग की अधिक घटनाएँ दर्ज की जाती हैं।
क्षेत्रीय अंतराल
- एफ.एस.आई. के अनुसार कई प्रकार के वनों विशेष रूप से शुष्क पर्णपाती वनों में भीषण आग लगती है, जबकि सदाबहार, अर्ध-सदाबहार और पर्वतीय समशीतोष्ण वनों में तुलनात्मक रूप से कम खतरा होता है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट-2021 के अनुसार पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में वनाग्नि की प्रवृत्ति सबसे अधिक है।
- पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़, मध्य ओडिशा के कुछ हिस्सों और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं कर्नाटक के क्षेत्र भी अत्यधिक आग-प्रवण क्षेत्रों के रूप में वर्णित किए जाते हैं।