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जीवन-निर्वाह मजदूरी फ्रेमवर्क

प्रारंभिक परीक्षा – जीवन-निर्वाह मजदूरी फ्रेमवर्क
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-3

चर्चा में क्यों

 हाल ही में केंद्र सरकार ने जीवन-निर्वाह मजदूरी (Living Wage) हेतु फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से तकनीकी सहायता मांगी है।

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प्रमुख बिंदु 

  • भारत वर्ष 2025 तक न्यूनतम मजदूरी प्रणाली को जीवन-निर्वाह मजदूरी के साथ बदलने की योजना बना रहा है।
  • न्यूनतम मजदूरी से जीवन-निर्वाह मजदूरी में बदलाव का उद्देश्य लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालना और उनकी कल्याण सुनिश्चित करना है। 
  • भारत में 500 मिलियन से अधिक श्रमिक हैं, जिनमें से 90% असंगठित क्षेत्र में हैं।
  •  भारत में ‘न्यूनतम मजदूरी’ सिद्धांत का अनुपालन किया जाता है। परन्तु  यह मजदूरी वर्ष 2017 से स्थिर बनी हुई है।
  • भारत वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें सभ्य कार्य और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य भी शामिल है।

भारत में वर्तमान वेतन प्रणाली:

  • राष्ट्रीय फ्लोर लेवल न्यूनतम वेतन (NFLMW) वर्ष 2019 में सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है 
  • संसद द्वारा पारित ‘वेतन संहिता (2019)’ में एक ‘सार्वभौमिक वेतन स्तर’(Universal wage floor) का प्रावधान किया गया है।
  • इसमें प्रतिष्ठानों को न्यूनतम वेतन राष्ट्रीय फ्लोर वेतन (NFW) से कम नहीं निर्धारित नहीं करने का आदेश देता है। 
  • वर्तमान में राष्ट्रीय फ्लोर वेज 178 रुपये प्रति दिन है।
  • वेतन संहिता 2019 की धारा 5 के अनुसार कोई भी नियोक्ता इससे नीचे न्यूनतम वेतन तय नहीं कर सकता है। फिर भी यह अनिवार्य प्रावधान नहीं है
  • न्यूनतम मजदूरी दरों को राज्य द्वारा  संशोधित करने का अधिकार प्राप्त है। 
  • इस संहिता के कार्यान्वयन के बाद यह वेतन स्तर सभी राज्यों पर लागू होगा।

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न्यूनतम वेतन:

  • न्यूनतम वेतन एक निश्चित अवधि के दौरान किए गए कार्य के लिए नियोक्ताओं द्वारा कर्मचारियों को भुगतान की जाने वाली कानून द्वारा आवश्यक न्यूनतम पारिश्रमिक है।
  • न्यूनतम वेतन का उद्देश्य श्रमिकों को कम वेतन से बचाना और  भोजन, कपड़े, आश्रय और अन्य बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त आय प्रदान करके आगे बढ़ाना है।
  • भारत में न्यूनतम वेतन की गणना राज्य श्रमिक के कौशल स्तर और अन्य कारकों के बीच कार्य की प्रकृति के आधार पर की जाती है। 

न्यूनतम वेतन पर कानून:

  • वर्ष 2019 तक न्यूनतम वेतन न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के माध्यम से तय किया गया था।
  • इसके तहत केंद्र सरकार ने रेलवे एवं अन्य क्षेत्र आदि जैसे अनुसूचित रोजगार में लगे श्रमिकों का वेतन तय किया, जबकि बाकी के लिए न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार निजी क्षेत्र सहित राज्य सरकार के पास चला गया। 
  • वेतन संहिता, 2019 को  वेतन के भुगतान को नियंत्रित करने वाली कानूनी नीतियों के कार्यान्वयन में एकरूपता लाने के प्रयास में पेश किया गया था। 
  • इसके अनुसार  न्यूनतम वेतन राष्ट्रीय वेतन स्तर (NFW) से नीचे तय नहीं किया जा सकता है।
  •  अभी तक इस कोड के जो प्रावधान बाध्यकारी है,राज्यों में लागू नहीं किया गया है।

न्यूनतम मजदूरी की मौजूदा व्यवस्था की समस्याएं:

  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 में न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए केवल दिशा- निर्देशों का उपबंध किया गया है।
  • यह कानून यह नहीं बताता है कि न्यूनतम मजदूरी कितनी होनी चाहिए।
  • कुछ प्रकार के रोजगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करने संबंधी प्रावधान न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 और ठेका श्रम (विनियमन एवं उत्सादन) अधिनियम,1970 दोनों में दिए गए हैं। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • सभी राज्यों में राष्ट्रीय आधार मजदूरी (Wage floor) लागू नहीं होने की वजह से राज्यों के बीच मजदूरी में असमानताएं देखी जाती हैं।
  • भारत में मजदूरी में लैंगिक स्तर पर भी असमानता देखी जाती है।
    • यही वजह है कि पुरुष श्रमिकों की तुलना में महिला श्रमिकों की  मजदूरी कम होती है।

जीवन-निर्वाह मजदूरी:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)  के अनुसार जीवन निर्वाह मजदूरी को पारिश्रमिक के स्तर के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • यह ‘श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए एक जीवन स्तर वहन करने के लिए आवश्यक है।
  • देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और काम के सामान्य घंटों के दौरान किए गए काम के लिए गणना की जाती है।
  • जीवन के इस मानक में भोजन, पानी, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, परिवहन, कपड़े और आकस्मिकताओं के प्रावधान सहित अन्य बुनियादी जरूरतों को वहन करने में सक्षम होना शामिल है।

जीवन-निर्वाह मजदूरी सिद्धांत अपनाने के लाभ:

  • सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप गरीबी उन्मूलन के प्रयासों में तेजी लाने में मदद मिलेगी।
  •  बढ़ती मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए, कम मजदूरी मिलने की शिकायतों को दूर किया जा सकता है।
    • आंकड़ों के अनुसार, 45% वेतनभोगी कर्मचारी मासिक आधार पर 9750 रुपये से कम कमाते हैं जो एक कर्मचारी के लिए अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए उचित नहीं है।
  • इसके अलावा अधिक न्यायसंगत एवं सतत आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित करने को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • सकारात्मक कार्य संस्कृति का निर्माण क्योंकि उच्च वेतन से कर्मचारियों का मनोबल बढ़ सकता है, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी, टर्नओवर दर कम होगी और ग्राहक संतुष्टि में सुधार होगा। 

जीवन-निर्वाह मजदूरी सिद्धांत अपनाने में चुनौतियां:

  • भारत के अलग-अलग क्षेलों में जीवन-यापन की लागत में काफी अंतर मौजूद है।
    • जीवनयापन की लागत शहरों, राज्यों और यहां तक ​​कि जिलों के बीच काफी भिन्न होती है, जिससे एक समान जीवनयापन मजदूरी दर स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  •  ऐसे में देश के सभी क्षेत्रों के लिए एक समान ‘राष्ट्रीय जीवन-निर्वाह मजदूरी फ्रेमवर्क’ को लागू करना चुनौतीपूर्ण है।
  •  श्रमिकों को अधिक मजदूरी का भुगतान करने की वजह से विशेष रूप से लघु व्यवसायों और लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम (MSME) क्षेत्र पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
  • सरकार के लिए राजकोषीय निहितार्थ सार्वजनिक ऋण के आकार पर भारी पड़ सकते हैं।
  • निजी क्षेत्र के नियोक्ता कम मुनाफे के डर से आवश्यक से अधिक वेतन देने में अनिच्छुक होंगे।
  • श्रमिकों के बीच न्यूनतम वेतन प्रावधानों और श्रम कानूनों के तहत उनके अधिकार के बारे में जागरूकता की कमी है।
  •  गिग अर्थव्यवस्था का उदय श्रमिकों के लिए उचित मुआवजा बनाए रखने के लिए अद्वितीय चुनौतियां प्रस्तुत करता है। 

जीवन-निर्वाह मजदूरी और न्यूनतम मजदूरी के बीच अंतर:

  • जीवन-निर्वाह मजदूरी (Living Wage) श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए सम्मानजनक जीवन जीने हेतु आवश्यक मजदूरी स्तर है।
  • इसका उद्देश्य श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • वही न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wage) यह प्रति घंटे कार्य के बदले निर्धारित वह वैधानिक न्यूनतम मजदूरी है, जिसका भुगतान करना नियोक्ता की बाध्यता है।
  • इसका उद्देश्य श्रमिकों को नियोक्ताओं के शोषण से बचाना है।

ILO

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO):

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में की गई थी।
  • भारत ILO का संस्थापक सदस्य था और वर्ष 1922 से इसके शासी निकाय के स्थायी सदस्य के रूप में कार्य कर रहा है।
  • इसका लक्ष्य सामाजिक न्याय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम अधिकारों को बढ़ावा देना है।
  • इसका मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है।

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1.  हाल ही में केंद्र सरकार ने जीवन-निर्वाह मजदूरी (Living Wage) हेतु फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से तकनीकी सहायता मांगी है।
  2. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 में न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए केवल दिशा- निर्देशों का उपबंध किया गया है।
  3. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में की गई थी।

उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?

 (a) केवल एक 

(b) केवल दो 

 (c) सभी तीनों 

(d)  कोई भी नहीं 

उत्तर: (c)

मुख्य परीक्षा प्रश्न:   भारत द्वारा जीवन-निर्वाह मजदूरी फ्रेमवर्क  अपनाने के गुण एवं दोषों का परीक्षण कीजिए।

स्रोत: THE ECONOMIC TIMES

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