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मानव निर्मित आर्द्रभूमि : अपशिष्ट जल उपचार तंत्र

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

परिचय 

भारत में तीव्र विकास ने महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं जिसमें औद्योगिक अपशिष्ट जल का प्रबंधन भी शामिल है। अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्टों के जल निकायों में निष्कर्षण से पारिस्थितिकी तंत्र, सार्वजनिक स्वास्थ्य व जल सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है। ऐसे में मानव निर्मित आर्द्रभूमियाँ (Constructed Wetlands) पारंपरिक उपचार विधियों के लिए एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करते हैं। 

क्या हैं मानव निर्मित आर्द्रभूमियाँ  

  • मानव निर्मित आर्द्रभूमियाँ, प्राकृतिक आर्द्रभूमियों के कार्यों की पुनरावृत्ति के लिए डिज़ाइन की गई अभियांत्रिक संरचनाएँ हैं। ये प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए माइक्रोबियल संयोजन, आर्द्रभूमि की वनस्पति और मृदा संसाधनों का उपयोग करती हैं। 
  • इसमें वाहित मल का प्राकृतिक रूप से शोधन या उपचार के लिये बोल्डर्स (पत्थर के टुकड़े) एवं विभिन्न प्रकार के पौधों का उपयोग करके एक आर्द्रभूमि परिसर का निर्माण किया जाता है। इस प्रक्रिया में तीन-चरण होते हैं और इसमें विद्युत की आवश्यकता नहीं होती है। 

मानव निर्मित आर्द्रभूमि में अपशिष्ट उपचार तंत्र 

  • भौतिक तंत्र : अवचूषण या सोखना (Absorption), अवसादन (Sedimentation) एवं निस्पंदन (Filtration
  • जैविक तंत्र : माइक्रोबियल या पौधा आधारित एंजाइमों द्वारा प्रदूषकों का क्षरण, पौधों/रोगाणुओं द्वारा प्रदूषकों का संचयन 
  • रासायनिक तंत्र या परिवर्तन : रेडॉक्स, ठोस एवं तरल पृथक्करण के साथ अवक्षेपण (Precipitation), वाष्पीकरण, फोटोलिसिस
    • रेडॉक्स अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण (Oxidation) एवं अपचयन (Redction) अभिक्रिया साथ-साथ होती हैं।
  • जड़ क्षेत्र में संदूषकों को हटाने में माइक्रोबियल गतिविधि द्वारा राइजोडिग्रेडेशन प्रक्रिया 
  • भारी धातुओं के लिए फाइटोस्टेब्लाइजेशन एवं फाइटोएक्युमुलेशन प्रक्रिया

मानव निर्मित आर्द्रभूमि के प्रकार 

  • पृष्ठीय प्रवाह (SF) : इसमें हेलोफाइट्स वनस्पतियों की जड़ों को सहारा देने के लिए एक उथला बेसिन (<1m), मृदा या अन्य माध्यम एवं जल नियंत्रण संरचना होती है जो पानी की उथली गहराई (0.2-0.4 मीटर) बनाए रखती है।
    • इस प्रणाली में अपशिष्ट जल की सतह सब्सट्रेट के ऊपर होती है। 
    • खदान से निकलने वाले जल और कृषि अपवाह के उपचार के लिए प्राय: पृष्ठीय प्रवाह आर्द्रभूमियों का प्रयोग किया जाता है। 
    • ये प्रणालियाँ आमतौर पर उत्तरी अमेरिका में उपयोग की जाती हैं। 

हेलोफाइट्स पौधें लवणीय परिस्थितियों, जैसे-  लवणीय दलदल, के लिए अनुकूलित होते हैं।

  • उपपृष्ठीय प्रवाह (SSF) : इसे इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि पानी का स्तर सब्सट्रेट की पहली परत से भी नीचे रहे। दूषित पानी रेत व बजरी के माध्यम से प्रवाहित होता है और तल तक पहुँच जाता है। 
    • इसको वनस्पति जलमग्न या प्लांट रॉक फिल्टर सिस्टम के रूप में भी जाना जाता है। 
    • जल प्रवाह की दिशा के आधार पर इन्हें दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है : क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर। 
    • हाल ही में अपशिष्ट जल उपचार के लिए क्षैतिज प्रवाह एवं ऊर्ध्वाधर प्रवाह आर्द्रभूमि प्रणालियों के संयोजन का उपयोग किया गया है, जिसे हाइब्रिड सिस्टम का नाम दिया गया है। हाइब्रिड सिस्टम अपशिष्ट जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए अधिक कुशल है।  

मानव निर्मित आर्द्रभूमियाँ के लाभ 

  • लागत-प्रभावशीलता : निर्माण व रखरखाव के संदर्भ में मानव निर्मित आर्द्रभूमियाँ अपेक्षाकृत अधिक किफायती विकल्प हैं। इनके निर्माण व रखरखाव में ऊर्जा खपत एवं परिचालन व्यय न्यूनतम होता है, जो सीमित संसाधनों वाले समायोजन के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।
  • व्यापक प्रभावशीलता : मानव निर्मित आर्द्रभूमियों को विभिन्न प्रकार के जलीय औद्योगिक अपशिष्ट के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, जो प्रदूषकों व संदूषकों के व्यापक स्पेक्ट्रम को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करता है। इन्हें स्थान विशेष की आवश्यकताओं एवं मौजूद प्रदूषकों की विशेषताओं के आधार पर कॉन्फ़िगर किया जा सकता है।
  • पर्यावरणीय लाभ : अपशिष्ट जल उपचार में अपनी प्राथमिक भूमिका के अलावा ये पूरक पर्यावरणीय लाभ भी प्रदान करती हैं। ये जैव-विविधता संरक्षण को बढ़ावा देते हुए पौधों व जानवरों की प्रजातियों के लिए आवास के रूप में कार्य करत हैं। साथ ही, ये बाढ़ नियंत्रण एवं कार्बन पृथक्करण जैसी पारितंत्र सेवाओं में योगदान करते हैं।
  • परिवर्तनशीलता एवं अनुकूलनशीलता : मानव निर्मित आर्द्रभूमियाँ लचीली व परिवर्तनशील होती हैं और विभिन्न औद्योगिक संचालन व स्थानिक सीमाओं के अनुरूप समायोजित होने में सक्षम होती हैं। ये केंद्रीकृत एवं विकेंद्रीकृत दोनों प्रकार के अपशिष्ट जल उपचार विधियों को समायोजित कर सकती हैं।

भारत में अपशिष्ट जल उपचार के लिए मानव निर्मित आर्द्रभूमि पहल 

  • असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य, दिल्ली : यह मानव निर्मित आर्द्रभूमि प्रणाली आस-पास की बस्तियों से सीवेज को शुद्ध करने में सहायता करती है और क्षेत्रीय जैव विविधता संरक्षण में योगदान करती है।
  • पेरुंगुडी एवं कोडुंगैयुर, तमिलनाडु : विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार रणनीति के द्वारा स्थानीय समुदायों के सीवेज का प्रभावी ढंग से उपचार करती हैं, जिससे केंद्रीकृत उपचार सुविधाओं पर बोझ कम होता है और प्रदूषक स्तर में काफी कमी आती है।
  • कोलकाता ईस्ट वेटलैंड्स, पश्चिम बंगाल : इसे रामसर साइट के रूप में नामित किया गया है जो प्राकृतिक व मानव निर्मित आर्द्रभूमियों का एक विशाल नेटवर्क है। ये अपशिष्ट जल शोधन के साथ ही मछली पकड़ने एवं कृषि में लगे स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसर भी प्रदान करती हैं।
  • पल्ला गांव, हरियाणा : यह यमुना नदी में छोड़े जाने से पहले अपशिष्ट जल का उपचार करती है। 
  • ऑरोविले अंतरराष्ट्रीय टाउनशिप, तमिलनाडु : इसने अपने परिसर के भीतर उत्पन्न सीवेज का प्रबंधन करने के लिए मानव निर्मित आर्द्रभूमि सहित विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार प्रणाली लागू की है। 
  • सरिस्का टाइगर रिजर्व, राजस्थान : इस रिज़र्व ने आसपास के गांवों के अपशिष्ट जल के उपचार के लिए मानव निर्मित आर्द्रभूमि का उपयोग करते हुए एक अभिनव पहल शुरू की है। 

मानव निर्मित आर्द्रभूमि के लिए भारतीय संदर्भ में अवसर एवं चुनौतियाँ

अवसर 

  • उपयोग करने की अत्यधिक क्षमता 
  • समृद्ध जैव विविधता एवं आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी प्रणालियों की प्रचुरता 
  • अनुकूल परिस्थितियाँ 
  • उद्योगों की विकेंद्रीकृत प्रकृति 
    • मानव निर्मित आर्द्रभूमि ऑन-साइट या क्लस्टर-स्तरीय अपशिष्ट जल उपचार के लिए एक आकर्षक विकल्प है। 

चुनौतियाँ

  • औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिए स्पष्ट नीतियों व नियामक ढांचे की कमी 
  • उद्योगों द्वारा स्थायी अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रथाओं में कम निवेश
  • सफल कार्यान्वयन एवं संचालन के लिए उद्योग पेशेवरों, नियामकों व स्थानीय समुदायों सहित हितधारकों के बीच जागरूकता तथा तकनीकी विशेषज्ञता की कमी
  • विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में मानव निर्मित आर्द्रभूमि के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए निरंतर निगरानी एवं अनुसंधान की कमी 
  • डिज़ाइन मापदंडों को अनुकूलित कर पाने में समस्या 
  • नए प्रदूषकों सहित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसी उभरती चुनौतियाँ
  • मानव निर्मित आर्द्रभूमियों की योजना, डिजाइन व प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी की कमी 
  • इन प्रणालियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित न कर पाना 

आगे की राह 

उचित नीतियों के कार्यान्वयन, क्षमता-निर्माण पहल और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से मानव निर्मित आर्द्रभूमि में स्थायी औद्योगिक प्रगति की प्राप्ति और आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है।

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