(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव) |
संदर्भ
म्यांमार में सैन्य सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में लगभग 70 नागरिकों की मौत हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र ने बढ़ती हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए बाह्य सहायता एवं शांति प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित किया है। एक पड़ोसी देश के रूप में भारत इस संकट को सुलझाने में मदद कर सकता है।
म्यांमार में वर्तमान स्थिति
- वर्ष 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से म्यांमार राजनीतिक स्तर पर विभाजित हो गया है, कुछ क्षेत्रों में सेना के प्रभुत्त्व में राज्य प्रशासन परिषद (State Administration Council : SAC) का कब्ज़ा है तो कुछ क्षेत्रों में सेना के विरोधी गुट प्रभावी हैं।
- लगभग 2.7 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं और वर्ष 2024 के अंत तक 1 मिलियन अतिरिक्त विस्थापन का अनुमान है।
- अनुमानतः 6 मिलियन बच्चों सहित 18.6 मिलियन लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है।
म्यांमार में बढ़ते संघर्ष को लेकर प्रमुख चिंताएँ
- संघर्ष में वृद्धि : संयुक्त राष्ट्र ने बढ़ते संघर्ष एवं नागरिक जोखिमों को लेकर चिंता व्यक्त की है। महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दो चिंताजनक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला है :
- रखाइन प्रांत में पहले से ही बदहाली व भेदभाव चरम पर है और राजनीतिक संघर्ष के विस्तार से सांप्रदायिक तनाव के और अधिक भड़कने की आशंका है।
- विभिन्न क्षेत्रों व राज्यों में नए भर्ती कानून के तहत युवाओं की सेना में जबरन भर्ती से संकट बढ़ सकता है।
- बढ़ते हुए हवाई हमले : विगत पांच महीनों में सेना के हवाई हमलों में पांच गुना वृद्धि हुई है।
- सहायता वितरण में चुनौतियाँ : म्यांमार के नागरिकों के लिए बाह्य सहायता का प्रवाह न्यूनतम है और संघर्षग्रस्त देश में तार्किक चुनौतियों के कारण बाधा उत्पन्न हो रही है।
- आम सहमति का अभाव : SAC एवं प्रतिरोधी गुट के बीच संघर्ष के कारण हिंसा को कम करने और मानवीय सहायता प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
समाधान
- संवाद स्थापित करना : सभी संबंधित पक्षों के बीच एक नवीन संवाद तंत्र की आवश्यकता है ताकि आपसी संवाद से समस्या का समाधान किया जा सके।
- मानवीय सहायता में सुगमता : थाईलैंड ने एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में म्यांमार में एक ‘मानवीय गलियारा’ के निर्माण जैसे ठोस कदम के लिए योजना प्रस्तुत की है।
- बाह्य सहायता : आसियान देशों, चीन, भारत व बांग्लादेश म्यांमार के नागरिकों तक मानवीय सहायता पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- संविधान के मुद्दे को संबोधित करना : SAC के वर्ष 2008 के संविधान व प्रतिरोधी गुट द्वारा नए संविधान की मांग पर दोनों पक्षों की सहमति बनाकर बीच का रास्ता खोजना चाहिए।
- क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करना : म्यांमार के संकट को संबोधित करना क्षेत्र की शांति व प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत के लिए विकल्प
- एक प्रमुख व प्रभावित पड़ोसी के रूप में भारत निश्चित रूप से मदद कर सकता है।
- म्यांमार में सत्ता व नागरिकों के बीच संघर्ष की तीव्रता वस्तुत: क्षेत्रीय शांति व प्रगति को खतरे में डालेगी। इस आपदा का प्रत्यक्ष प्रभाव भारत में (विशेषकर पूर्वी राज्यों में) देखा जा सकता है।
- भारत को म्यांमार के साथ मिलाकर व्यावहारिक व प्रगतिशील समाधान विकसित करने की आवश्यकता है, जिसमें सत्ता संतुलन के साथ-साथ भू-राजनीति व दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक निकटता को भी संबोधित किया गया हो।