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राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

संदर्भ

भारत में शहरों द्वारा पीएम स्तर का लगातार उल्लंघन और स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं का असंगत क्रियान्वयन राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की सफलता में बाधा डाल रहा है।  

क्या है राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) को जनवरी 2019 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा देश भर में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक, समयबद्ध, राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में शुरू किया गया।
  • केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड (CPCB), वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अनुरूप और विशेष रूप से अधिनियम की धारा 16(2)(B) के अंतर्गत वायु प्रदूषण के रोकथाम, नियंत्रण के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम को क्रियान्वित करेगा।
  • NCAP को संबंधित मंत्रालयों द्वारा संस्थागत किया जाएगा और अंतर-क्षेत्रीय समूहों के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा, जिसमें संबंधित मंत्रालयों के अतिरिक्त, वित्त मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, नीति आयोग, सी.पी.सी.बी., उद्योग, शिक्षा जगत के विशेषज्ञ और नागरिक समाज शामिल है।

उद्देश्य

  • आधार वर्ष 2017 की तुलना में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर सांद्रता में 20-30% की कमी के लक्ष्य को प्राप्त करना 
    • हालाँकि, 2025-26 तक पीएम सांद्रता के संदर्भ में 40% तक की कमी या राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को प्राप्त करने के लिए लक्ष्य को संशोधित किया गया है। 
  • वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और शमन के उपायों का कठोरतापूर्वक  कार्यान्वयन
  • वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एयरशेड दृष्टिकोण को अपनाना
  • मौजूदा नीतियों और कार्यक्रमों के साथ समन्वय स्थापित करना
    • जिसमें जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना(NAPCC) और जलवायु परिवर्तन से संबंधित अन्य सरकारी पहल शामिल हैं।
  • केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किसी शहर/कस्बे की जनसंख्या के आधार पर वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों की स्थापना के लिए मानदण्ड संबंधी दिशा-निर्देश जारी करना 

स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं का असंगत कार्यान्वयन  

  • स्वच्छ वायु कार्य योजना को लागू करने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आवंटित धनराशि का औसतन केवल 60% ही उपयोग किया गया है, 27% शहर अपने निर्धारित बजट का 30% से कम खर्च करते हैं। 
    • विशाखापत्तनम और बेंगलुरु ने अपने एन.सी.ए.पी. फंड का क्रमशः 0% और 1% ही खर्च किया है। 
  • अधिकारियों से अनुमोदन में देरी के कारण क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न हो रही है।  
    • उदाहरण के लिए, निविदा प्रक्रियाओं के तकनीकी विनिर्देश या मैकेनिकल स्वीपर और इलेक्ट्रिक बसों जैसे उत्पादों की खरीद के लिए।
  • मानक संचालन प्रक्रियाओं का अभाव और नियंत्रण उपायों को लागू करने में देरी से बाधा होती है। 
  • नौकरशाही लालफीताशाही और प्रस्तावित शमन उपायों की प्रभावशीलता के बारे में लंबे समय तक संदेह बने रहने से देरी होती हैं। 
  • आउटडोर स्मॉग टावरों की अप्रभाविता पर निर्णय निर्माताओं की हिचकिचाहट से क्रियान्वयन में असंगतता मौजूद है।

वैज्ञानिक उपकरण द्वारा सहायता 

  • प्रदूषण की उत्पत्ति की पहचान करने और समझने के लिए उत्सर्जन सूची (EI) और स्रोत विभाजन (SA) अध्ययन से विशेषज्ञों को अन्य कारकों के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव एवं तकनीकी प्रगति के आधार पर भविष्य के उत्सर्जन का पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है। 
  • ई.आई. लक्षित प्रदूषण नियंत्रण रणनीतियों को आकार देने में भी मदद करते हैं। विशेष रूप से सीमा पार प्रदूषण स्रोतों के प्रभाव का आकलन करने में, जैसे- शहर की वायु गुणवत्ता पर दिल्ली के बाहर पराली जलाने के प्रभाव का निर्धारण करते समय।
  • एस.ए. अध्ययन दूर स्थित स्रोतों सहित विभिन्न प्रदूषण स्रोतों के योगदान का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है। 
  • हालाँकि, पूर्वानुमानित विश्लेषण के लिए उपयुक्त नहीं हैं और रासायनिक विश्लेषण के लिए विशेष कर्मियों व उपकरणों सहित पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है। 
  • एस.ए. अध्ययन भी प्रदूषण की उत्पत्ति के बीच अंतर नहीं कर सकता है, जैसे- 200 मीटर दूर और 20 किमी. दूर डीजल ट्रकों से उत्सर्जन, क्योंकि डीजल उत्सर्जन में समान रासायनिक संकेत होते हैं।
    • इन अंतरालों को AQ मॉडलिंग के माध्यम से पाटा जा सकता है, जो दूर के स्रोतों सहित प्रदूषण फैलाव की हमारी समझ को सूचित करता है।

उत्सर्जन सूची (EI) और स्रोत विभाजन (SA) का उपयोग 

  • शहरों को वायु प्रदूषकों को इंगित करने और प्रत्येक प्रदूषणकारी गतिविधि को लक्षित करने के लिए शमन उपाय तैयार करने के लिए ई.आई. एवं एस.ए. डाटा पर गौर करना चाहिए। 
  • गैर-प्राप्ति शहरों में वायु-प्रदूषण के नियमन के लिए पोर्टल के अनुसार, केवल 37% शहरों ने ई.आई. और एस.ए. अध्ययन पूरा किया है, जिसका अर्थ है कि शेष 63% को इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है कि उनकी हवा को क्या प्रदूषित कर रहा है। 
  • क्षमता और बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं के आधार पर, शहरों को उचित वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करने और उन्हें वित्तपोषित करने की आवश्यकता है।
  • एन.सी.ए.पी. की एकाग्रता डाटा पर निर्भरता और हानिकारक प्रदूषण के लिए जनसंख्या जोखिम का उपाय स्थिति को और अधिक जटिल बना देता है। 
  • उच्च उत्सर्जन वाले उद्योगों और शहर की सीमा के बाहर अन्य स्रोतों से होने वाला प्रदूषण, हवाओं द्वारा शहरी क्षेत्रों में ले जाया जाता है, जो शहरी वायु-गुणवत्ता प्रबंधन को जटिल बनाता है। 
  • प्राथमिक और द्वितीयक दोनों प्रदूषकों को संबोधित करने वाली व्यापक रणनीतियों की ओर बदलाव महत्वपूर्ण है। 
  • एन.सी.ए.पी. का एक लक्ष्य AQ का पूर्वानुमान लगाने के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करना है, लेकिन दिल्ली, पुणे, मुंबई और अहमदाबाद को छोड़कर किसी भी शहर में निर्णय-समर्थन प्रणाली नहीं है।

एनसीएपी को सफल होने के लिए क्या चाहिए

  • डाटा और मॉडल की आवश्यकता से परे, जमीन पर तेजी से कार्यान्वयन आवश्यक है। 
  • कार्यान्वयन एजेंसियों को साझा, मानकीकृत तकनीकी मूल्यांकन का उपयोग करके नौकरशाही लालफीताशाही को कम करने का प्रयास करना चाहिए। 
    • चूँकि एन.सी.ए.पी. फंडिंग शहरों के प्रदर्शन से जुड़ी हुई है, जिसमें पूर्व बजट और समय प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • तकनीकी व्यवहार्यता, बजट और समय का अनुमान प्रारंभिक योजनाओं का हिस्सा होना चाहिए।
  • एन.सी.ए.पी. की सफलता एक बहुआयामी दृष्टिकोण पर निर्भर करती है जो कठोर वैज्ञानिक अध्ययन, रणनीतिक धन और शमन उपायों के तेज और प्रभावी कार्यान्वयन को जोड़ती है।
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