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पशु संरक्षण विधेयक में संशोधन की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : पशु पालन का अर्थशास्त्र, पर्यावरण संरक्षण)

संदर्भ 

  • भारत में, मुंबई में एक हाउसिंग सोसाइटी के निवासी द्वारा एक कुत्ते की हत्या से जुड़ी घटना ने पशु क्रूरता के लिए भारतीय कानून द्वारा निर्धारित दंड को बढ़ाने की मांग को तेज कर दिया है। 
  • दुनिया भर के देश अपने पशु क्रूरता कानूनों में सुधार कर रहे हैं और पशु क्रूरता के लिए दंड बढ़ा रहे हैं। हाल ही में, क्रोएशिया में क्रूरता के कृत्यों, जानवरों को अनावश्यक दर्द या पीड़ा पहुंचाने और जानवरों को मारने या गंभीर रूप से दुर्व्यवहार करने के लिए, विशेषकर घरेलू पालतू जानवरों के परित्याग के लिए सख्त दंड लगाया गया है।

PETA

भारत में पशु कल्याण एवं संरक्षण 

  • भारत का संविधान अनुच्छेद 51 ए (जी) के तहत "जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना" भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनाता है।
  • पशु संरक्षण का यह संवैधानिक कर्तव्य अनुच्छेद 48ए के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत द्वारा पूरक है, जिसके अनुसार "राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा"।
  • भारतीय न्यायलयों द्वारा DPSP एवं मौलिक कर्तव्य की विस्तृत न्यायिक व्याख्या करके और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के दायरे में लाकर अदालतों में लागू किया जा सकता है, जो न्यायिक रूप से लागू करने योग्य है।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 428 और 429 अन्य क्रूर कृत्यों के अलावा जानवरों को मारना, जहर देना, अपंग करना या बेकार कर देना गैरकानूनी बनाती है।
  • कई अन्य कानून, जैसे 1960 का पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और 1972 का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पशु कल्याण को एक मौलिक दायित्व के रूप में स्थापित करते हैं।

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960

  • 1960 का पशु क्रूरता निवारण अधिनियम भारत में पशु संरक्षण का कानूनी आधार है। यह अधिनियम "पशु" को मनुष्य के अलावा किसी भी जीवित प्राणी के रूप में परिभाषित करता है। 
  • उद्देश्य : इस अधिनियम का उद्देश्य “जानवरों को अनावश्यक दर्द या पीड़ा देने से रोकना और जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम से संबंधित कानूनों में संशोधन करना है”। 
  • पशु क्रूरता के प्रकार : इस अधिनियम की धारा 11 के तहत जानवरों के प्रति क्रूरता के विभिन्न प्रकारों को अनेक कार्यों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। जैसे:
    •  किसी भी जानवर को मारना, लात मारना, जबरदस्ती थोपना, उस पर ज्यादा बोझ डालना, यातना देना और अनावश्यक पीड़ा पहुंचाना इत्यादि। 
    • हालाँकि अधिनियम की धारा 28 के तहत, किसी समुदाय के धर्म द्वारा आवश्यक तरीके से किसी भी जानवर को मारने को अपराध नहीं माना जाएगा। भारत में धर्मों और परंपराओं की विविधता को देखते हुए इस धारा को अनिवार्य माना गया था।
  • साथ ही, अधिनियम के भाग IV में जानवरों के वैज्ञानिक प्रयोग की अनुमति भी दी गई है।

पशु संरक्षण विधेयक में संशोधन की आवश्यकता

  • फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन (FIAPO) और ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल (ACGS) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 और 2020 के बीच कुल 4,93,910 जानवर मनुष्यों द्वारा किए गए अपराधों का शिकार बने।
  • भारत में पशु क्रूरता के लिए अभी भी पुरानी दंड व्यवस्था है, जो छह दशकों से अपरिवर्तित है। पीसीए अधिनियम के तहत जुर्माने के रूप में निर्धारित राशि वही है जो इसके पूर्ववर्ती, पीसीए अधिनियम 1890 में निर्धारित थी। इसका मतलब है कि जुर्माना महत्वहीन है क्योंकि उनमें 130 से अधिक वर्षों में संशोधन नहीं किया गया है।
    • इस व्यवस्था में पहली बार के अपराधियों के लिए जुर्माना मात्र 10 से 50 तक है। 
    • इस अप्रभावी निवारक ने ऐसे उदाहरणों को जन्म दिया है जहां जानवरों के खिलाफ जघन्य कृत्यों के आरोपी व्यक्ति अक्सर सजा से बच जाते हैं। 
  • पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत क्रूरता के रूप में वर्गीकृत अधिकतर अपराध जमानती एवं गैर-संज्ञेय हैं।
    • गैर-संज्ञेय का अर्थ है कि पुलिस सक्षम न्यायालय की स्पष्ट अनुमति या निर्देश के बिना न तो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर सकती है और न ही जांच कर सकती है या गिरफ्तारी कर सकती है। 
  • कानून की अस्पष्टता के कारण इस मुद्दे से निपटने वाली अदालत के पास आरोपी पर कारावास या जुर्माना लगाने के बीच चयन करने का विवेक होता है। 
    • यह पशु क्रूरता के अपराधियों को अधिकांश मामलों में केवल जुर्माना अदा करके पशु क्रूरता के सबसे क्रूर रूपों से बच निकलने की अनुमति देता है।
  • कानून में 'सामुदायिक सेवा' के लिए कोई प्रावधान नहीं है जैसे कि सजा के रूप में पशु आश्रय में स्वयंसेवा करना, जो संभावित रूप से अपराधियों को सुधार सकता है। ये कमियाँ पशु क्रूरता के अपराधों को दंडित करने में पीसीए अधिनियम को अप्रभावी बनाने में योगदान करती हैं।

वर्तमान प्रयास 

  • नवंबर 2022 में, पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा मसौदा पीसीए (संशोधन) विधेयक, 2022 को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए प्रकाशित किया गया था। मसौदा विधेयक को व्यापक जन समर्थन के बावजूद, इसे संसद में पेश नहीं किया गया। 
  • ड्राफ्ट बिल में 1960 के अधिनियम में महत्वपूर्ण संशोधन शामिल हैं, जैसे-
    • जानवरों के लिए पांच मौलिक स्वतंत्रता को शामिल करना।
    • विभिन्न अपराधों के लिए दंड और जुर्माने के रूप में भुगतान की जाने वाली धनराशि में वृद्धि करना।
    • नए संज्ञेय अपराधों को शामिल करना।

आगे की राह

  • किसी भी मामले में, कानून हमेशा दृष्टिकोण नहीं बदलते हैं। दुर्व्यवहार और अपराध की इस श्रृंखला को कम उम्र से ही स्कूल के अंदर और बाहर, बच्चों को अन्य जीवित प्राणियों के साथ सहानुभूति सिखाकर और वयस्कों द्वारा उदाहरण देकर तोड़ा जा सकता है।
  • सहानुभूति के अलावा, समाज को पेशेवरों द्वारा संचालित सही बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है जो पशु कल्याण को बनाए रखने में मदद कर सके।
  • ऐसे सार्वजनिक सूचना अभियानों की भी आवश्यकता है जो समाज को पशु कल्याण के प्रति संवेदनशील बनाएं। 
  • शहरी क्षेत्रों में आवारा जानवरों की उचित नसबंदी के लिए विस्तारित सार्वजनिक कार्यक्रमों से मनुष्यों और जानवरों के बीच संघर्ष को कुछ हद तक कम करने में भी मदद मिलेगी। 
  • पीपीपी मॉडल ही आगे बढ़ने का रास्ता है क्योंकि नगरपालिका अधिकारियों के पास पहले से ही कई चुनौतीपूर्ण कार्य हैं और पीपीपी मॉडल साझेदारी क्षमताओं को बढ़ाने में मदद कर सकती है।

निष्कर्ष

सभी जानवर, सभी मनुष्यों की तरह, सम्मान और देखभाल का जीवन जीने के पात्र हैं। समाधान जटिल नहीं हैं लेकिन समाज को सभी जीवित प्राणियों के बीच शांतिपूर्ण और खुशहाल सह-अस्तित्व पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। पशु संरक्षण विधेयक में संशोधन करने के साथ-साथ हमें पशु कल्याण को एक जन आंदोलन बनाने की जरूरत है।

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